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कोरोना जल्द जानेवाला नहीं है, हमें इसके साथ ही जीने की आदत डालनी होगी

कोरोना वायरस जाते-जाते बहुत कुछ सिखा कर जायेगा. अभी कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए देश भर में लॉकडाउन है. इससे हमारी जीवनशैली बिल्कुल बदल गयी है. लॉकडाउन खुलेगा, तो लोग ऑफिस जायेंगे. तब परिस्थिति बदली-बदली होगी. दैनिक जीवनशैली के साथ-साथ सामाजिक व मानसिक स्थिति बदली हुई दिखेगी. आनेवाले दिनों में और किस-किस तरह के बदलाव आयेंगे? कोरोना से किस प्रकार हमारा जीवन बदल रहा है और आनेवाले दिन कैसे होंगे? ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों पर रिम्स निदेशक डॉ दिनेश कुमार सिंह से राजीव पांडेय ने बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश.

कोरोना वायरस जाते-जाते बहुत कुछ सिखा कर जायेगा. अभी कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए देश भर में लॉकडाउन है. इससे हमारी जीवनशैली बिल्कुल बदल गयी है. लॉकडाउन खुलेगा, तो लोग ऑफिस जायेंगे. तब परिस्थिति बदली-बदली होगी. दैनिक जीवनशैली के साथ-साथ सामाजिक व मानसिक स्थिति बदली हुई दिखेगी. आनेवाले दिनों में और किस-किस तरह के बदलाव आयेंगे? कोरोना से किस प्रकार हमारा जीवन बदल रहा है और आनेवाले दिन कैसे होंगे? ऐसे ही महत्वपूर्ण विषयों पर रिम्स निदेशक डॉ दिनेश कुमार सिंह से राजीव पांडेय ने बातचीत की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश.

लॉकडाउन हटेगा और जीवन पटरी पर आयेगी, लेकिन जीवन में क्या बदलाव हाे जायेगा?

कोरोना वायरस बहुत जल्द जानेवाला नहीं है. हमें इसके साथ ही जीने की आदत डालनी होगी. लॉकडाउन खुलने पर जब हम सड़क पर निकलेंगे, तो बहुत कुछ बदला हुआ दिखेगा. मॉल, होटल, पार्क, रेलवे स्टेशन व एयरपोर्ट सबकी सूरत बदल जायेगी. सामाजिक दूरी बन जायेगी. जो मौज-मस्ती यहां दिखाई देती थी, वह सीमित हो जायेगी. लोग मास्क लगाये और हैंड सेनिटाइजर लिये दिखेंगे. हमें अब इसकी आदत डालने की जरूरत भी है. इसी आदत से हम स्वयं को बचा सकते हैं. पहले यह दृश्य विदेशों में दिखाई देता था, अब अपने देश में भी दिखाई देगा. लोगों में जागरुकता पैदा करनी होगी कि मास्क लगा कर ही निकलना है. सरकार की सख्ती के बजाय हम अपने में सुधार लायें, तो ज्यादा अच्छा होगा. ऑफिस कल्चर बदल जायेगा. बड़ी-बड़ी कंपनियां जिनमें घर से काम करने की छूट थी, अब उसका अनुपालन सरकारी कार्यालयों में होने लगेगा.

सोशल डिस्टेंसिंग से तो रिश्ताें में दूरी आयेगी. स्वयं में जीने लगेंगे, तो घर में रहते हुए भी हम अपने परिवार के बीच नहीं रह पायेंगे. कैसे सामंजस्य बनाया जाये?

सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तो करना ही होगा, क्योंकि बचाव का यह एकमात्र रास्ता है. अपने परिवार में हमें अावश्यक दूरी बना कर रखनी होगी. बच्चों को इसकी शिक्षा देनी होगी, क्योंकि वह स्कूल-कॉलेज जायेंगे. हर जगह आप साथ नहीं जा सकते हैं, इसलिए उन्हें जागरूक करना होगा. समाजशास्त्रियों व मनोवैज्ञानिकों को अब नयी राह दिखानी होगी. परिवार के साथ रहिये, लेकिन डायनिंग टेबल का स्पेस बढ़ा दीजिये. दो बेड को जोड़ कर बड़ा किये हैं, तो अलग-अलग कर दीजिये.

मन से एक साथ रहना होगा, लेकिन तन से नहीं. कोरोना को छोड़ कर अन्य बीमारी से लोग पीड़ित होंगे ही. ऐसे में अस्पताल, क्लिनिक व डॉक्टरी पेशा में क्या बदलाव आयेगा?

अन्य बीमारी में छूने, हाथ मिलाने व खांसने से आप संक्रमित नहीं होते हैं. कोरोना नयी बीमारी है, इसकी दवा नहीं है. मेडिकल साइंस में शोध शुरू हो गयेे हैं, इसलिए कुछ दिन में दवा व इंजेक्शन भी आ जायेगा. अस्पताल व क्लिनिक खुलेंगे ही, लेकिन डॉक्टरी पेशा बदल जायेगा. सुरक्षा पर खर्च करने पड़ेंगे. मरीज को नये नियम-कानून के दायरे में आना होगा. ज्यादा खौफ का माहौल नहीं बनाना है. बीमारी है, तो निदान आयेगा ही. सकारात्मक सोच रखेें, सब ठीक हो जायेगा. अभी तक हमलोग पौष्टिक खान-पान से ही ठीक हो रहे हैं.

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