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खतरनाक नशा : स्टांप एसिड की चपेट में रांची के युवा !
मनोज सिंह रांची : रांची के एक नामी चिकित्सक के पुत्र (एमबीबीएस का छात्र) का इलाज रिनपास में चल रहा है. करीब छह माह के इलाज के बाद उसकी स्थिति कुछ सुधरी है. वह स्टांप एसिड का मरीज है. यह एक प्रकार का नशा है, जिसका प्रचलन रांची में नया है. रांची के युवा तेजी […]
मनोज सिंह
रांची : रांची के एक नामी चिकित्सक के पुत्र (एमबीबीएस का छात्र) का इलाज रिनपास में चल रहा है. करीब छह माह के इलाज के बाद उसकी स्थिति कुछ सुधरी है. वह स्टांप एसिड का मरीज है. यह एक प्रकार का नशा है, जिसका प्रचलन रांची में नया है. रांची के युवा तेजी से इसकी चपेट में आ रहे हैं. इलाजरत युवा ही बताता है : यह काफी तेजी से स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों के बीच फैल रहा है. कई तकनीकी संस्थान के छात्र-छात्राओं को इसकी लत लग चुकी है.
इसका उपयोग करनेवाला पकड़ में काफी मुश्किल से आता है. इस छात्र का इलाज कर रहे रिनपास के सीनियर रेसीडेंट डॉ सिद्धार्थ सिन्हा बताते हैं : यह पहला मरीज था. लेकिन, पिछले छह माह में स्टांप एसिड के कई मरीजों ने संपर्क किया है.
रांची में स्टांप एसिड महानगरों से आ रहा है. इसकी सच्चाई जानने के लिए लखनऊ के एक युवक से संपर्क किया गया. उससे बात कर 31 दिसंबर की रात के लिए स्टांप एसिड की मांग की गयी. युवक ने 1500 रुपये प्रति टिकट की दर से स्टांप एसिड उपलब्ध कराने की हामी भरी. डिलिवरी का पता मांगा. इसका भुगतान कैशलेस (आम तौर पर मोबाइल वायलेट से) होता है. इसकी डिलिवरी स्पीड पोस्ट या डाक के अन्य माध्यमों से होती है.
रेव पार्टियों में हो रहा है उपयोग : जानकारों ने बताया कि रांची में इसका उपयोग रेव पार्टियों में हो रहा है. शहर से बाहर कुछ कॉलेज और तकनीकी संस्थान के युवा इसका आयोजन करते हैं. वहां नशे के रूप में इसका प्रयोग करते हैं. बताया जाता है कि इन पार्टियों में शराब-बियर का प्रयोग नहीं होता है. रात भर चलनेवाली पार्टी में लगातार एनर्जी बनाये रखने में यह नशा सहयोग करता है.
क्या है स्टांप एसिड
स्टांप एसिड लाइसेर्जिक एसिड डाइ-इथाइल एमाइड (एलएसडी) की परत से बना एक कागज होता है.
मोटे कागज को एलएसडी के लिक्विड से भिंगोया जाता है. इसके बाद इसे सूखा दिया जाता है. इससे एलएसडी की एक परत कागज पर जम जाती है. इस कागज को प्लास्टिक से रैप कर दिया जाता है. रैप करने से पहले स्टांप टिकट की तरह बना दिया जाता है. इसके एक-एक टिकट की बिक्री होती है. टिकट का उपयोग भी छोटे-छोटे टुकड़े में किया जाता है. एक टिकट के छोटे से टुकड़े में काफी नशा होता है. यह गंधहीन होता है. इसका कोई स्वाद भी नहीं होता है. राजधानी में यह दो हजार रुपये प्रति टिकट की दर से बिक रहा है.
क्या होता है असर
शुरुआती दौर में इसका उपयोग करनेवाले में कोई लक्षण नहीं दिखता है. मुंह में कोई गंध नहीं आता. लगातार नशे में रहने से मरीज में डिप्रेसिव डिसआर्डर दिखने लगता है. आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. कई महीनों तक इसका सेवन करने से सिजोफ्रेनिया (मानसिक रोग की गंभीर बीमारी) के लक्षण विकसित हो सकते हैं.
इससे जीवन भर दवाई खानी पड़ सकती है. इसका सेवन करनेवालों की यूरिन जांच सामान्य नहीं होती. लक्षण में बदलाव से शक किया जा सकता है. नींद नहीं आना, लगातार-चार पांच रात तक नहीं सोना आदि शामिल है. डॉ सिद्धार्थ सिन्हा, रिनपासराजधानी में अब तक इस तरह का मामला प्रकाश में नहीं आया है. प्रशासन किसी भी तरह का नशा रोकने को लेकर मुस्तैद है. मामला प्रकाश में आते ही कार्रवाई होगी.कौशल किशोर, सिटी एसपी, रांची
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