कोलकाता: भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि पश्चिम बंगाल का वन विभाग हाथियों के गलियारे की पहचान करने और जंगली हाथियों की रेल दुर्घटनाओं में बार-बार होने वाली मौतों को रोकने में असफल रहा है.
दस्तावेजों की लेखा परीक्षक द्वारा जांच-पड़ताल करने पर पाया गया कि मई 2006 से नवंबर 2013 के बीच 50 हाथी रेल दुर्घटनाओं में मारे गये हैं. ये घटनाएं न्यू जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वार के बीच पड़नेवाली 168 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन पर हुई हैं, जो हाथियों के एक मुख्य गलियारे से गुजरती है. कैग ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय के सुझावों पर ध्यान नहीं दिया गया. हाथियों के गलियारे की न तो समीक्षा की गयी और न ही उन्हें सूचीबद्ध किया गया. इससे रेल दुर्घटनाओं के दौरान हाथियों के मरने की दर में कोई कमी नहीं आयी है, जिससे पता चलता है कि इस समस्या को सुलझाने में मौजूदा व्यवस्थाएं प्रभावी नहीं हैं.
वन्य जीवन शाखा के वार्षिक प्रतिवेदन में इस बात की ओर इशारा किया गया है कि रिहायशी, खेती और चाय के बागानों के तेजी से बढ़ने की वजह से न केवल जंगलांे और चारागाहों का संकुचन हुआ है, बल्कि इसने हाथियों के प्रवास के गलियारांे को भी छोटा किया है. उत्तरी बंगाल में वन विभाग ने 14 हाथियों के गलियारे की पहचान की है लेकिन नवंबर 2013 तक भी उन्हें सूचीबद्ध करना बाकी था.
कैग ने कहा है कि केवल पश्चिम मंडल में बक्सा के जंगलों में रेलवे लाइन के नजदीक हाथियों के प्रवास पर नजर रखने और रेलवे के नियंत्रण कक्ष को सूचित करने के लिए विभाग द्वारा कर्मचारियों और अस्थायी मजदूरों की तैनाती की गयी, ताकि नियंत्रण कक्ष से रेल के चालकों को सूचित किया जा सके. प्रतिवेदन में कहा गया है कि वन विभाग और रेलवे अधिकरणों ने नवंबर 2013 में निर्णय लिया कि इस व्यवस्था को अन्य तीन रेल मंडलों में भी लागू किया जायेगा, लेकिन यह क्रियान्वित नहीं किया जा सका. कैग ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रलय के सुझावों के बाद भी सरकार द्वारा हाथियों के गलियारे की समीक्षा न किये जाने को लेकर आलोचना की है. इसमें कहा गया है कि निदेशालय ने भी यह स्वीकार किया है कि लेखापरीक्षक का अवलोकन सही है और विभाग द्वारा किये गये अस्थायी प्रबंध प्रभावी नहीं हैं.