इधर, कल्याण विभाग ने नये मेसो अस्पताल जिन जिलों में हैं, उनके उपायुक्तों से अस्पताल की अद्यतन रिपोर्ट मांगी है. उपायुक्तों को यह भी बताना है कि मेसो अस्पताल की निकटतम दूरी पर कोई सरकारी अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र कार्यरत है या नहीं.
गौरतलब है कि कल्याण विभाग अपने नये मेसो अस्पताल के संचालन में फेल रहा है. विधानसभा के हर सत्र में जनप्रतिनिधि इन अस्पतालों के संचालन से संबंधित सवाल पूछते हैं. बदले में कल्याण विभाग रटा-रटाया जवाब देता रहा है कि इन अस्पतालों का संचालन जल्द शुरू होगा. दरअसल राज्य भर में कुल 14 मेसो अस्पताल बनाने का निर्णय वर्ष 2003 में हुआ था. बन जाने के बाद इनमें से नौ अस्पतालों का ही संचालन गैर सरकारी संस्थाअों, ट्रस्ट या किसी निजी अस्पताल के माध्यम से वर्ष 2009 से हो रहा है.
इसके बदले सरकार संचालकों को सालाना करीब डेढ़-डेढ़ करोड़ रुपये का भुगतान करती है. पर इनमें से पांच अस्पतालों का संचालन 12 वर्ष बाद भी शुरू नहीं हो सका है. प्रत्येक अस्पताल का निर्माण करीब 1.3 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था. गरीबों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने वाले ये अस्पताल 50-50 बेड के हैं. इन अस्पतालों को डिलिवरी सहित फर्स्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) की सुविधा देनी है.