।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः सियासत में जब आवाम से दूरी बढ़ जाए तो आवाम भी हुक्मरानों को नकार देती है. उत्तर प्रदेश की सत्ता गंवाने और लोकसभा चुनाव में जीरों पर क्लीन बोर्ड होने के बाद बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमों मायावती को इस सच का अहसास हुआ है. ऐसे में मायावती और उनके प्रमुख सिपहसलार अब पार्टी से जनता के कनेक्ट को बढ़ाने में जुट गए हैं. जिसके तहत अब आवाम तक पार्टी की सोच को पहुचाने के लिए बसपा नेता हर मंच का इस्तेमाल करेंगे, मीडिया से दूरी नहीं रखेंगे और सोशल मीडिया पर (टिवटर, फेशबुक और यूट्यूब) पार्टी का पक्ष तत्काल मुहैया कराएंगे. मायावती के इस फैसले के तहत मीडिया से दूर रहने वाली बसपा ने अब सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर अपनी आदम दर्ज करायी है.
आईटी विशेषज्ञ शरद मिश्र सोशल मीडिया पर बसपा के पहुंचने को मायावती की मजबूरी बता रहे हैं. शरद के अनुसार मायावती को अपना संदेश जनता तक पहुंचाना चाहती है और सोशल मीडिया ही उनकी इस मंशा को पूरा कर सकता है, इसलिए कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों की तरह बसपा भी सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर पहुंची हैं. और बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र ने अपने फेसबुक पेज पर मायावती सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए अखिलेश सरकार के कामकाज पर जनता की राय लेने का अभियान शुरू किया है. पार्टी में उनके खास कहे जाने वाले सांसद बृजेश पाठक भी फेसबुक पर अपने समर्थकों को गुडमार्निंग कहने लगे हैं. वह पार्टी के नारे भी अपने पेज पर चस्पा करते हैं.
सोशल मीडिया पर बसपा की इस आमद ने लोगों को आश्चर्य में डाला है, क्योंकि अपनी स्थापना के समय से ही बसपा नेताओं की मीडिया से नहीं बनी. बीते लोकसभा चुनाव तक मायावती मीडिया को मनुवादी बताती रही है. कांशीराम भी कहते थे कि हमारा वोटर अखबार नहीं पढ़ता. बसपा संस्थापक की इस सोच के तहत मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए किसी भी अखबार और चैनल को कोई इंटरव्यू नहीं दिया. सत्ता के बाहर होने के बाद भी उनका यह रूख कायम रहा. मीडिया से मायावती की इस दूरी को देखते हुए पार्टी के अन्य नेताओं भी किसी मुददे पर प्रतिक्रिया देने से बचते रहे. परिणामस्वरूप अहम राजनीतिक मुददों पर बसपा का विचार लोगों तक नहीं पहुंचे.
लगातार बदल रहे समाज में जहां त्वरित प्रक्रिया पब्लिक कनेक्ट बढ़ती है. परन्तु बसपा ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और लोकसभा चुनावों में मायावती इस मामले में मात खा गई. जिसके बाद ही वह यह जान गई कि पार्टी से जनता को जोड़े बिना कुछ होने वाला नहीं है. और जनता भी उसी के साथ खड़ी होगी जो पार्टी की सोच को लगातार जनता को बताता रहेगा. और जनता को अपने साथ जोडने के लिए मीडिया का साथ और सोशल मीडिया पर पार्टी की मौजूद होगा. यह समझ में आते ही मायावती ने सोशल मीडिया पर पार्टी के विचार उजागर करने का छूट पार्टी के प्रमुख नेताओं की दी.
पार्टी सुप्रीमों से मिली इस छूट के तहत बसपा महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र अब अपने फेसबुक पेज के जरिए जनता पूछ रहे हैं कि यूपी में बेहतर शासन कौन कर सकता है? मायावती या अखिलेश यादव. सतीश चन्द्र मिश्र का यह सवाल देश जनता को भाया नहीं यही वजह है कि नौ सौ से कम लोगों ने इनकी इस रायशुमारी पर अपनी राय दी है. हालांकि बसपा नेता ने अपने इस पेज पर यह भी बताया कि मायावती ने अपने बीते शासन काल में उर्जा की खपत को ध्यान में रखते हुए और विद्युत वितरण प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए क्या महत्वपूर्ण निर्णय लिए थे. गरीबी की रेखा के नीचे के लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम मायावती सरकार में उठाए गए थे.
अखिलेश सरकार द्वारा प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को स्कूल बैग और यूनीफार्म देने संबंधी निर्णय का संज्ञान लेते हुए मिश्र ने फेसबुक पेज पर दावा किया कि मायावती सरकार में करीब तीन करोड़ बच्चियों को नि:शुल्क ड्रेस उपलब्ध कराई गई थी. और यूपीएसआरटीसी की बसों के संचालन के लिए कंप्यूटर की जो मदद ली जा रही है उसकी शुरुआत मायावती के शासन में ही हो गई थी. बसपा महासचिव ने अपने फेसबुक पेज पर अभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रति आक्रमक रूख नहीं दिखाया है. कहा जा रहा है कि मायावती के निर्देश पर जल्दी ही मोदी के अच्छे दिनों को लेकर तंज कसे जाएंगे. तब तक सतीश मिश्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासन की खामियों को फेसबुक के अपने पेज पर उजागर करते रहेंगे.