कोलकाता: लोकसभा में मंगलवार को तेलंगाना विधेयक के पारित होने के साथ ही गोरखालैंड की मांग कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि पश्चिम बंगाल सरकार के विरोध के बावजूद अलग राज्य बनाने का एक पक्षीय निर्णय ले और यहां भी अलग गोरखालैंड स्थापना करे.
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष विमल गुरुंग ने फेसबुक पर एक टिप्पणी में कहा कि वह अब केंद्र सरकार से अनुरोध करेंगे कि इसी तरह अलग गोरखालैंड बनाने की उनकी न्यायोचित और निष्पक्ष मांग पर विचार करे, जो देश में सबसे पुरानी मांगों में है.
उन्होंने कहा कि आज तेलंगाना विधेयक पारित होने से स्पष्ट होता है कि राज्य के विभाजन के लिए उसकी मंजूरी जरूरी नहीं है, इस तथ्य को वह लंबे समय से दोहरा रहे हैं. गुरुंग ने कहा कि तेलंगाना विधेयक पारित होने से साबित होता है कि छोटे छोटे राज्यों के निर्माण का विरोध कर रहे लोग यह गलत दलील दे रहे हैं कि राज्य विधानसभा से इस तरह की मंजूरी जरूरी है. उन्होंने कहा कि उनको विश्वास है कि केंद्र सरकार देर-सबेर गोरखालैंड क्षेत्र के लोगों की भावनाओं का सम्मान करेगी और शेष बंगाल के विरोध के बावजूद गोरखालैंड बनाने का एकपक्षीय निर्णय लेगी.
मिथिला राज्य की आस बढ़ी
संसद में तेलंगाना राज्य के गठन का बिल पास होते ही मिथिलावासियों में यह विश्वास अब और भी ज्यादा गहरा हो गया कि तेलंगाना के बाद अब मिथिला राज्य का गठन होगा. मिथिला विकास परिषद के अध्यक्ष अशोक झा ने बताया कि 50 वर्षो से चली आ रही पृथक राज्य की मांग अब लगता है जल्दी ही पूरी हो जायेगी. जब भाषाई आधार पर तेलंगाना का गठन हो सकता है, तो फिर मिथिला का स्वरूप तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है. उन्होंने बताया कि 2001 की जनगणना में 5, 68, 12, 422 जनसंख्या व 68,879 वर्ग किलोमीटर मिथिला का क्षेत्र दर्शाया गया है. मिथिला बहुल क्षेत्र में 66 लोकसभा क्षेत्रों में मैथिली भाषी मतदाता निर्णायक की भूमिका में रहते हैं. इतने बड़े क्षेत्रफल वाले हिस्से का विकास पृथक मिथिला राज्य के गठन के बाद ही हो सकता है. श्री झा ने समस्त मिथिलावासियों से अनुरोध किया है कि वे लोकसभा चुनाव में उन्हें ही वोट दें, जो मिथिला राज्य की बात करे.