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विधानसभा: कारगर साबित हुई सत्ता पक्ष की रणनीति

रांची: सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक पारित कराने में सत्ता पक्ष की रणनीति काम आयी. सरकार ने अपना इरादा पहले ही साफ कर दिया था कि वह हर हाल में संशोधन विधेयक इसी सत्र में लायेगी. मुख्यमंत्री रघुवर दास इसको लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं थे. इसके लिए पहले उन्होंने अपने विधायकों का विश्वास […]

रांची: सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक पारित कराने में सत्ता पक्ष की रणनीति काम आयी. सरकार ने अपना इरादा पहले ही साफ कर दिया था कि वह हर हाल में संशोधन विधेयक इसी सत्र में लायेगी. मुख्यमंत्री रघुवर दास इसको लेकर कोई समझौता करने के मूड में नहीं थे. इसके लिए पहले उन्होंने अपने विधायकों का विश्वास जीता.
पार्टी विधायकों के साथ बैठक कर शिवशंकर उरांव सहित आदिवासी विधायकों की नाराजगी दूर की. विधायक शिवशंकर उरांव से खुद बात की. भाजपा के आदिवासी विधायकों की राय मानी गयी और विधेयक में उसे शामिल किया गया. विधायकों का विश्वास हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री हर मंच पर डटे रहे. सदन में विपक्ष के सभी विधायकों को मौजूद रहने को कहा गया और विधायक सदन में रहे भी. सदन में विधेयक लाने की रणनीति में मुख्यमंत्री, संसदीय कार्यमंत्री सरयू राय और सीपी सिंह जैसे नेताओं की भी भूमिका रही.
ताला, ढुल्लू नहीं पहुंचे थे सदन
भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और विधायक ताला मरांडी सदन में पहुंचे थे. विधायक ढुल्लू महतो भी सदन में मौजूद नहीं थे. सूचना के मुताबिक वह बाहर इलाज कराने गये हैं. उधर, सदन में जब बिल पेश किया जा रहा था, तो विपक्ष के कई विधायक नहीं थे. झामुमो विधायक चमरा लिंडा, कांग्रेस विधायक बिट्टू सिंह, निर्दलीय भानु प्रताप शाही भी सदन में नहीं दिखे.
सरकार जानती थी, हंगामा होगा
सरकार को पता था कि सदन में हंगामा होगा. दोपहर 12़ 45 बजे सदन में एजी की रिपोर्ट आयी और विपक्ष ने अपने सारे हथियार इसी दौरान ही दिखा दिये. हंगामे का तरीका भी दिखा दिया. विपक्ष को लगा कि विधेयक आ गया है. इसके बाद स्पीकर ने कार्यवाही स्थगित कर दी. इसके बाद दूसरी पाली में जब विधेयक आया, तो मजबूत घेराबंदी कर दी गयी. मार्शल काे एलर्ट कर दिया गया. स्पीकर रहे सीपी सिंह का अनुभव भी काम आया. उधर, विपक्ष इस दौरान केवल हंगामा और नारेबाजी ही करता रहा. विपक्ष के पास बिल को रोकने के उपाय नहीं थे. हो-हंगामे के बीच बिना चर्चा के बिल पास हो गया. विपक्षी विधायक अड़े थे कि सदन में बिल पेश होने के पहले चर्चा हो. सदन में बिना चर्चा, बहस की कोई जगह नहीं मिली.
वीडियो फुटेज देखेंगे स्पीकर
स्पीकर दिनेश उरांव विधानसभा के अंदर हुए हंगामे और तोड़-फोड़ से नाराज है़ं सूचना के मुताबिक स्पीकर श्री उरांव वीडियो फुटेज देख सकते है़ं वीडियो फुटेज के आधार पर आगे की कार्रवाई हो सकती है़
वर्ष 2003 के बाद दूसरी बार हुई विधानसभा की मर्यादा तार-तार
झारखंड विधानसभा के लिए बुधवार काला दिन रहा. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के नाम पर जिस तरीके से विरोध किया गया, उससे विधानसभा की मर्यादा तार-तार हुई़ स्पीकर के ऊपर जूते व कुरसी फेंके गये़ मार्शल के साथ विपक्षी विधायकों ने हाथापाई की़ विपक्ष के विधायक रिपोर्टर टेबल पर कूद पड़े. विधानसभा में विधायकों की भूमिका अराजकता वाली थी़ झारखंड विधानसभा ने 2003 का इतिहास दुहराया है़ 17 मार्च 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के खिलाफ समता पार्टी के पांच विधायकों ने मोरचा खोल दिया था़ बाबूलाल के खिलाफ विद्रोह कर विपक्ष की सीट पर बैठ गये थे़ तब झारखंड विधानसभा की अजीबो-गरीब स्थिति थी़ उधर, तत्कालीन स्पीकर इंदर सिंह नामधारी ने भी चाल चल दी थी. मुख्यमंत्री के रूप मेें खुद को प्रोजेेक्ट कर दिया था़ तब बाबूलाल के साथ खड़े भाजपा विधायकों ने जम कर हंगामा किया था़ सदन में हो-हल्ला हुआ, नारेबाजी हुई़ विपक्षी खेमा और समता पार्टी के विधायकों में तनातनी हुई़ तब स्पीकर पर कागज में पीन डाल कर फेंके गये थे़ वहीं बुधवार को सारी मर्यादा तार-तार हो गयी. झामुमो के कुछ विधायक स्पीकर की बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे़ बिल पर किसी विधायक का संशोधन प्रस्ताव नहीं आया़ इस कारण बिल सदन में हू-ब-हू पारित हो गया. हो-हंगामे के बीच चर्चा का कोई रास्ता नहीं बचा़

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