।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊः देश के अतिसंवेदनशील जिले फैजाबाद की कचहरी में फिर हिंसक वारदात हुई. बुधवार को जिला कोर्ट में पेशी के लिए लाए गए पूर्व विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू सिंह और उनके भाई मोनू सिंह पर बम से हमला हुआ, गोली भी चली. इस हमले में दो व्यक्तियों की मौत हो गई. इस वारदात में मोनू सहित कई लोग घायल हो गए.
पुलिस को घटनास्थल से तीन जिंदा बम मिले हैं. सूबे के एडीजी कानून व्यवस्था मुकुल गोयल ने इस हिंसक घटना को पुरानी रंजिश का नतीजा बताया है. पर फैजाबाद में जारी हाई अलर्ट और न्यायालय की स्थायी सुरक्षा योजना के लागू होने के बाद भी कचेहरी परिसर में बम और शस्त्र लेकर हमलावर कैसे पहुंच गए मुकुल गोयल इसका जवाब नहीं दे सके. तो विपक्ष दलों ने कचेहरी परिसर में हुई इस वारदात को अखिलेश सरकार की लापरवाही का नतीजा बताया है. भाजपा प्रवक्ता विजय पाठक ने कहा है कि यदि कचेहरी परिसर में पुलिस अलर्ट होती और अखिलेश सरकार ने न्यायालयों की सुरक्षा को लेकर पूर्व सरकार द्वारा तैयार करायी योजना को ठीक से लागू कराया होता तो न्यायालय परिसर में किसी की बम और शस्त्र लेकर जाने की हिम्मत ना होती.
वास्तव में फैजाबाद की कचेहरी परिसर में हुई इस घटना ने न्यायालयों की सुरक्षा को लेकर पुलिस इंतजामों की पोल खोल दी है. हालांकि कुछ समय पूर्व ही अखिलेश सरकार ने यह दावा किया था कि सूबे की कोर्ट-कचहरियों की सुरक्षा व्यवस्था चौकस की गई है. फिर भी फैजाबाद कचेहरी परिसर में हमलावर पहुंच गए. पुलिस के सुरक्षा प्रबंधों के बीच भी. जिसे लेकर विपक्ष ने सरकार पर न्यायालयों के सुरक्षा प्रबंधों की अनदेखी किए जाने का आरोप अखिलेश सरकार पर लगाया है.
बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सरकार से पूछा है कि मायावती सरकार द्वारा न्यायालयों की स्थायी सुरक्षा को लेकर तैयार की गई योजना के अमल में कोताही क्यों बरती जा रही हैं. गौरतलब है कि मायावती ने 23 नवम्बर 2007 को लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी के कचहरी परिसरों में हुई ब्लास्ट की घटना के बाद हाईकोर्ट और जिला न्यायालयों की सुरक्षा के लिए पुख्ता योजना तैयार कर उसे लागू करने की घोषणा की थी. मायावती के इस ऐलान के बाद राज्य में इलाहाबाद एवं लखनऊ हाईकोर्ट परिसर एवं जिला न्यायालयों तथा न्यायाधीशों की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में प्रोटेक्शन रिव्यू ग्रुप की बैठक हुई.
जिसमें न्यायालयों की सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ को एक योजना तैयार करने का दायित्व सौंपा गया था. केन्द्र की इस संस्था ने इलाहाबाद तथा लखनऊ हाईकोर्ट परिसर की सुरक्षा लोकसभा के तर्ज पर करने संबंधी दो सौ से अधिक पेज की एक रिपोर्ट डेढ़ वर्ष पूर्व गृह विभाग को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में इलाहाबाद और लखनऊ हाईकोर्ट की सुरक्षा के लिए एक पृथक सुरक्षा संवर्ग का गठन कर उसे पुलिस के अधीन करने, दोनों ही परिसरों में आइपीएस अधिकारी की तैनाती कर उसे सुरक्षा का सम्पूर्ण दायित्व देने, न्यायालय परिसरों में सीसीटीवी कैमरे लगाने तथा परिसर में आने वाले न्यायाधीश, वकील, कर्मचारी एवं याचिकाकर्ताओं के प्रवेश पत्र बनाने एवं उनकी चेकिंग करने की व्यवस्था को लागू करने, इसके लिए परिसर में आरएफ रीडर सिस्टम एवं फ्लैप व बूम कैरियर लगाने, प्रवेश गेट के समीप एक्सरे स्कैनर मशीन एवं न्यायालय के हर गेट पर डोर फ्रेम मेटल डिटेक्टर लगाने, बम निरोधक दस्ते की तैनाती करने तथा न्यायाधीश, वकील, न्यायालय कर्मियों एवं याचिकाकर्ताओं के वाहनों के लिए परिसर के बाहर बहुमंजिली पार्किंग बनाने सहित कई सुझाव दिये गये.
जिनका संज्ञान लेते हुए मायावती सरकार ने जिला न्यायालयों में भी सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने, परिसर में आने वाले हर व्यक्ति की सघन तलाशी लेने व परिसर में जिला पुलिसकर्मियों की तैनाती करने और परिसर में लोगों की चेकिंग करके प्रवेश देने संबंधी व्यवस्था को लागू करने के निर्देश दिए. शेष बचे सुझावों को लागू करने का दायित्व अखिलेश सरकार का था, जिसके लिए गृह विभाग के बड़े अफसरों ने कई बैठके की पर न्यायालयों की सुरक्षा के लिए पृथक सुरक्षा संवर्ग के गठन का निर्णय नहीं लिया जा सका. हाईकोर्ट परिसर के नजदीक पार्किंग बनाने का कार्य भी नहीं हो सका. यही नहीं हाईकोर्ट परिसरों में एक्सरे स्कैनर मशीन एवं लोगों की तलाशी लेने तथा उन पर निगाह रखने संबंधी उपकरण नहीं लगाए जा सके.
जिला कचहरी की सुरक्षा के लिए भी रिपोर्ट में दिए गए सुझावों का लागू नहीं किया जा सका और फैजाबाद के कचेहरी परिसर में हमलावर शस्त्रों के साथ पहुंच गए. अब इस घटना के बाद अधिकारी अपनी कमियों को छिपाने के प्रयास में जुट गए हैं और कचेहरी परिसर में हुई वारदात को रंजिश का नतीजा बता रहे हैं. अखिलेश सरकार के इस तर्क तो विपक्षी नेताओं ने नकार दिया है और कहा है कि फैजाबाद जैसे अतिसंवेदनशील जिले में हुई यह हिंसक घटना सूबे की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इसका जवाब देना चाहिए.