कॉमनवेल्थ गेम्स में हावड़ा के लाल ने किया कमाल
हावड़ा : ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स के 56 केजी भारोत्तोलन वर्ग में स्वर्ण पदक जीत कर हावड़ा के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के युवक सुखेन दे ने पूरे देश का नाम रोशन किया है.सुखेन किसी परिचय का मोहताज नहीं है. सिर्फ 21 वर्ष की आयु में उसने वर्ष 2010 में दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीता था. सुखेन संकराइल का दुईला का रहनेवाला है.
इस बीच, यह खबर सुनते ही पड़ोसियों के साथ परिवार के सभी सदस्य गर्व महसूस कर रहे हैं. पिता मानिक चंद्र दे, मां मीना दे, बड़े भाई सौमेन दे को अब भी विश्वास नहीं हो रहा कि घर के छोटे लाल ने सिर्फ हावड़ा ही नहीं, बल्कि देश का नाम रोशन किया है. मां मीना देवी ने बताया कि 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में वह स्वर्ण पदक पाने से चूक गया था.
उस दिन रजत पदक से ही उसे संतोष करना पड़ा था. पिता मानिक चंद्र दे ने बताया कि घर की आर्थिक हालत दयनीय है. बड़ा बेटा समीर दे वाहन चालक है. मझला बेटा तेल कंपनी में ठेकेदार है. काफी संघर्ष के साथ जीवन कट रहा है, लेकिन सुखेन को स्वर्ण पदक मिलने की खबर से उनका जीवन सफल हो गया है. पिता ने बताया कि दो वर्ष पहले उसे आर्मी में नौकरी मिली है.
अपनी मंजिल को पाने के लिए वह पिछले 10 वर्षो से हम सभी से दूर है. अब तो बस इंतजार है कि जल्द ही मोबाइल फोन की घंटी बजे और सोना जीतनेवाले बेटे से दो बात हो जाये. मां मीना दे की आंखों में खुशी की आंसू साफ झलक रही थी. उन्होंने बताया कि तमाम आर्थिक तंगी होने के बावजूद सुखेन ने अपने इरादों को बुलंद रखा और इसी का नतीजा है कि आज हम सभी के जीवन में यह सुनहरा दिन आया.