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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिये कविताओं का विश्लेषण होगा आसान, BIT मेसरा ने तैयार की लर्निंग मशीन

इससे कविताओं का विश्लेषण करना आसान होगा. डॉ नीरज ने बताया कि अक्सर कविताओं के साहित्यिक विश्लेषण में पूर्वाग्रह का प्रभाव दिखता है. इससे कविताओं की सही प्रकृति और गुणवत्ता तय करने में दुविधा की स्थिति बनी रहती थी.

रांची, अभिषेक रॉय: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने अब साहित्य के क्षेत्र में भी दस्तक दे दी है. बीआइटी मेसरा के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के डॉ नीरज कुमार सिंह और उनकी टीम ने मशीन लर्निंग के जरिये कविताओं के मात्रात्मक विश्लेषण (ऑटोमेटेड एनालिसिस) की एक बौद्धिक प्रक्रिया तैयार की है. इसमें मुख्य रूप से टेक्सट-टू-मात्रा, आरपाजेन और फॉस्कल जैसे टूल्स का इस्तेमाल किया जा रहा है.

इससे कविताओं का विश्लेषण करना आसान होगा. डॉ नीरज ने बताया कि अक्सर कविताओं के साहित्यिक विश्लेषण में पूर्वाग्रह का प्रभाव दिखता है. इससे कविताओं की सही प्रकृति और गुणवत्ता तय करने में दुविधा की स्थिति बनी रहती थी. जबकि, प्रस्तावित सॉफ्टवेयर टूल्स से ऑटोमेटेड एनालिसिस कर इसे व्यक्तिपरक दृष्टि से मुक्त रखा जा सकेगा. इस प्रकार से प्राप्त डाटा मशीन लर्निंग की प्रक्रिया को आसान बनायेगी.

क्वांटिटेटिव एनालिसिस करना आसान :

डॉ नीरज ने बताया कि यह तकनीक नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग पर आधारित है, जहां मशीन लर्निंग को एक खास एल्गोरिदम के मानकों से जोड़ा गया है. इसमें कविता को सब्जेक्ट की जगह ऑब्जेक्ट के रूप में चिह्नित किया जायेगा. इससे किसी भी कविता की संरचना, भाव, अंत्यानुप्रास का एक निश्चित आकलन हो सकेगा. वर्तमान में यह तकनीक हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि) में लिखी गयी कविताओं का विश्लेषण करने में सक्षम है.

साथ ही कविता की रचना में हुई अशुद्धियों को चिह्नित कर उसे शुद्ध करने में मदद करेगी. प्रस्तावित तकनीक हिंदी की बोलियों जैसे अवधि, ब्रजभाषा, बघेली आदि में तैयार छंद, गद्य व कविताओं का ऑटेमेटेड एनालिसिस करने में भी सक्षम है. विभाग में चल रहे ये शोध कार्यों को विभिन्न प्रतिष्ठित शोधपत्रों (विले, आइ ट्रिपल इ, ऑक्सफोर्ड एकेडमिक आदि) में प्रकाशित किया जा चुका हैं. इन शोधकार्यों में विभाग की पीएचडी शोधार्थी कोमल नाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसके अलावा विभाग के विद्यार्थी राज आर्यन, सुमित अग्रवाल, सौनक बनर्जी समेत अन्य ने भी अपना योगदान दिया. इस शोध का लाभ शिक्षा, समीक्षा, मनोरंजन, चिकित्सा के क्षेत्र को मिलेगा,

झारखंड की जनजातीय भाषा की काव्य संपदा पर होगा शोध

आनेवाले समय में डॉ नीरज की टीम मशिन लर्निंग के ऑटोमेटेड एनालिसिस से झारखंड के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं की काव्य संपदा पर शोध करने की तैयारी में है. इस शोध से राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर लाने काम संभव होगा. डॉ नीरज साहित्यिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं. बीते तीन दशक में विभिन्न विधाओं में सैकड़ों कविताएं लिख चुके हैं. अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हिंदी काव्य संकलन ‘मधुमती’, ‘चर्चा उनकी न करो’, और ‘मौसम बदलना चाहिए’ इनकी कुछ प्रमुख कृतियां हैं.

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