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आर्सेलर मित्तल को वन मंजूरी को रद्द करने को चुनौती देनी चाहिए: अदालत

नयी दिल्ली-रांची: दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि लक्ष्मी मित्तल की इस्पात कंपनी आर्सेलर मित्तल द्वारा अदालत के केंद्र को उसके मंजूरी के आग्रह पर जल्द विचार के बारे में स्पष्टीकरण चाहने के बजाय झारखंड में उसकी वन मंजूरी की अपील को खारिज किये जाने को चुनौती देना उचित होता. न्यायमूर्ति संजीव सचदेव ने कहा, यह […]

नयी दिल्ली-रांची: दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि लक्ष्मी मित्तल की इस्पात कंपनी आर्सेलर मित्तल द्वारा अदालत के केंद्र को उसके मंजूरी के आग्रह पर जल्द विचार के बारे में स्पष्टीकरण चाहने के बजाय झारखंड में उसकी वन मंजूरी की अपील को खारिज किये जाने को चुनौती देना उचित होता.

न्यायमूर्ति संजीव सचदेव ने कहा, यह अदालत कहती है कि विचार करें- इसका मतलब है कि आदेश पारित करें. इसका मतलब यह नहीं है कि फैसला आपके पक्ष में लिया जाये. उन्होंने आपकी अपील को खारिज कर दिया. आप इसे चुनौती दें. अदालत ने कंपनी की अपील पर कोई आदेश नहीं दिया और मामले की सुनवाई की तारीख 21 अगस्त तय की. लग्जमबर्ग की कंपनी आर्सेलर मित्तल के वकील ने कहा कि वह अदालत के फैसले को चुनौती देने के लिए अलग से एक रिट याचिका दायर करेंगे.
कंपनी ने अदालत के आदेश पर स्पष्टीकरण चाहा : कंपनी ने अदालत के नौ जनवरी के उस आदेश पर स्पष्टीकरण चाहा कि यदि अनुकूल आदेश संभव न हो, तो सरकार को इस निर्णय को टाल देना चाहिए था. केंद्र सरकार के अधिवक्ता संजीव नरूला ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह अदालत की प्रक्रिया का मजाक है और इसके लिए कंपनी द्वारा ऐसी बेतुकी याचिका के लिए लागत लगायी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि अदालत के नौ जनवरी के आदेश के बाद पूरी मशीनरी को कंपनी के अपील पर फैसला लेने के लिए लगाया गया और 11 जनवरी की समयसीमा से पहले निर्णय लिया गया, जिसमें आर्सेलर मित्तल की झारखंड में खनन पट्टे के लिए वन मंजूरी की अपील को खारिज कर दिया गया. कंपनी झारखंड में 1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता का इस्पात संयंत्र लगाने के लिए झारखंड में खनन पट्टा चाहती है. अपनी मुख्य याचिका में आर्सेलर मित्तल ने दावा किया है कि वह खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) (एमएमडीआर) कानून के तहत खनन पट्टे की पात्र है, क्योंकि वह सभी सांविधिक जरूरतों को पूरा करती है.

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