जस्टिस डीएन पटेल व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दाैरान नगर निगम से जानना चाहा कि नागा बाबा खटाल की जमीन पर कचरा ट्रांसफर स्टेशन किस आधार पर बनाया जा रहा है. कोर्ट ने इसकी पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया. वहीं खंडपीठ ने राज्य सरकार को खटाल की जमीन के सरकारी भूमि होने से संबंधित अभिलेख कोर्ट में प्रस्तुत करने काे कहा. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 जनवरी की तिथि निर्धारित की.
इससे पूर्व प्रार्थियों की अोर से वरीय अधिवक्ता राजीव रंजन, अशोक कुमार ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि नागा बाबा खटाल की जमीन कभी राज्य सरकार की थी ही नहीं. वह जमीन शिव मंदिर ट्रस्ट की है, जिसे नागा बाबा को देखरेख के लिए दिया गया था. उस जमीन पर नागा बाबा मठ की सहमति से लोगों को रहने व जीविकोपार्जन के लिए किराये पर दिया गया था. जिला प्रशासन ने सरकारी जमीन पर अतिक्रमण बताते हुए वहां से लोगों को उजाड़ दिया. वर्ष 1992-93 में प्रशासन ने सीएनटी की धारा 73 के तहत उक्त जमीन को लावारिस खाते का बताया था, जबकि उक्त भूखंड पर 92 परिवार अपने पशुअों के साथ रह रहे थे. अदालती आदेश के बाद सरकारी खर्चे पर वहां पेयजल की व्यवस्था व पशुअों के लिए बथान बनाया गया था.