कोलकाता: महानगर को नीले व सफेद रंग से रंगने की मुहिम शुरू हो गयी है. इसे गुलाबी शहर, जयपुर के साथ जोड़कर देखा जा रहा है. बताया जा रहा है कि जिस तरह जयपुर की पहचान गुलाबी शहर के तौर पर हो गयी है, वैसे ही कोलकाता की पहचान उसे उसके नीले-सफेद रंग से करायी जायेगी. हालांकि जानकारों का कहना है कि जयपुर के साथ इसकी तुलना नहीं की जा सकती. 1727 में सवाई मान सिंह द्वारा देश का पहला प्लांड सिटी स्थापित किया गया था. लाल सैंडस्टोन को वह शहर को बनाने में इस्तेमाल करना चाहते थे. लेकिन वह इलाके में उपलब्ध नहीं था.
जय सिंह ने टेराकोटा की एक सतह बतौर पेंट भवनों के बाहरी चूनापत्थर में इस्तेमाल कराया. संगमरमर जैसा दिखने के लिए चूनापत्थर का इस्तेमाल किया गया और उसे पॉलिश भी किया गया. वास्तुकारों ने पॉलिश करके उसे संगमरमर सरीखा बना दिया. टेराकोटा भूरी-लालिमा लिये होता है और वह जली मिट्टी जैसा भी दिखता है. इसे गारू या गेरू भी कहा जाता है. जयपुर में टेराकोटा और गुलाबी दोनों ही दिखता है. कहा यह भी जाता है कि 1905-06 में प्रिंस व प्रिंसेस ऑफ वेल्स जयपुर गये थे और भवनों की रंगत को उन्होंने गलती से ‘गुलाबी’ बता दिया था.
हालांकि इसके बाद से गुलाबी रंग का इस्तेमाल शहर में खूब हुआ. हालांकि प्रश्न यह भी उठता है कि जयपुर से ऐन उलट नीले-सफेद रंगत की क्या कोई यहां पृष्टभूमि या इतिहास रहा है. इतिहासकार या फिर समाजशास्त्री अब भी नीले-सफेद रंग के साथ महानगर का लिंक खोज नहीं पाये हैं.
राज्य की विपक्षी पार्टियों का दावा है कि नीला-सफेद रंग मुख्यमंत्री को प्रिय है. लिहाजा उन्हें खुश करने के लिए ही ऐसा किया जा रहा है. कोलकाता नगर निगम द्वारा भवनों को इस रंग से रंगने में कर छूट की घोषणा का भी राजनीतिक दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है. उनका मानना है कि इससे किसी भी मोहल्ले में यह चिह्न्ति हो जायेगा कि कौन तृणमूल समर्थक है और कौन नहीं.