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आदिवासी अफसरों को महत्वहीन पद दे रही सरकार : मोरचा
राज्य सरकार आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है : डॉ करमा उरांव रांची: झारखंड आदिवासी संघर्ष मोरचा ने सरकार पर आदिवासी पदाधिकारियों को महत्वहीन पदों पर पदस्थापित करने का आरोप लगाया है़ शनिवार को गंगा आश्रम में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में डॉ करमा उरांव, देवकुमार धान व प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि राज्य सरकार […]
राज्य सरकार आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है : डॉ करमा उरांव
रांची: झारखंड आदिवासी संघर्ष मोरचा ने सरकार पर आदिवासी पदाधिकारियों को महत्वहीन पदों पर पदस्थापित करने का आरोप लगाया है़ शनिवार को गंगा आश्रम में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में डॉ करमा उरांव, देवकुमार धान व प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासियों के प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है और उनके साथ भेदभाव कर रही है़
आदिवासी पुलिस व प्रशासनिक पदाधिकारियों को गैर स्ट्रैटिजिक व महत्वहीन पदों पर पदस्थापित किया जा रहा है़ उन्होंने सोयको गोलीकांड की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने की मांग की. मोरचा की जांच टीम के अनुसार, खूंटी के डीएसपी, एएसपी की प्रशासनिक अपरिपक्वता और पूर्वाग्रहों के कारण ही यह घटना हुई़
डॉ उरांव ने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन को लेकर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, गृहमंत्री राजनाथ सिंह व जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम से मुलाकात कर अपना पक्ष रखा है.
यह आपत्तिजनक है. डॉ उरांव ने कहा कि झारखंड आदिवासी संघर्ष मोरचा 13 फरवरी को संसद भवन के सामने प्रदर्शन करेगा और देश के सामने रघुवर सरकार का आदिवासी विरोधी चेहरा सामने रखेगा़ इससे पूर्व मोरचा के अनुषंगी संगठनों द्वारा जिला व प्रखंड स्तर पर सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा. मौके पर सुनील मुर्मू, रायमुनी मुंडा, अजय कच्छप आदि मौजूद थे़
नयी दिल्ली/रांची : छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट में राज्य सरकार द्वारा संशोधन किये जाने के खिलाफ आदिवासी संगठनों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया. सीएनटी और एसएनपीटी बचाओ आंदोलन के बैनर तले किये गये इस विरोध प्रदर्शन में अादिवासियों के अधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया गया. इस दौरान राष्ट्रपति को ज्ञापन भी भेजा गया.
राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि कानून में संशोधन से आदिवासी और अन्य वंचित तबके की जमीन और आजीविका पर संकट उत्पन्न होने का खतरा है. अनुसूचित क्षेत्र में जमीन के व्यवसायिक प्रयोग की इजाजत देना संविधान के खिलाफ है. आंदोलनकारियों ने राष्ट्रपति से मांग की है कि इस संशोधन विधेयक को मंजूरी नहीं दी जाये और ऐसा किया गया, तो इससे आदवासियों के अधिकारों का हनन होगा.
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