कोलकाता: बंगाल के राजनीतिक इतिहास में सोमवार को ऐसी घटनाएं हुईं, जो आज तक राज्य में नहीं हुई थी. बंगाल में अचानक ही भाजपा की बढ़ती शक्ति से सिर्फ सत्तारूढ़ पार्टी ही चिंतित नहीं, बल्कि दूसरे विपक्षी पार्टियों में भी खलबली मची है.
सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्षी पार्टी को तरजीह दी है. वाममोरचा के नेता सोमवार को तृणमूल कांग्रेस समर्थकों के खिलाफ शिकायत करने राज्य सचिवालय नवान्न भवन पहुंचे. मुख्यमंत्री ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ शिकायतें सुनीं.
यह पहला मौका था, जब वाममोरचा चेयरमैन बिमान बसु, सीएम से मिलने के लिए राज्य सचिवालय पहुंचे. राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाजपा की ताकत को कमजोर करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी पार्टी के साथ समझौता करने का मन बनाया है. कहने को तो वाम मोरचा नेता तृणमूल कांग्रेस द्वारा राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे हमलों के खिलाफ शिकायत करने पहुंचे थे, लेकिन जिस प्रकार से राज्य सचिवालय नवान्न भवन में उनका स्वागत किया गया, इससे राजनीतिक विशेषज्ञ किसी और नजर से ही देख रह हैं. मुख्यमंत्री खुद वाममोरचा के प्रतिनिधि दल का स्वागत करने के लिए लिफ्ट के बाहर इंतजार कर रही थीं. बैठक के बाद तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव वाम नेताओं को छोड़ने उनके वाहन तक आये थे. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, कभी वाम मोरचा के खिलाफ आग उगलनेवाली मुख्यमंत्री ने चुनाव में माकपा को मिले कम वोट पर चिंता व्यक्त की. मुख्यमंत्री ने चिंता जताते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में वाम मोरचा को कम वोट मिले हैं.
साथ ही वाम समर्थक लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं. इसे रोकने के लिए उनको प्रयास करना चाहिए. यहां तक कि मुर्शिदाबाद जिले में कांग्रेस को मिली जीत पर भी मुख्यमंत्री ने वाम मोरचा नेताओं से कहा कि उनके समर्थकों ने सही प्रकार से कार्य नहीं किया है. राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि यह अजीब लगता है कि माकपा को फिर से शक्तिशाली बनाने के लिए मुख्यमंत्री ही उन्हें सुझाव देने लगी हैं. मुख्यमंत्री ने वाममोरचा नेताओं को दो सदस्यीय संयोजक कमेटी का गठन करने का परामर्श दिया और इस कमेटी को तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश महासचिव पार्थ चटर्जी के साथ-साथ उनके साथ लगातार संपर्क में रहने की बात कही. अब यह सत्तारूढ़ दल व प्रमुख विपक्षी पार्टी का एक-दूसरे के प्रति प्रेम कितने समय तक बरकरार रहेगा, यह आनेवाला वक्त ही बतायेगा.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह बात तो स्पष्ट हो गयी है कि आनेवाले समय में भाजपा यहां एक बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है, इसलिए भाजपा की नींव को कमजोर करने के लिए यह सब कुछ हो रहा है. क्योंकि जिस प्रकार से भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में वोट मिला है, यह वर्ष 2016 में यहां होनेवाले विधानसभा चुनाव के समय सभी पार्टियों के लिए घातक साबित हो सकता है.