।।राजेन्द्र कुमार।।
लखनऊ:1962 में साइकिल से चुनाव प्रचार करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के लखनऊ संसदीय क्षेत्र में आज साइकिल से कोई चुनाव प्रचार नहीं करता. समाजवादी पार्टी जिसका चुनाव चिन्ह ही साइकिल है के प्रत्याशी अभिषेक मिश्र भी यहां फार्चूनर और इनोबा जैसी गाडि़यो से चुनाव प्रचार कर रहे है. यही हाल अन्य उम्मीदवारों का भी है. सबके सब बड़ी-बड़ी महंगी गाडियों में ही बैठकर यहां लोगों से वोट मांग रहे हैं. लोगों के दुख दर्द पूछ रहे हैं. शहर को चमन बनाने और लोगों की समस्याओं का निदान करने का वायदा कर रहे हैं. फिर भी लखनऊ शहर का माहौल देखकर यह नहीं लगता कि यह देश के प्रधानमंत्री का क्षेत्र रहा है. पिछले चुनाव की तरह कोई उत्साही माहौल इस बार भी लखनऊ के किसी कोने में नहीं है.
जबकि इस बार यहां से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसा क्यो है? लखनऊ में 1952 से चुनाव देख रहे भईया जी लखनऊ में सुस्त चुनावी माहौल को लेकर कहते हैं कि यहां राजनाथ सिंह के खिलाफ कोई मजबूत उम्मीदवार नहीं है. इसलिए चुनाव प्रचार में तेजी नहीं है. हालांकि राजनाथ सिंह अपने पूरे परिवार के साथ लखनऊ के चुनावी माहौल को गरम करने में लगे हैं. वह शहर की गोमती नदी को प्रदूषण मुक्त करने के साथ ही लखनऊ को बायो सिटी बनाने का वायदा भी शहरवासियों से कर रहे हैं.
फिर भी यहां के लोगों में चुनावों को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा. बल्कि नवाबों और बाबूओं के इस शहर में सचिवालय व अन्य सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारी अपनी सेवा सुविधाओं में इजाफा किए जाने की मांग को लेकर नोटा का बटन दबाने की धमकी देते जरूर दिख रहे हैं. विकास कार्य न होने से नाराज महोना गांव के लोगों ने चुनाव के बायकाट करने का भी ऐलान किया है. लखनऊ के ऐसे माहौल में राजनाथ सिंह के लिए अटल जी का नाम और मोदी लहर यहां मजबूत सहारा है. वही कांग्रेस उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी एंटी भाजपा वोटों के भरोसे उन्हें चुनौती दे रही है.
लखनऊ कैंट से विधायक रीता बहुगुणा को शहर के लोग बडबोली नेता बता कर उनके दावों पर ऐतबार नहीं कर रहे है. मनमोहन सरकार पर लगे आरोपों की रीता के पास कोई सफाई नहीं है. मायावती ने यहां फिर से नकुल दुबे को मौका दिया है। सतीश मिश्र के करीबी लोगों में शामिल नकुल बीते लोकसभा चुनावों में लालजी टण्डन से चुनाव हारे थे. बसपा के दलित और ब्राह्यण वोटों के भरोसे ही वह राजनाथ सिंह को चुनौती देने का प्रयास कर रहे है.
जबकि सपा ने यहां एक साल से चुनाव प्रचार कर रहे अशोक वाजपेयी का टिकट काटकर अभिषेक मिश्र को राजनाथ से मुकाबला करने के लिए एक माह पूर्व ही उतारा है. एक आईएएस अधिकारी के पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चहेते मंत्रियों में शामिल अभिषेक को यहां सपा भी मुस्लिम एजेंडे और सत्ता की धमक का आसरा है. उन्हें मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री ने शहर की सड़कों पर रोडशो भी किया. वही आम आदमी पार्टी ने फिल्म अमिनेता जावेद जाफरी को मैदान में उतारकर चुनाव को रोचक बनाने की कोशिश की है.
अदब व तहजीब के लिए मशहूर इस लखनऊ संसदीय क्षेत्र में कुल 28 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं परन्तु इनमें से कोई भी अटलजी जैसी छाप लोगों के दिलों पर अभी तक नहीं छोड़ पाया हैं. लखनऊ के लोग जाप-पात के झमेले में नहीं पड़ते. यहां के लोग उम्मीदवार की जात के बजाए उसके सियासी रूतबे को महत्व देते हैं. यहां पांच बार सांसद निर्वाचित हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विजयलक्ष्मी पंडित, शीला कौल और हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे नेताओं की आवाज लोगों की इसी सोच के चलते लोकसभा में सुनायी दी. वोटरों के इस स्वाभाविक रूझान को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने पक्ष में मान रहे हैं.
उनके चुनाव प्रचार में लगे नरेन्द्र सिंह राणा के अनुसार राजनाथ सिंह का व्यक्तित्व अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले कहीं भारी है. यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सबको साथ लेकर चले और हर किसी की तकलीफ दूर करने का प्रयास किया था. राजनाथ सिंह के इस स्वभाव को लोग याद करते हैं. कांग्रेस उम्मीदवार रीता बहुगुणा राणा के इस तर्क को गलत बताती है. एंटी भाजपा वोटों के भरोसे चुनाव मैदान में डटी रीता यहां पर्वतीय क्षेत्र के मतदाताओं पर अपना दावा बताती हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपुत के अनुसार देश में भले ही कोई लहर चले परन्तु लखनऊ में माहौल अलहदा है. यहां रीता को हर वर्ग का वोट मिल रहा है। राजपूत के इस दावे में कितना दम है यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे. लेकिन इतना तय है कि 18 लाख वोटरों वाली इस लखनऊ संसदीय क्षेत्र में मुस्लिम और ब्राह्यण मतदाता अहम भूमिका अदा करेंगे. इन्हें अपनी तरफ करने के लिए सभी ने ताकत लगाई है. राजनाथ सिंह से लेकर रीता बहुगुणा और अन्य उम्मीदवारों ने मुस्लिम धर्मगुरूओं से मिलकर उनकी आर्शीवाद लिया, लेकिन लखनऊ के उत्साहहीन माहौल में भाजपा को कौन रोकने में कौन सफल होगा? होगा भी या नहीं? यह अभी स्पष्ट नहीं हो रहा.