कोलकाता: वर्ष 2013 में पश्चिम बंगाल में जहां सारधा चिटफंड घोटाला सामने आया वहीं तृणमूल कांग्रेस ने पंचायत चुनाव और स्थानीय निकाय चुनावों में जीत हासिल कर अपनी स्थिति मजबूत की. पार्टी के वरिष्ठ सांसद सौगत राय का कहना है कि राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिहाज से यह वर्ष पार्टी के लिए बहुत बढ़िया रहा. उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव और 2011 के विधानसभा चुनाव में अधूरा रह गया राजनीतिक बदलाव पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में एकतरफा जीत से पूरा हो गया. ग्रामीण प्रशासन के सभी तीन स्तरों, जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम पंचायत में तृणमूल कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की. बहरहाल, बीते एक साल में सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
यह सिलसिला जारी है और हाल के समय में सबसे बड़ी समस्या सारधा चिटफंड घोटाले के सिलसिले में जेल में बंद अपने सांसद कुणाल घोष की है जिनको पार्टी ने निलंबित कर दिया. बताया जाता है कि कुणाल घोष ने राज्य के अब तक के सबसे बड़े वित्तीय घोटाले के पीछे कई रसूखदार नेताओं और पुलिस अधिकारियों का हाथ होने का आरोप लगाते हुए उनके नाम बताए हैं जो सच उजागर करने में मदद कर सकते हैं. सारधा चिटफंड घोटाले ने हजारों छोटे निवेशकों का भविष्य अंधकारमय कर दिया. राज्य सरकार ने इसकी जांच के लिए एक आयोग गठित करने और जमाकर्ताओं की मदद के लिए 500 करोड़ रुपये का एक राहत कोष स्थापित करने का एलान किया. बाद में उसने केंद्र के आपत्ति जताने के बाद आयोग गठित करने की घोषणा वापस ले ली और एक नया विधेयक पारित किया.
सारधा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्त सेन तथा अन्य लोगों को अप्रैल माह में जम्मू कश्मीर में गिरफ्तार किया गया. ममता की मुसीबतें भी बढ़ीं. एक कार्यक्रम में कुणाल घोष ने खुलेआम पार्टी के खिलाफ बगावत कर दी. तृणमूल के बागी सांसद सोमेन मित्र और उनकी पत्नी तथा विधायक शिखा द्वारा आयोजित एक रक्तदान शिविर में भी बगावत नजर आई. दो अन्य पार्टी सांसदों, शताब्दी रॉय और तापस पाल ने भी खुलेआम पार्टी की आलोचना की. श्री घोष ने जब करोड़ों रुपये के सारधा घोटाले की जांच की मांग की तो दरार और गहरी हो गई. तृणमूल ने घोष को एक लंबी प्रश्नावली तथा एक कारण बताओ नोटिस जारी कर उस भाषण के बारे में स्पष्टीकरण मांगा जिसमें उन्होंने घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की थी.
बाद में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित कर दिया गया. राय और पाल को भी कारण बताओ नोटिस मिले जिन्होंने बाद में संयंम बरता. जून में उत्तरी 24 परगना जिले में बारासात के कामदुनी में कालेज की एक छात्र के साथ हुए दुष्कर्म की घटना को लेकर विपक्ष तथा बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने ममता बनर्जी की खूब आलोचना की. लड़की के परिजनों ने शुरु में मुआवजा और सरकारी नौकरी की पेशकश ठुकरा दी लेकिन सभी आठ आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद स्वीकार कर लिया. पंचायत चुनाव कराने के मुद्दे पर भी राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग के बीच विवाद हुआ. ममता और राज्य चुनाव आयुक्त मीरा पांडेय के बीच चुनाव की तारीखों को लेकर वाक युद्ध हुआ. आखिरकार मामला अदालत पहुंच गया.
हालिया वर्षों में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के बंद और आंदोलनों से उपजे तनाव के बाद इस साल दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र में शांति रही. अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन कर रही गोजमुमो ने बरसों की कड़वाहट के बाद बंद न करने और गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन में भाग लेने के ममता बनर्जी के आह्वान का सम्मान किया. गोजमुमो को एक कड़े संदेश में ममता ने कहा था कि दाजिर्लिंग पश्चिम बंगाल का अभिन्न हिस्सा है. वैसे भी गोजमुमो परेशान था क्योंकि पृथक तेलंगाना राज्य के गठन को केंद्र की मंजूरी मिलने के बाद गोजमुमो ने पृथक राज्य के लिए फिर से आंदोलन किया और उसकी केंद्रीय समिति के कई सदस्य जेल भेज दिए गए. ममता ने राज्य सरकार की उद्योग और भूमि अधिग्रहण नीतियों के बारे में बताने के लिए उद्योग जगत के दिग्गजों के साथ कई बैठकें कीं. उनकी कोशिश राज्य को एक आकर्षक निवेश गंतव्य के रुप में पेश करने की थी.
136 साल में पहली बार राज्य सरकार का मुख्यालय राइटर्स बिल्डिंग से पांच अक्तूबर को हावड़ा जिले की एक नई इमारत ‘‘नबान्न’’ में स्थानांतरित किया गया क्योंकि राइटर्स बिल्डिंग की मरम्मत की जानी थी. बीते साल तृणमूल ने कांग्रेस से रिश्ते तोड़ लिए और इस साल हुए स्थानीय निकाय चुनाव में एकतरफा जीत हासिल कर उसने जनता का मूड भी भांप लिया. पश्चिम बंगाल के ग्रामीण मतदाताओं ने तृणमूल को भारी बहुमत दिया और वाम मोरचा तथा कांग्रेस को हिंसा वाले पंचायत चुनावों में मुंह की खानी पड़ी. इन चुनावों को वर्ष 2014 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल कहा गया. वर्ष 2011 में तृणमूल के सत्ता में आने के बाद ममता की लोकप्रियता की यह बड़ी अग्नि परीक्षा भी थी. निश्चित रूप से सारधा चिटफंड घोटाला, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और अन्य मुद्दे मतदाताओं का रुख नहीं बदल पाए.