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कल्याण के अस्पतालों में न दवा और न ही चिकित्सक
रांची: राज्य के जनजातीय इलाके में कल्याण विभाग के 35 आयुर्वेदिक अस्पताल संचालित हैं. इन अस्पतालों में दवाएं नहीं रहतीं. यहां बगैर दवा के ही चिकित्सक अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. दरअसल, इन अस्पतालों में दवा व चिकित्सक दोनों की भारी कमी है. कुल 35 अस्पतालों के लिए वर्तमान में सात चिकित्सक हैं, जो एक […]
रांची: राज्य के जनजातीय इलाके में कल्याण विभाग के 35 आयुर्वेदिक अस्पताल संचालित हैं. इन अस्पतालों में दवाएं नहीं रहतीं. यहां बगैर दवा के ही चिकित्सक अपनी ड्यूटी कर रहे हैं. दरअसल, इन अस्पतालों में दवा व चिकित्सक दोनों की भारी कमी है.
कुल 35 अस्पतालों के लिए वर्तमान में सात चिकित्सक हैं, जो एक से अधिक अस्पतालों के प्रभार में हैं. एक चिकित्सक डॉ सीबी सिंह इसी वर्ष जुलाई में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. तब चिकित्सकों की संख्या छह रह जायेगी. ऐसे हालात में ज्यादातर अस्पताल वैद्य सहायकों के भरोसे हैं, जो मरीज को अपने हिसाब से दवा देते हैं.
मरीज को चाहिए 40 गोलियां, देते हैं 10
इन अस्पतालों में दवाएं भी नहीं रहती. एक चिकित्सक ने बताया कि जिन मरीजों को 40 गोली देनी है, उन्हें 10 गोली देकर ही काम चलाया जाता है. इसके बाद भी डेढ़ से दो माह में ही दवाएं खत्म हो जाती हैं. दरअसल, कल्याण विभाग प्रति चिकित्सालय दवा मद में 15-20 हजार रुपये सालाना देता है. वहीं, डिमांड करीब डेढ़ लाख रुपये तक की है. इधर, वैद्य सहायक सहित स्वीपर व रसोइया की संख्या भी कम हो गयी है. इन सबके कुल 59 सृजित पदों के विरुद्ध अभी सिर्फ 16 लोग कार्यरत हैं. उक्त 35 अस्पतालों में से 10 पहाड़ पर हैं.
पांच मेसो अस्पताल अब तक संचालित नहीं
राज्य के जनजातीय इलाके (मेसो क्षेत्र) में 50-50 बेड वाले 14 अस्पताल खुलने थे. इनमें से पांच मेसो अस्पतालों का संचालन आज तक शुरू नहीं हो पाया है. करीब सवा-सवा करोड़ की लागत से चार वर्ष पहले बने इन अस्पतालों में बाड़ाचिरू (प.सिंहभूम), मनन चेताग (लातेहार), बानो (सिमडेगा), लोटाडीह (प.सिंहभूम) व नागफेनी (गुमला) अस्पताल शामिल हैं. गैर सरकारी संस्थाओं या अस्पतालों के माध्यम से इनका संचालन होना है. पर अभी तक यह मामला प्रक्रिया में ही उलझा है. संचालित हो रहे नौ अस्पतालों से संबद्ध संस्थाओं को सरकार प्रति अस्पताल 1.59 करोड़ रुपये का सालाना भुगतान करती है.
संताल परगना में हालत और भी खस्ता
संताल परगना में रहनेवाली पहाड़िया जनजातियों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर इन्हें संचालित किया जाता है. इनकी हालत तो अौर खराब है. इन सभी अस्पतालों के लिए एक ही चिकित्सक (डॉ अरविंद) हैं. अायुर्वेदिक अस्पतालों में भवन व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था भी ठीक नहीं है. दूरदराज के जनजातीय इलाके के इन अस्पतालों में से ज्यादातर की छत का प्लास्टर झड़ता है. खिड़कियां टूटी हैं तथा भवन जर्जर हैं. लोहरदगा के मक्का अस्पताल सहित कई अस्पतालों में तो पानी भी नहीं है.
पहाड़िया हेल्थ सब सेंटर भी चौपट
कल्याण विभाग संताल परगना में 10 आयुर्वेदिक चिकित्सालय के अलावा कुल 18 पहाड़िया हेल्थ सब सेंटर भी चलाता है. दुमका के आठ, साहेबगंज के छह, पाकुड़ के दो तथा गोड्डा के दो सब सेंटर में एलोपैथिक इलाज होता है. संताल परगना में रहनेवाली पहाड़िया जनजातियों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए इन्हें संचालित किया जाता है. पर खबर है कि दुमका, साहेबगंज, पाकुड़ व गोड्डा जिलों के ये अस्पताल बिरले ही खुलते हैं. इन 18 अस्पतालों के लिए अभी सिर्फ दो चिकित्सक हैं. यहां कार्यरत एक चिकित्सक ने बताया कि चालू वर्ष में इन केंद्रों के लिए दवाएं भी नहीं खरीदी जा सकी है.
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