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ओके::सूप, डलिया बनाने वाले मोहली आज भी झेल रहे उपेक्षा का दंश -कड़ी मेहनत के बावजूद भी नहीं मिल पाती उचित मजदूरी -सरकार की ओर से इन्हें बढ़ावा देने के लिये कोई योजना भी नहीं चलायी जा रही प्रतिनिधि, साहिबगंजलोकआस्था का महापर्व छठ में सूप, डलिया आदि बांस से निर्मित वस्तुओं का विशेष महत्व है. […]

ओके::सूप, डलिया बनाने वाले मोहली आज भी झेल रहे उपेक्षा का दंश -कड़ी मेहनत के बावजूद भी नहीं मिल पाती उचित मजदूरी -सरकार की ओर से इन्हें बढ़ावा देने के लिये कोई योजना भी नहीं चलायी जा रही प्रतिनिधि, साहिबगंजलोकआस्था का महापर्व छठ में सूप, डलिया आदि बांस से निर्मित वस्तुओं का विशेष महत्व है. लेकिन इनका निर्माण करने वाले मोहली जाति लोग आज भी उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. शहर के नॉर्थ कॉलोनी में सूप व डालिया बना कर अपनी जीविका चलाने वाले मोहली जाति के परिवारों को मेहनत के हिसाब से आय नहीं हो पा रहा है. इस बाबत अशोक मोहली ने बताया कि पहले की अपेक्षा बांस भी महंगा हो गया है. दिनभर पूरे परिवार के साथ मेहनत करते हैं. लेकिन इसके बावजूद मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता है. साप्ताहिक हाट में सूप 40 रुपये जोड़ा के हिसाब से बेचा जाता है. इधर झारखंड सरकार द्वारा हस्तशिल्प को विकसित करने के लिये जिलास्तर पर सूप, डलिया, निर्माण का प्रशिक्षण चलाया जा रहा है. लेकिन जिले में इस व्यवसाय से जुड़े लोग उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं. वहीं अशोक डोम ने बताया कि बांस 100 से 150 रुपये में बिक्री हो रही है. एक बांस में चार से पांच सूप बनाते हैं. जिसका बाजार में 40 रूपया जोड़ा मिला है. वहीं थोक विक्रेता को 30 रुपये जोड़ा के हिसाब से सूप बेचना पड़ता है. वहीं जिले के थोक व्यापारी सूप व डालिया सहित कई सामग्री खरीद कर दूसरे जिले में ऊंची कीमत पर बेचते हैं. इस जाति के प्रति सरकार कोई ठोस योजना नहीं चला रही है. जिसके कारण जीविकोपार्जन की समस्या उत्पन्न हो गयी है.

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