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डीहिका वाटर प्रोजेक्ट में बोरिंग अनिवार्य
तकनीकी गड़बड़ी. डीवीसी के मैथन, पंचेत जलाशयों की स्थिति का नहीं हुआ था आंकलन आसनसोल : दामोदर नदी व बराकर नदी पर बने पंचेत व मैथन डैम के जलाशयों की अध्यतन जानकारी लिये बिना डीहिका वाटर प्रोजेक्ट का निर्माण किये जाने के कारण बड़ी तकनीकी गड़बड़ी रह गयी है. यही कारण है कि दामोदर घाटी […]
तकनीकी गड़बड़ी. डीवीसी के मैथन, पंचेत जलाशयों की स्थिति का नहीं हुआ था आंकलन
आसनसोल : दामोदर नदी व बराकर नदी पर बने पंचेत व मैथन डैम के जलाशयों की अध्यतन जानकारी लिये बिना डीहिका वाटर प्रोजेक्ट का निर्माण किये जाने के कारण बड़ी तकनीकी गड़बड़ी रह गयी है. यही कारण है कि दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) तथा केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के स्तर से इन जलाशयों के द्वारा निर्गत पानी में 50 फीसदी की कटौती किये जाने के कारण इस प्रोजेक्ट पर ग्रहण लगने की आशंका बन गयी है.
इस प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकार (अड्डा) के अभियंता इस गड़बड़ी से सहमत है तथा दामोदर नदी बेड में कुआं बनाने के बाद नदी बेड में बोरिंग कराने की अनिवार्यता पर सहमत है तथा इसकी राशि अड्डा या आसनसोल नगर निगम के स्तर से वहन करने का प्रस्ताव देने की मानसिकता में है.
विलंब से कार्य होने पर बढ़ा लागत खर्च
जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रीन्यूअल मिशन के तहत केंद्र सरकार ने इस वाटर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी. इसके लिए प्राथमिक स्तर पर 89.8296 करोड़ रुपये की राशि मंजूर की गयी थी.
शिलान्यास के बाद इसका निर्माण कार्य 24 माह में पूरा होना था. लेकिन इस परियोजना के पूर्ण होने में अधिक समय लग जाने इसकी लागत राशि 125 करोड़ रुपये तक पहुंच गयी है. इसका निर्माण कार्य 22 मई, 2009 को शुरू हुआ था. कार्य पूरा होने में छह वर्ष लग गये.
28 मई, 2015 को नॉडल एजेंसी अड्डा ने इसका निर्माण कार्य पूरा कर इसे आसनसोल नगर निगम प्रशासन को सौंप दिया. निगम के पास पहले से ही तीन-चार वाटर प्रोजेक्ट हैं. इस कारण आगामी 2024 तक आसनसोल शहर के किसी भी हिस्से में जल संकट होने की संभावना नहीं होनी चाहिए.
नदी बेड में कुआं बनाने का था डीपीआर
आमतौर पर वाटर प्रोजेक्ट का डीपीआर तैयार करते समय तकनीकी आधार पर दो तरह के जल स्त्रोत बनाये जाते हैं. कम क्षमता के प्रोजेक्ट में नदी बेड में बोरिंग कर दिया जाता है तथा अधिक क्षमता का प्रोजेक्ट होने पर नदी बेड में कुआं बना दिया जाता है ताकि अधिक से अधिक पानी का दोहन हो सके.
दस एमजीडी क्षमता का वाटर प्रोजेक्ट होने के कारण इसका भी जल स्त्रोत नदी बेड में कुआं ही बना. लेकिन नदी में जल प्रवाह कम होने के कारण इस प्रोजेक्ट के सामने परेशानी हो रही है.
हालांकि जानकारों के अनुसार यह स्थिति इस वर्ष दामोदर व बराकर नदी के उपरी इलाकों में बारिश कम होने के कारण बनी है. लेकिन पंचेत व मैथन जलाशयों की स्थिति को देखते हुए इस समस्या के अस्थायी होने की संभावना कम है.
निर्माण के बाद से नहीं हुई सफाई इन दो जलाशयों की
सूत्रों के अनुसार नदियों पर बननेवाले डैमों की उम्र सीमित होती है. डीवीसी के मैथन व पंचेत डैमों की तकनीकी उम्र पूरी हो चुकी है. जलाशयों के साथ भी यही स्थिति हैं. बरसात के दिनों में नदी इन डैमों तक पहुंचने तक अपने साथ अपने दोनों किनारों से सटे इलाकों से मिट्टी, पत्थर व अन्य सामग्री लेकर आती है.
डैम के जलाशय में पहुंचने के बाद ये सभी तल में बैठ जाती है तथा डैमों से जल की निकासी उपरी सतह से होती है. इस कारण इन जलाशयों में मिट्टी व पत्थरों का जमाव होता रहता है. नियमानुसार इन जलाशयों की सफाई नियमित रूप से होनी चाहिए. लेकिन इन डैमों के निर्माण के बाद से इन दोनों जलाशयों की सफाई कभी भी नहीं हो पायी है. फलस्वरूप इन जलाशयों की जल धारक क्षमता लगातार घट रही है. इस कारण बरसात के दिनों में कम पानी रहने पर भी जल स्तर खतरे के निशान के पार कर जाता है तथा सीडब्ल्यूसी के निर्देस के आलोक में जल निकासी करनी पड़ती है.
सीडब्ल्यूसी जलाशयों के जल स्तर तथा नदियों के उपरी इलाकों में बारिश की शंभावना के आधार पर आकलन कर जल निकासी का निर्णय लेता है. इस कारण जब तक इन जलाशयों की सफाई नहीं हो जाती या फिर इन डैमों की ऊंचाई नहीं बढ़ायी जाती, इस परिस्थिति की आशंका हर वर्ष बनी रहेगी.
सात माह पहले लिया नगर निगम प्रशासन ने दायित्व
पूरे शहर को इस प्रोजेक्ट के दायरे में लाने के लिए इस प्रोजेक्ट में आठ नयी ओवरहेड टंकी बनायी गयी हैं. इसके साथ ही दो सेंट्रल जलाशय बनाये गये हैं. ओवरहेड टंकी में नौ सौ क्यूबिक मीटर क्षमता की टंकी पोलो ग्राउंड में, इसी क्षमता की टंकी मनोज टॉकीज के पास, 1250 क्यूबिक मीटर क्षमता की टंकी केएसटीपी में, 1250 क्यूबिक मीटर क्षमता की टंकी मोहिशिला में, सात सौ क्यूबिक मीटर क्षमता की टंकी उत्तर धाधका में,
सात सौ क्यूबिक मीटर क्षमता की टंकी हीरापुर में, डेढ़ हजार क्यूसिक मीटर क्षमता की टंकी चेक केशवगंज में तथा श्यामबांध में डेढ़ हजार क्यूसेक मीटर क्षमता की टंकी बनायी गयी है. इसके साथ ही एक हजार क्यूबिक मीटर क्षमता का सेंट्रल वाटर रिजर्बर इस्माइल में तथा 944 क्यूबिक मीटर क्षमता का सेंट्रल वाटर रिजर्बर केएसटीपी में बनाया गया है.
इसके साथ ही इसके पहले शहर में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचइडी) के स्तर से बनी ओवरहेड रिजर्बरों यथा-बड़तोड़िया व घ्रुवडंगाल में भी इसी प्रोजेक्ट से जलापूत्तर्ि की जा रही है. अड्डा सूत्रों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट पिछले सात माह से पूरी सफलता के साथ कार्य कर रहा है. इसके बाद शहर के किसी भी हिस्से में जल संकट नहीं होना चाहिए.
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