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अब सोनिया की है इंदिरा की रायबरेली

-रायबरेली से राजेन्द्र कुमार-प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई संसदीय क्षेत्र होगा, जहां सांसद के लिए आवंटित राशि से ज्यादा निधि खर्च हुई हो, लेकिन यूपी की राजधानी से 80 किलोमीटर दूर रायबरेली में यह रिकार्ड टूटा है. यहां बारह सांसदों ने अपनी सांसद निधि विकास कार्यों को कराने में खर्च की है. क्यो, क्योंकि […]

-रायबरेली से राजेन्द्र कुमार-
प्रदेश में शायद ही ऐसा कोई संसदीय क्षेत्र होगा, जहां सांसद के लिए आवंटित राशि से ज्यादा निधि खर्च हुई हो, लेकिन यूपी की राजधानी से 80 किलोमीटर दूर रायबरेली में यह रिकार्ड टूटा है. यहां बारह सांसदों ने अपनी सांसद निधि विकास कार्यों को कराने में खर्च की है. क्यो, क्योंकि रायबरेली इंदिरा गांधी का चुनाव क्षेत्र रहा है. 1967, 71 और 80 में वह यहां से सांसद रही. इससे पहले दो बार फिरोज गांधी यहां से लोकसभा पहुंचे. कांग्रेस के मजबूत असर वाली इस सीट से हुए लोकसभा के 16 चुनावों में तीन बार को छोड़कर यहां हर बार कांग्रेस का ही परचम लहरा है.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी वर्ष 2004 से लगातार यहां की सांसद है. इस बार वह जीत की हैट्रिक बनाने की राह पर हैं. इस देश की सबसे वीवीआईपी सीट कहा जाता है. और इंदिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी फिर यहां से अपनी जीत को लेकर बेफिक्र हैं. यही वजह है कि सोनिया गांधी रायबरेली में चुनाव प्रचार करने के बजाए सोनिया देश के अन्य हिस्सों में पार्टी उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार करने में जुटी हैं. जबकि सपा को छोड़ अन्य दल उन्हें पराजित करने के लिए दिन रात दौड़ धूप कर रहे हैं.

सोनिया की बेटी प्रियंका गांधी विपक्षी दलों की इस मेहनत पर पानी फेरने के लिए रायबरेली को अपना ठिकाना बना लिया है और सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है. प्रियंका को समूचे रायबरेली के लोग बेटी के रूप में स्नेह करते हैं. प्रियंका के कहे को सम्मान देते है. 1999 के चुनाव में पहली बार प्रियंका गांधी यहां चुनाव प्रचार करने आयी थी. कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में तब कैप्टन सतीश शर्मा यहां से चुनाव लड़ रहे थे. उनके मुकाबले यहां अरूण नेहरू चुनाव मैदान में थे. सतीश शर्मा कमजोर पड़ रहे थे, इसलिए उन्होंने प्रियंका को चुनाव प्रचार के लिए बुलाया. प्रियंका ने रायबरेली में रोडशो करते हुए बछरावां में एक सभा को संबोधित किया और कहा कि अरूण नेहरू गददार है. मेरे पिता के मंत्रिमंडल में रहते हुए उन्होंने उनकी पीठ में छुरा घोंपा. उनकी हिम्मत कैसे ही कि वे हमारे यहां की इस सीट चुनाव लड़ने आ गए. आप उन्हें भगा दीजिए. प्रियंका की इस ललकार के बाद यहां के लोगों ने ना सिर्फ अरूण नेहरू को हराया बल्कि उनकी जमानत तक जब्त करा दी. बेबाकी से बोलने वाली ऐसी प्रियंका अब रायबरेली को अपना धार्मिक स्थल बताते हुए गांव-गांव में लोगों से मिल रही हैं. वह रायबरेली में सोनिया गांधी द्वारा कराए गए विकास कार्यों के बारे में भी लोगों को बता रही हैं. इसके अलावा प्रियंका रोज यहां इंदिरा गांधी का जिक्र भी करती हैं.

प्रचार अभियान के दौरान प्रियंका खेतों में कामकर रही महिलाओं के साथ जमीन पर बैठकर खाना खा लेती हैं. बचपन में पिता की उंगली पकड़ कर यहां आने की कहानी सुना कर लोगों को भावुक कर देती हैं. कैसे पहली बार वह अपनी दादी के साथ यहां आई थी. तब यहां सड़के कैसी थी? यह बताते हुए प्रियंका यहां डेढ़ वर्ष से बन रही लखनऊ से रायबरेली फोर लैन रोड़ और भव्य रेल कारखाने का जिक्र कर यह दावा कर रही हैं कि सोनिया गांधी से लेकर पूरे गांधी परिवार ने कैसे रायबरेली में शिक्षा, स्वास्थ्य और अवस्थापना संबंधी अरबों रुपयों के कार्य कराए हैं. वह यह भी कहती हैं कि दादी दादी के संसदीय क्षेत्र को मां ने बदल दिया है. उसे आधुनिक बना दिया है. बैल के बजाय अब ट्रैक्टर से लोग यहां खेती कर रहे हैं. यहां पर अब लगातार बिजली आती है. बड़े-बड़े उद्योग यहां लगे हुए हैं.

प्रियंका गांधी के इस दावे का जवाब यहां सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे भाजपा के अजय अग्रवाल के पास नहीं है. अजय अग्रवाल का रायबरेली के कोई नाता नहीं रहा है. वह सुप्रीमकोर्ट में वकालत करते हैं. पीआईएल दाखिल करने वाले वकील के रूप में उनकी यहां पर चर्चा हो रही है. रायबरेली के लोग उन्हें गभीरता से नहीं ले रहे. हालांकि अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए अजय बीते 20 दिनों से यहां गांव-गांव घूम रहे हैं. नरेन्द्र मोदी के नाम पर वह यहां वोट मांग रहे हैं. इसके पहले अजय अग्रवाल यहां के किसी गांव में नहीं गए थे. सपा ने बड़े नेता के खिलाफ प्रत्याशी ना उतारने की नीति के तहत सोनिया गांधी के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है. जबकि बसपा ने प्रवेश सिंह और आम आदमी पार्टी (आप) ने अर्चना श्रीवास्तव को उम्मीदवार बनाया है. यह दोनों भी सोनिया गांधी के लिए यहां किसी भी तरह की चुनौती नहीं पेश कर सके हैं.

कुल 17 उम्मीदवार इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं. समूचे संसदीय क्षेत्र में घूमने से यह साफ दिखता है कि यहां के लोगों पर किसी लहर या हवा का कोई असर नहीं है. रायबरेली सोनिया और गांधी परिवार का अजेय दुर्ग है. इंदिरा गांधी आज भी यहां के लोगों के जहन में बसी हैं और यहां बुनियादी सुविधाओं, विकास से लेकर प्रति व्यक्ति आय सहित तमाम मसलों पर कोई बहस नहीं है गांधी परिवार से लोगों की आत्मीयता इतनी ज्यादा है कि यहां हर चर्चा गांधी परिवार से शुरू होती है और इसी पर ही आकर विराम लेती है दूसरे संसदीय क्षेत्रों की तरह यहां जातीय राजनीति नहीं चलती और ना ही यहां जातीय आंकड़ों को गिनाकर लोग बताते हैं कि किसे कितने वोट मिलेंगे यहां तो बीते कई वर्षो से लोगों के लिए गांधी परिवार को ही‍ नुमाइन्दा चुनना स्वाभिमान से जुड़ा मामला बनता चला आ रहा है आखिर क्यों लगातार यहां गांधी परिवार पर विश्वास करते हैं? यह सवाल पूछने पर रामलखन पासी कहते हैं कि किसी एक जिले में इतने सारे उपक्रम देश में शायद ही हों जितने रायबरेली में हैं कोई व्यक्ति अगर पांच साल बाद शहर में आए तो अपने घर का रास्ता भूल जाए गांधी परिवार ने यहां लोगों की तकदीर बदली है शहर को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया है बाकी ने तो बाते ही की है .

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