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बगैर ब्याज के लेन-देन पर रोक नहीं : अमित खरे

रांची: विकास आयुक्त अमित खरे ने कहा है कि झारखंड निजी साहूकार निधेष विधेयक 2016 सूदखोरी के खिलाफ बनाया गया ऐतिहासिक कानून है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि इसे लागू कर उधारी या बगैर ब्याज के लेन-देन पर कोई रोक नहीं लगायी गयी है. इस कानून के माध्यम से केवल किसी व्यक्ति द्वारा किसी से […]

रांची: विकास आयुक्त अमित खरे ने कहा है कि झारखंड निजी साहूकार निधेष विधेयक 2016 सूदखोरी के खिलाफ बनाया गया ऐतिहासिक कानून है. उन्होंने स्पष्ट किया है कि इसे लागू कर उधारी या बगैर ब्याज के लेन-देन पर कोई रोक नहीं लगायी गयी है. इस कानून के माध्यम से केवल किसी व्यक्ति द्वारा किसी से उधारी लेने पर रेहन या बंधक के विरुद्ध सूद कमाने के कारोबार को प्रतिबंधित किया गया है.

उन्होंने कहा कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण, निजी बैंकों की स्थापना, सुदूर क्षेत्रों में विभिन्न बैंकों की शाखाओं का खुलना, जन-धन योजना के अंतर्गत ग्रामीणों का बैंक एकाउंट खोलना, भारत सरकार की मुद्रा योजना के अंतर्गत व्यवसाय के लिए आवश्यकतानुसार ऋण की उपलब्धता ओर अधिकृत वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण की उपलब्धता को देखते हुए राज्य सरकार ने साहूकारी, महाजनी और सूदखोरी प्रथा को समाप्त करना जरूरी समझा. इन प्रथाओं का कोई औचित्य नहीं रह गया है. इन प्रथाओं का अर्थ ग्रामीण और खासकर जनजातीय आबादी का शोषण था.

श्री खरे ने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास के निर्देश पर निजी साहूकारी व्यवस्था काे पूरी तरह निषेध करने के लिए कानून बनाया गया है. यह कानून भगवान बिरसा के साथ महाजनी प्रथा के विरुद्ध संताल हूल का बिगुल फूंकनेवाले अमर शहीद सिदो-कान्हो को सच्ची श्रद्धांजलि है. पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के संघर्ष का सम्मान है.
श्री खरे ने बताया कि झारखंड निजी साहूकार निधेष विधेयक 2016 के प्रावधानों के अनुसार अब कोई व्यक्ति किसी वस्तु, संपत्ति, जमीन, सोना आदि को बंधक या रेहन रखकर साहूकारी या सूदखोरी का व्यवसाय नहीं कर सकता है. इसका उल्लंघन कर सूदखोरी या साहूकारी का व्यवसाय करनेवाले को तीन वर्ष तक का कारावास व पांच हजार रुपये तक का अर्थ दंड का प्रावधान है. कानून के तहत एक बार सजा पा चुके व्यक्ति द्वारा दोबारा इसका उल्लंघन पर पांच वर्ष तक के कारावास व दस हजार रुपये के आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है. श्री खरे ने बताया कि विभाजित बिहार में बिहार साहूकार अधिनियम 1974 लागू था. राज्य विभाजन के बाद झारखंड सरकार ने भी इसे अंगीकृत किया था, लेकिन इस कानून के प्रावधान केवल महाजनों को नियंत्रित करने से ही संबंधित थे. इस वजह से यह कानून गरीब ग्रामीणों और आदिवासियों को महाजनों के शोषण से पूरी तरह मुक्त कराने में सफल नहीं हो रहा था. झारखंड निजी साहूकार निधेष विधेयक 2016 के लागू होने से पुराने कानून की खामियां दूर हो गयी हैं.

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