इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तरप्रदेश में हाल ही में पेश विवादास्पद आरक्षण नीति पर अपना आदेश सुरक्षित रखा. इस नीति के तहत प्रारंभिक स्तर पर ही जाति आधारित आरक्षण का प्रावधान किया गया है जिसके कारण शहर में हिंसक प्रदर्शन हुये थे.अदालत ने राज्य लोक सेवा आयोग से कहा है कि इस समय लोक सेवा परीक्षा के लिए चल रही साक्षात्कार की प्रक्रिया अगले 10 दिनों तक नहीं स्थगित रखे. न्यायमूर्ति लक्ष्मीकांत महापात्र और न्यायमूर्ति राकेश श्रीवास्तव ने इस आरक्षण नीति के खिलाफ इस समय प्रतियोगिता परीक्षा में हिस्सा लेने वाले सैकड़ों छात्रों ने याचिकायें दायर करके चुनौती दी थी. न्यायाधीशों ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुये कहा कि इस पर निर्णय बाद में सुनाया जायेगा.
न्यायालय के इस आदेश के परिणामस्वरुप अब 26 जुलाई से शुरु होने वाले साक्षात्कार कार्यक्रम में बदलाव किया जायेगा और इस दौरान उम्मीद है कि न्यायालय का निर्णय आ जायेगा. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील केशरीनाथ त्रिपाठी और रवि किरण जैन ने अदालत को बताया कि नई आरक्षण नीति ‘अवैध’ और असंवैधानिक है और इसका मकसद राज्य के सत्तारुढ पार्टी के करीब माने जाने वाले एक जातीय समूह को फायदा पहुंचाना है.
अदालत ने यूपीपीएससी से नई आरक्षण नीति पेश करने में जल्दबाजी का कारण भी पूछा है. इससे पहले अदालत को बताया गया कि आयोग के एक सदस्य की ओर से प्रस्ताव पेश किये जाने के बाद इसे ध्वनिमत से पास किया गया.उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की ओर से वकील शशि नंदन और राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सी बी यादव ने इन याचिकाओं का विरोध किया. उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा पेश तीन स्तरीय आरक्षण प्रणाली में प्रारंभिक परीक्षा के स्तर पर जाति आधारित आरक्षण का प्रस्ताव किया गया है. इसका छात्रों और कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया है.
बहरहाल, इस मुद्दे पर 15 जुलाई को हिंसक विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर शहर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. एहतियात के तौर पर जिला प्रशासन ने सोमवार और मंगलवार (आज और कल) स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही लोक सेवा आयोग के मुख्यालय की ओर जाने वाली सड़कों पर यातायात के मार्ग में परिवर्तन किया गया है और सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है.