हुगली: यूं तो जमाना दिनों दिन तरक्की कर रहा है और तरक्की की इस दौड़ में लोग एक दूसरे से होड़ लगा रहे हैं, पर इस आपाधापी में कई ऐतिहासिक महत्व की चीजों व स्थलों को भुला दिया जाता है. ऐसी ही एक अहम धरोहर है हुगली का इमामबाड़ा, जो प्रशासनिक या स्थानीय रहनुमाओं की उपेक्षा से अरसे से जीर्ण-शीर्ण हो गया है.
सियासत में वोट बैंक की राजनीति खूब चलती है और इसलिए खास तबकों को हर चुनाव में खास तवज्जो मिलती है, पर अक्सर उसी तबके से जुड़ी धरोहर को भुला दिया जाता है. कुछ ऐसी ही बात लगभग 150 वर्ष से अधिक पुरानी ऐतिहासिक धरोहर इमामबाड़ा के साथ हुई है. एक तरफ रख रखाव व आर्थिक तंगी के अभाव के चलते इमामबाड़ा बदहाली की मार ङोल रहा है, वहीं दूसरी तरफ महज एक किलोमीटर की दूरी पर ऐतिहासिक बंडेल चर्च भव्य है.
यहां आने वाले पर्यटकों को यह आश्चर्य होती है कि, आखिर एक ही जगह स्थित दो ऐतिहासिक धरोहरों में एक के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है. इमामबाड़ा की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, प्लास्टर पूरी तरह झड़ गया है और ईटें दिखाई दे रही हैं. बंडेल स्टेशन से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर यह धरोहर स्थित है. वर्ष 1840 में हाजी मोहम्मद मोहसिन ने इसका निर्माण कार्य शुरू कराया. तकरीबन इसे बनने में 20 वर्षो का वक्त लग गया. दो लाख 17 हजार की लागत से इमामबाड़ा का निर्माण कार्य संपन्न हुआ.राज्य हेरिटेज कमिशन के तत्वावधान में वर्ष 2010-11 में यहां मरम्मत कार्य हुआ था लेकिन इसके बाद यहां मरम्मत कार्य फिर से नहीं हुआ.
हुगली-चुचुड़ा पौर सभा की ओर से इमामबाड़ा के मुख्य द्वार व झूमर का मरम्मत कार्य किया गया था लेकिन इमामबाड़ा ऑथोरिटी का कहना है कि आर्थिक तंगी के कारण ही इस ऐतिहासिक धरोहर की हालत बद से बदतर हो रही है. इमामबाड़ा के अंदर प्रवेश करते ही पर्यटकों को विशाल प्रवेश द्वार, गगन चुंबी दो टावर और उनके बीच बड़ी सी आकार वाली एक घड़ी पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है. मुख्य द्वार से आगे निकलने पर मध्य में एक छोटा सा तालाब व उससे आगे निकलने पर एक हॉल है. बांयी ओर शर्बत खाना, दांयी तरफ ताजिया खाना व बीच में बेलजियम से मंगाई गयी खूबसूरत झूमर यहां आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है. हॉल के दीवारों पर चारों ओर कुरान की पाक आयतें लिखी हुई हैं. यहां जुम्मे के दिन नमाज अदा की जाती है.