कोलकाता: हिंदी राष्ट्रीयता का आभाष है, वह हमारे अस्तित्व की पहचान है. सार्वजनिक स्थानों पर अपनी भाषा के माध्यम से हमें गौरव की अनुभूति होती है. हिंदी केवल भाषा ही नहीं, राष्ट्र बोध है. हिंदी दिवस एक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीयता की प्रतीति करानेवाला, अस्तित्व का बोध कराने का अनुष्ठान है.
समृद्ध अतीत का स्मरण न करना हमारी कमजोरी है. हीनता बोध से पीड़ित लोग हिंदी का प्रयोग करने से कतराते हैं. यह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल महामहिम केसरी नाथ त्रिपाठी का कहना है.
श्री त्रिपाठी रविवार को बड़ाबाजार के ओसवाल भवन में श्री कुमारसभा पुस्तकालय की ओर से आयोजित हिंदी दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे. राज्यपाल ने कहा कि भाषा की स्वीकार्यता तभी बढ़ेगी, जब हम अपनी भाषा को बोलने के साथ-साथ लिखने का भी अभ्यास करेंगे. राष्ट्रीय अस्मिता के लिए हमें अपने-अपने स्तर पर काम करना होगा, तभी हिंदी को अपेक्षित सम्मान मिलेगा. राज्यपाल को इस दिन यहां उपस्थित लोगों ने एक कवि के रूप में भी देखा. उनकी रचनाओं को सुन कर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गये.
उन्होंने कहा कि कविता वह है, जो संदेश प्रदान करती है. कवि की कोई आयु नहीं होती. लगभग 40 मिनट के अपने उद्बोधन में उन्होंने अपनी कई कविताओं को भावपूर्ण प्रस्तुति भी की. साहित्य-रसिक श्रोताओं की उपस्थिति में प्रभावी काव्य-पाठ का वातावरण ऐसा बना कि महामहिम केसरीनाथ त्रिपाठी को सहज भाव से कहना पड़ा : मैं भूल गया कि राज्यपाल हूं. राज्यपाल ने श्रृंगार, वात्सल्य से भरी कई कविताओं का पाठ किया.
राज्यपाल द्वारा पाठ किये गये कविताओं के अंश
‘‘मीत मन है, गीत तन है,प्रीत प्रण है/ प्रीत मन का आचमन, मन का सुमन है. अर्चना है साधना का एक दर्पण/ आस्था से पूर्ण मन का है समर्पण. कंठ में खुशियों के स्वर आते हैं नहीं/ बेदना के स्वर निकलते हैं नहीं. दूसरी कविता श्रृंगार रस पर आधारित- दूर बहुत रहते हो तुम/ पर आती होगी याद हमारी/ प्रीति सुगंध तन सरिता में /बहती होगी याद हमारी. तीसरी कविता वात्यल्य पर आधारित थी. मैला कुचला, उजला, धवला/ सिमटा सिकुड़ा, फैला आंचल. कैसा भी हो क्या अंतर है/ यह तो है मां का ही आंचल.’’
राष्ट्रभाषा के बिना लोकतंत्र नहीं : दीक्षित
समारोह के अध्यक्ष साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली के हिंदी समिति के संयोजक डॉ सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कहा कि कोई भी लोकतंत्र राष्ट्रभाषा के बिना नहीं चल सकता. हिंदी को राजभाषा का गौरव प्राप्त करने की अवधि निश्चित होनी चाहिए. उसे शास्त्रीय भाषा की भी मान्यता मिलनी चाहिए.
हिंदी दिवस के प्रसंग को ध्यान में रखते हुए आयोजित इस कार्यक्रम में प्रसाद, निराला, बच्चन, आचार्य विष्णु कांत शास्त्री तथा राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी की कविताओं की सांगीतिक प्रस्तुति ओम प्रकाश मिश्र ने की. इस मौके पर राज्यपाल ने रगिमा काकड़ा, कनुप्रिया खजांची एवं मनोज काकड़ा द्वारा कुमार सभा की नवनिर्मित वेबसाइट का लोकार्पण किया. इससे पहले समारोह का शुभारंभ गोपाल सिंह नेपाली की हिंदी वंदना से हुआ, जिसे स्वर दिया लोकप्रिय गायक सत्यनारायण तिवाड़ी ने.
कार्यक्रम का संचालन कुमारसभा के अध्यक्ष डॉ प्रेम शंकर त्रिपाठी ने किया. जबकि धन्यवाद ज्ञापन मार्गदर्शक जुगल किशोर जैथलिया ने किया. कुमारसभा की ओर से राज्यपाल के सम्मान समारोह के अंतर्गत साहित्य सचिव दुर्गा व्यास ने राज्यपाल को तिलक, माल्यार्पण महावीर बजाज, मोतियों की माला सज्जन तुलस्याम एवं शॉल जुगल किशोर जैथलिया ने प्रदान किया.
महानगर की कतिपय हिंदी सेवी संस्थाओं बड़ाबाजार लाइब्रेरी की ओर से कुसुम लूंडिया, जालान पुस्तकालय की दुर्गा व्यास, माहेश्वरी पुस्तकालय के गोपालदास सादानी, भारतीय भाषा परिषद के नंदलाल शाह, भारतीय संस्कृति संसद की तारा दुगड़, राजस्थान परिषद के शादरूल सिंह जैन, विचार मंच के सरदारमलल कांकरिया एवं राधेश्याम मिश्र, परचम के मुकुंद राठी, अनामिका के विमल लाठ, परिवार मिलन के राजेंद्र कानूनगो, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ कृपाशंकर चौबे, वचन पत्रिका के संपादक डॉ प्रकाश त्रिपाठी, अपनी भाषा के डॉ अमर नाथ, हिंदी प्राध्यापिका डॉ राजश्री शुक्ला, सहित्यिकी की सरोज शाह, हिंदी अकादमी पश्चिम बंगाल के शांतिलाल जैन, समाजसेवी नवनीत पांडेय ने राज्यपाल का अभिनंदन किया. लगातार जारी बारिश के बावजूद समारोह में कोलकाता एवं हावड़ा के कई साहित्यकार व समाजसेवी मौजूद थे.