इसके बाद उसकी पूजा की गयी. मवेशियों को अनाज खिलाकर उन्हें बाहर ले जाया गया. उन्हें ढोल नगाड़े की थाप पर दौड़ने को छोड़ दिया गया. झारखंड के जनजातीय क्षेत्रों में दीपावली के अगले दिन सोहराई पर्व मनाने की परंपरा है. यह पर्व कृषि कार्य में आनेवाले मवेशियों के प्रति आभार जताने के लिए मनाया जाता है. जनजातीय परंपरा में मवेशियों को भी सहायक माना जाता है. इसलिए उनकी पूजा की जाती है: ताकि वे खुश रहें, स्वस्थ रहें अौर मनुष्य के सहायक बने रहें.
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हर्ष व उल्लास से मना सोहराई पर्व
रांची: मवेशियों की पूजा का पर्व सोहराई सोमवार को रांची में उल्लास के साथ मनाया गया. पिस्का मोड़, हातमा, हेहल, बजरा, बरियातू, कांके, घाघरा आदि क्षेत्रों में जनजातीय समुदाय के लोगों ने मवेशियों की पूजा की.पूजा से पहले गोहारघर (जहां गाय व बैल को रखा जाता है) की सफाई की गयी अौर वहां चावल के […]
रांची: मवेशियों की पूजा का पर्व सोहराई सोमवार को रांची में उल्लास के साथ मनाया गया. पिस्का मोड़, हातमा, हेहल, बजरा, बरियातू, कांके, घाघरा आदि क्षेत्रों में जनजातीय समुदाय के लोगों ने मवेशियों की पूजा की.पूजा से पहले गोहारघर (जहां गाय व बैल को रखा जाता है) की सफाई की गयी अौर वहां चावल के घोल से अल्पना बनाया गया. मवेशियों को स्नान कराया गया.
हमारे जनजातीय दर्शन में मवेशी (गाय,बैल आदि) कृषि कार्य में हमारे साथ काम करने वाले हिस्सेदार होते हैं. उन्हें महज उपभोग की चीज नहीं मानते. वर्ष भर मवेशियों के साथ खेतों में हमने जो मेहनत की है, तो उन्हें भी सम्मान स्वरूप एक दिन मिलना चाहिए. सोहराई पर्व यही है. इस पर्व में पूजा गोहार घर में होती है. मवेशियों को नहला कर उनके खुरों को साफ कर उनकी पूजा की जाती है. उन्हें दाना पानी दिया जाता है. इसके बाद उन्हें ढोल-नगाड़े की थाप खेलने दिया जाता है. मवेशियों को उनके मनोरंजन के लिए खेलाया जाता है. हम अपने उत्सव में अखड़ा में नाच-गान करते हैं. मवेशी नाच नहीं सकते, इसलिए उन्हें खेलाया जाता है.
महादेव टोप्पो, साहित्यकार
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