आसनसोल : पूरे देश के साथ-साथ करोड़ों श्रमिकों के लिए अच्छे दिन लाने का सपना दिखा कर सत्ता में आयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अब मजदूरों एवं मजदूर संगठनों पर लगाम लगाने की तैयारी में है.
केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रलय ने औद्योगिक संबंध विधेयक, 2015 का प्रस्ताव तैयार किया है. जिसके अनुसार यूनियनों का पंजीकरण कराना, हड़ताल करना आदि कठिन हो जाएगा.
केंद्र सरकार का प्रस्तावित नया कानून श्रमिकों से संबंधित पुराने तीनों कानून की जगह लेगा. हालांकि देश के केंद्रीय मजदूर संगठनों ने इसका पुरजोर विरोध करने का ऐलान किया है. इस मुद्दे पर 26 मई को दिल्ली मे संयुक्त अधिवेशन आहूत किया है. जिसमें देशव्यापी औद्योगिक हड़ताल की घोषणा की जायेगी.
मजदूर नेताओं के अस्तित्व पर खतरा
प्रस्तावित नये कानून के इस प्रस्ताव से कि कर्मचारी ही यूनियन के पदाधिकारी होंगे, मजदूर नेताओं के आस्तित्व खतरे मे पड़ जाएगा. अधिकांश ट्रेड यूनियन के पदधारी कर्मचारी है ही नहीं.
कोल उद्योग का जेबीसीसीआइ हो या कोई कमेटी या फिर इसीएल, अधिकांश गैर कर्मी ही प्रतिनिधित्व करते हैं. भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध यूनियनें ही ऐसी हैं जिसके पदाधिकारी कर्मचारी होते हैं. चाहे जेबीसीसीआइ का मामला हो या फिर किसी कमेटी मे प्रतिनिधित्व का.
एटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर सभा के महासचिव व पूर्व सांसद आरसी सिंह ने कहा कि इस विधेयक को पास नहीं होने दिया जायेगा. इसके पहले भी कोयला श्रमिकों की संयुक्त हड़ताल हुई थी और सरकार को पीछे हटना पड़ा था. इस मुद्दे पर भी सभी केंद्रीय यूनियनें एक साथ हैं, 26 मई की बैठक में आंदोलन की घोषणा होगी.