मालदा: मालदा जिले में सरकारी अनुमोदनहीन (गैर सरकारी) मदरसों की संख्या कितनी है, इस बारे में पुलिस व प्रशासन के पास कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है. इस दिशा में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी उदासीन बने हुए हैं.
हालांकि पुलिस व प्रशासन को इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि इन मदरसों को विभिन्न निजी स्नेत से बड़े पैमाने पर धनराशि मिल रही है. राज्य सरकार ने ऐसे 10 हजार निजी मदरसों को अनुमोदन देकर सरकारी देखरेख में लाने की कोशिश की थी, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर मदरसा प्रबंधन ने अनुमोदन के लिए आवेदन नहीं किया. बर्दवान बम धमाके के बाद भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती मदरसों के गलत इस्तेमाल संबंधी तथ्य जांच दल के हाथ लगे हैं और इसी बात ने पुलिस व प्रशासन को नींद से जगा दिया है. गौरतलब है कि मालदा जिले में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं.
अल्पसंख्यक समुदाय का एक बड़ा तबका अभी भी गरीबी रेखा के नीचे है. अत्यंत गरीब अल्पसंख्यक परिवार के बच्चे इस तरह के खारिजी व निजामिया मदरसा में पढ़ते हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जिले में सरकार अनुमोदिन व सहायता प्राप्त मदरसों की संख्या 93 है. निजी सूत्रों के अनुसार, खारिजी मदरसों की संख्या 450 है. इन मदरसाओं में कितने विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, कितने व कौन शिक्षक हैं, मदरसा के संचालन के रुपये कहां से आ रहे हैं, इसको लेकर मदरसा शिक्षा दफ्तर व जिला अल्पसंख्यक विभाग के पास कोई आंकड़ा नहीं है.
मालदा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक मोदी ने बताया कि जिले में सरकारी अनुमोदन विहीन मदरसों की निर्धारित संख्या उन्हें नहीं पता. हालांकि उन्होंने इसका पता लगाने का आश्वासन दिया. मदरसा शिक्षा दफ्तर सूत्रों के अनुसार, मालदा जिले में भारत-बांग्लादेश सीमावर्ती कालियाचक एक, दो व तीन नंबर ब्लॉक में सबसे ज्यादा सरकार अनुमोदित व सहायता प्राप्त मदरसे हैं. गाजोल ब्लॉक में सबसे कम मदरसा हैं. सीमावर्ती हबीबपुर तथा बामनगोला ब्लॉक में कोई सरकारी सहायता प्राप्त मदरसा नहीं है. केंद्र व राज्य खुफिया सूत्रों के अनुसार, मालदा जिले में खारिजी मदरसों की सुख्या 450 से भी ज्यादा है. इन मदरसों में धार्मिक शिक्षा दी जाती है. अरबी व उर्दू भाषा पर ज्यादा जोर दिया जाता है.
खुफिया सूत्रों के अनुसार, विभिन्न पड़ोसी देशों से बड़ पैमाने पर जिले के इन मदरसों के आर्थिक मदद की जा रही है. धार्मिक शिक्षा, उर्दू भाषा का ज्ञान देने के साथ ही कुछ मदरसों में कट्टर धार्मिक मनोभाव उत्पन्न करने पर जोर दिया जाता है. बच्चों में संकीर्ण सांप्रदायिक मनोवृत्ति पैदा की जाती है. मदरसा शिक्षा दफ्तर के एक अधिकारी का कहना है कि सरकार अगर इन मदरसों को अनुमोदन देकर विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तक व मिड-डे-मील का बंदोबस्त करती है, तो इस तरह की संकीर्ण मनोवृत्ति की शिक्षा व्यवस्था से रिहाई मिल सकती है.
भाजपा लगा चुकी है मदरसों में आतंकी पलने का आरोप
राज्य भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने आरोप लगाया था कि राज्य के कुछ मदरसों में आंतकी पल रहे हैं. वहां देश विरोधी गतिविधि को अंजाम दिया जा रहा है. श्री सिन्हा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में बिना जांच के 10 हजार मदरसों को मान्यता दिया जाना घातक साबित हो रहा है. भले ही संदिग्ध मदरसों की संख्या कम है, लेकिन यह साबित हो गया है कि मदरसों में आतंकी पल रहे हैं. उन्हें चिन्हित किया जाना चाहिए.
क्या है तथ्य
खुफिया सूत्रों के अनुसार, कालियाचक थाना क्षेत्र के सुजापुर, जालुआबाथल, जालालपुर, शेरशाही, मोजामपुर, चरिअनंतपुर आदि अंचल में इस तरह के अनगिनत मदरसे हैं. प्रत्येक मदरसा में बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययनरत हैं. एक मदरसा प्रबंधन के अनुसार, मदरसा स्थानीय लोगों की मदद से चलता है, जबकि खुफिया विभाग का कहना है कि जिन इलाकों में मदरसा हैं, वहां ज्यादातर लोग गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले हैं. ज्यादातर लोग मजदूरी कर पेट पालते हैं. मदरसा के लिए आर्थिक सहायता करना इनके बस की बात नहीं है. विदेशी संस्थाओं पर आर्थिक मदद देने का संदेह खुफिया विभाग ने जताया. विभिन्न उग्रवादी संगठन सीमावर्ती इन मदरसों को टारगेट कर इन्हें आर्थिक मदद कर रहे हैं.
क्या कहते हैं अधिकारी
जिले के अल्पसंख्यक विभाग के अधिकारी कृष्णाभ घोष ने बताया कि राज्य सरकार ने 10 हाजर निजी मदरसों को अनुमोदन देने के लिए घोषणा की थी. उसके तहत प्रत्येक ब्लॉक के बीडीओ से निजी मदरसों के बारे में तथ्य मांगा गया था, लेकिन मात्र 90 मदरसों ने सरकारी अनुमोदन के लिए आवेदन किया हैं. बाकी मदरसों को क्यों सरकारी मदद पाने में उत्साह नहीं है, इसकी जांच करनी होगी.