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पुण्यतिथि आज : झारखंड के प्रणेता मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा

!!शैलेंद्र महतो!! झारखंड राज्य की परिकल्पना, झारखंडी संस्कृति, अस्मिता एवं पहचान को आजादी के पूर्व के वर्षाें में जिस व्यक्ति ने राजनीतिक धरातल पर प्रस्तुत किया-वह मरांग गाेमके जयपाल सिंह मुंडा थे. इन्हें पता था कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के पश्चात भाेली-भाली, सीधी-सादी झारखंडी जनता बिहार, बंगाल, आेड़िशा और मध्य प्रदेश सरकार की उपनिवेशवादी […]

!!शैलेंद्र महतो!!
झारखंड राज्य की परिकल्पना, झारखंडी संस्कृति, अस्मिता एवं पहचान को आजादी के पूर्व के वर्षाें में जिस व्यक्ति ने राजनीतिक धरातल पर प्रस्तुत किया-वह मरांग गाेमके जयपाल सिंह मुंडा थे.
इन्हें पता था कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति के पश्चात भाेली-भाली, सीधी-सादी झारखंडी जनता बिहार, बंगाल, आेड़िशा और मध्य प्रदेश सरकार की उपनिवेशवादी नीति का शिकार हाे जायेगी. उनकी जमीन और जंगल पर विभिन्न राज्याें से आये लाेग कब्जा जमा कर उनका शाेषण, उत्पीड़न आैर दाेहन करेंगे. अत: एक अलग झारखंड राज्य ही झारखंडी लाेगाें की सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक आैर पारंपारिक मूल्याें की रक्षा कर सकता है.
जन्म एवं शिक्षा : जयपाल सिंह मुंडा का जन्म रांची जिले के तत्कालीन खूंटी थाना के टकरा गांव में तीन जनवरी 1903 काे हुआ था. उनके पिता का नाम आमरु पाहन मुंडा था. प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त की. उन्हाेंने 1910 में रांची चर्च राेड एसपीजी मिशन द्वारा स्थापित संत पॉल हाइस्कूल में दाखिला लिया आैर 1919 में प्रथम श्रेणी से मैट्रिक पास किया.
उनकी इस उपलब्धि से प्रधानाध्यापक काफी खुश हुए आैर उन्हें उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए इंग्लैंड भेजा. सन 1920 में जयपाल सिंह कैंटरबरी के संत अगस्टाइन कॉलेज में दाखिल हुए. सन 1922 में अॉक्सफाेर्ड के संत जांस कॉलेज में दाखिला लिया. अॉक्सफाेर्ड यूनिवर्सिटी में जयपाल सिंह मुंडा ने पढ़ाई के अलावा हॉकी में प्रसिद्धि हासिल की. 1928 में हॉलैंड के एम्सटर्डम में हुए आेलंपिक खेल में भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी जयपाल सिंह ने की आैर उनके नेतृत्व में भारत काे अप्रत्याशित जीत हासिल हुई. इससे भारतीय झाेली में गाेल्ड आया आैर दुनिया में भारत का नाम रोशन हुआ.
जयपाल नहीं बने पादरी : इंग्लैंड प्रवास में जयपाल सिंह ने फादर केनाेन क्राेसग्रेव के अभिभावकत्व में एक अनुशासित एवं मर्यादित जीवन शैली काे अंगीकार किया आैर उन्हाेंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया. उनके गुरु फादर केनाेन क्राेसग्रेव चाहते थे कि जयपाल सिंह पादरी (फादर) बने, लेकिन जयपाल सिंह ने नाैकरी करने का निश्चय किया. उन्हाेंने भारत लाैट कर काेलकाता में बर्मा सेल में नाैकरी की. रायपुर स्थित राजकुमार कॉलेज के प्राचार्य बने. इसके बाद बीकानेर राजा के यहां राजस्व मंत्री की नाैकरी की.
आदिवासी महासभा के अध्यक्ष बने : जयपाल सिंह मुंडा जब बीकानेर राजा के यहां मंत्री पद पर कार्यरत थे, ताे उन्हें सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त थीं. मई 1938 में वे बीकानेर से रांची आये. इस समय आदिवासी महासभा के नेताअाें ने जयपाल सिंह काे बताया कि बिहार की अंतरिम सरकार (1937) में किसी आदिवासी काे मंत्री नहीं बनाया गया. यह सुन कर उनका स्वाभिमान जाग उठा. उन्हाेंने बीकानेर राजा का मंत्री पद छाेड़ दिया. उन्हाेंने झारखंड की अस्मिता और शाेषित-पीड़ित जनता की सेवा करने का निश्चय किया.
जयपाल सिंह संविधान सभा के सदस्य बने : 1946 में जयपाल सिंह खूंटी ग्रामीण क्षेत्र से कांग्रेस के पुरनाेचंद्र मित्र काे हरा कर संविधान सभा के सदस्य बने. उनकी एक मांग यह थी कि आदिवासियाें की पहचान आदिम जनजाति के रूप में हाेती आयी है. अत: संविधान में अनुसूचित जनजाति न हाेकर आदिम जन जाति ही हाे. इस पर संविधान सभा प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष डॉ बी अांबेडकर ने कहा कि आदिवासी शब्द वास्तव में एक सामान्य शब्द है, जिसका काेई विशिष्ट कानूनी अर्थ नहीं है. इसलिए उन्हाेंने आदिवासी के स्थान पर अनुसूचित जनजाति शब्द काे रखा है, क्याेंकि वह जनजातियाें काे क्रम बद्ध करता है. जयपाल सिंह ने आदिवासियाें के लिए विधानसभा, लाेकसभा आैर नाैकरियाें में आरक्षण की वकालत की.
झारखंड पार्टी का गठन : एक जनवरी 1948 काे हुए खरसावां गाेलीकांड ने उन्हें झकझाेर कर रख दिया. उसके बाद उन्हाेंने फैसला किया कि अब आदिवासी महासभा काे एक राजनीतिक दल बनाना चाहिए. 31 दिसंबर 1949 आैर एक जनवरी 1950 काे जमशेदपुर के करणडीह मैदान (वर्तमान में जयपाल सिंह स्टेडियम) में अादिवासी महासभा का सम्मेलन आयाेजित किया गया.
आदिवासी महासभा का नाम बदल कर झारखंड पार्टी कर दिया गया. जयपाल सिंह पार्टी के अध्यक्ष चुने गये. 1952 में लाेकसभा आैर विधानसभा का चुनाव हुआ. वे खूंटी से सांसद बने. झारखंड पार्टी ने बिहार विधानसभा में 34 सीट अाैर लाेकसभा में पांच सीट जीत कर अच्छा प्रदर्शन किया. 1957 के आम चुनाव में भी पार्टी की जीत में पहले जैसा ही प्रदर्शन रहा. 1962 के चुनाव में विधानसभा में सिर्फ 20 सीटें हासिल हुईं. 1963 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव दिया था, जिसमें उन्हाेंने कहा था झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया जाये. अंतत: 20 जून 1963 काे झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय हाे गया. झारखंड पार्टी का विलय हाेने पर जयपाल सिंह को झारखंडी जनता का आलाेचना सहना पड़ा था.
20 मार्च 1970 काे हृदयगति रुकने से जयपाल सिंह का दिल्ली में निधन हाे गया. उनका शव 21 मार्च काे दिल्ली से रांची हवाई जहाज से लाया गया आैर उनके पैतृक गांव टकरा में सरना आैर ईसाई धार्मिक नियमाें के साथ दफनाया गया. वे 1952 से मृत्युपरांत 1970 तक खूंटी से सांसद रहे.
(लेखक पूर्व सांसद और झारखंड आंदाेलनकारी रहे हैं)

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