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हार के भय से उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेगी बसपा

-राजेंद्र कुमार- लखनऊ : लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को मिली करारी हार के सदमे से पार्टी प्रमुख मायावती अभी तक उबर नहीं पायी हैं. हालांकि मायावती ने हार के कारणों को लेकर बीते पंद्रह दिनों में सैंकडों पार्टीजनों की राय जानी है और उसके आधार पर उन्होंने पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण […]

-राजेंद्र कुमार-

लखनऊ : लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को मिली करारी हार के सदमे से पार्टी प्रमुख मायावती अभी तक उबर नहीं पायी हैं. हालांकि मायावती ने हार के कारणों को लेकर बीते पंद्रह दिनों में सैंकडों पार्टीजनों की राय जानी है और उसके आधार पर उन्होंने पार्टी संगठन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किये हैं.

फिर भी मायावती को यह भरोसा नहीं हुआ है कि बसपा यूपी में एक लोकसभा और बाहर विधानसभा की रिक्त सीटों पर होने वाले उपचुनावों में जीत हासिल कर सकेगी. अपनी इसी सोच के चलते मायावती ने शुक्रवार को ऐलान किया कि बसपा यूपी में लोकसभा की एक और विधानसभा की बारह सीटों पर होने वाले उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेगी.

मायावती का तर्क है कि राज्यों में होने वाले उपचुनाव केंद्रीय निर्वाचन आयोग की देखरेख में नहीं होते. ऐसे में प्रदेश की सरकार नौकरशाही का अपने पक्ष में इस्तेमाल करके चुनाव लड़ती है और विपक्षी दलों को हरा देती है. इसलिए बसपा इन चुनावों से दूर रहेगी. मायावती के इस तर्क को सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी गलत बताते हैं. उनका कहना है कि चुनावों में हार के डर से ही मायावती उपचुनावों में बसपा उम्मीदवार नहीं उतार रही हैं.

सपा प्रवक्ता के इस कथन का लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष मिश्र भी सही मानते हैं. आशुतोष का कहना है कि वर्ष 1991 के बाद यूपी में भाजपा के पक्ष में ब्राह्मण, ठाकुर और अन्य जातियों के लोगों ने एकजुटता दिखायी है. यह एकजुटता अभी कुछ समय तो कायम रहेगी क्योंकि यूपी के लोग बसपा और सपा भी जातीय समीकरणों वाली राजन­ीति से ऊब गये थे. इसके चलते ही यूपी की जनता ने बसपा और रालोद के एक भी उम्मीदवार को जीतने लायक वोट नहीं दिये. जबकि बसपा ने यूपी की 80 संसदीय सीटों में से 21 पर ब्राह्मण और 19 पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए थे.

आशुतोष कहते हैं कि बसपा के प्रति यूपी की जनता के इस व्यवहार की मायावती ने समीक्षा की होगी और उन्हें लगा होगा कि उपचुनावों में पार्टी के उम्मीदवार की हार होने से पार्टी के संगठन को मजबूत करने का अभियान प्रभावित होगा. इसलिए बेहतर है कि इस वर्ष के अंत में होने वाले राज्यों में पार्टी संगठन को मजबूत कर वहां चुनाव लड़ा जाए और यूपी में होने वाले उपचुनावों से दूर रहा जाए. इसी सोच के तहत मायावती ने घोषणा कर दी है कि बसपा यूपी में मैनपुरी संसदीय सीट और विधानसभा की बारह सीटों पर होने वाले उपचुनावों में हिस्सा नहीं लेगी.

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