35.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बदहाल है पंचायती राज व्यवस्था!

सिराज दत्ता झारखंड में एक साल पहले योजना बनाओ अभियान चला था. इसमें नवनिर्वाचित जन प्रतिनिधियों को उनके ग्राम पंचायत के विकास के लिए योजनाओं का चयन करने का मौका मिला था. झारखंड के लिए यह एक बड़ा कदम था. इस राज्य में योजनाओं का चयन मुख्यतः स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा किया जाता रहा है, न […]

सिराज दत्ता
झारखंड में एक साल पहले योजना बनाओ अभियान चला था. इसमें नवनिर्वाचित जन प्रतिनिधियों को उनके ग्राम पंचायत के विकास के लिए योजनाओं का चयन करने का मौका मिला था. झारखंड के लिए यह एक बड़ा कदम था.

इस राज्य में योजनाओं का चयन मुख्यतः स्थानीय पदाधिकारियों द्वारा किया जाता रहा है, न कि जन प्रतिनिधियों व ग्रामीणों द्वारा. इस अभियान के दौरान जन प्रतिनिधियों में पैदा हुई आशा जल्द ही निराशा में बदल गयी. हाल ही में सैंकड़ों पंचायती राज प्रतिनिधियों ने रांची में राज्यपाल के कार्यालय के समक्ष केरल की तर्ज पर झारखंड की पंचायती राज संस्थाओं को निधि, शक्तियां व कर्मचारी हस्तांतरित करने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन किया था. झारखंड की ग्राम पंचायतें अभी केवल उनको मिली 14वें वत्ति आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर हस्तांतरित राशि और मनरेगा की राशि से गांवों में विकास के काम करवा सकती हैं. पर इन दोनों स्रोतों से केवल परिसंपत्तियों का नर्मिाण ही हो सकता है.

भारतीय संविधान के अनुसार ग्राम पंचायतों को राज्य द्वारा 29 विषयों पर शक्तियां प्रदान करना है. लेकिन आज भी झारखंड की ग्राम पंचायतों के पास ग्रामीणों की अन्य आवश्यकताओं, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के लिए किसी प्रकार की राशि उपलब्ध नहीं है. पंचायतों के पास कर्मचारी के रूप में केवल मनरेगा योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए ग्राम रोज़गार सेवक उपलब्ध हैं. ये कर्मी भी ग्राम पंचायतों से अधिक प्रखंड प्रशासन के प्रति जवाबदेह हैं. योजना बनाओ अभियान के बाद ग्राम पंचायत प्रतिनिधि हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं और नियोजित योजनाओं के कार्यान्वयन से संबंधित निर्णय स्थानीय प्रशासन द्वारा ही लिये जा रहे हैं.

योजना बनाओ अभियान के बाद सत्ता के विकेंद्रीकरण पर राज्य सरकार की चुप्पी गंभीर सवाल पैदा करती है. चयनित योजनाओं के समय पर कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार को विभिन्न विभागों की निधियों, शक्तियों व कर्मियों को भी पंचायती राज संस्थाओं और मुख्यतः ग्राम पंचायतों को सौंपना होगा. पंचायती राज व्यवस्था जनता के प्रति जवाबदेह व संवेदनशील हो यह सुनिश्चित करना होगा. झारखंड की कई ग्राम पंचायतों के मुखिया अक्सर वार्ड सदस्यों के विचारों व ग्रामीणों की जरूरतों की अनदेखी कर ठेकेदारों व बिचौलियों के इशारों पर काम करने लगते हैं.

अन्य कई राज्यों जैसे केरल व पश्चिम बंगाल में मुखिया का चयन निर्वाचित वार्ड सदस्य करते हैं, इससे मुखिया की ग्राम पंचायत के अन्य सदस्यों और ग्रामीणों के प्रति जवाबदेही बढ़ती है. इसी तरह की व्यवस्था यहां भी करने के लिए झारखंड पंचायती राज अधिनियम में कुछ संशोधनों की आवश्यकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें