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पॉलिथीन का इस्तेमाल है खतरनाक, बंद करें
झारखंड को साफ-सुथरा रखने की अपील नेशनल सैंपल सर्वे अॉफिस ने सर्वे कर झारखंड को देश का सबसे गंदा राज्य घोषित किया है. सर्वे में झारखंड के सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया है. शहरों की गंदगी का सर्वे अभी बाकी है. झारखंड का सबसे गंदा राज्य होना शर्मनाक है. इस दाग को धोने […]
झारखंड को साफ-सुथरा रखने की अपील
नेशनल सैंपल सर्वे अॉफिस ने सर्वे कर झारखंड को देश का सबसे गंदा राज्य घोषित किया है. सर्वे में झारखंड के सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया गया है. शहरों की गंदगी का सर्वे अभी बाकी है. झारखंड का सबसे गंदा राज्य होना शर्मनाक है. इस दाग को धोने की शुरुआत हमें खुद करनी होगी. यकीन जानिये, केवल पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद कर हम गंदगी की समस्या का आधा निदान कर सकते हैं. गंदगी का सबसे बड़ा जड़ है
पॉलिथीन. इस पर लगा प्रतिबंध कठोरता से लागू हो, तो आधी समस्या खत्म हो जायेगी. प्रभात खबर अपना सामाजिक सरोकार निभाते हुए पॉलिथीन का इस्तेमाल नहीं करने की वजहों पर पूरी शृंखला शुरू कर रहा है़ पेश है इसकी पहली कड़ी.
रांची : पाॅलिथीन अपने हर रूप में जानलेवा है. जलाये बिना भी पॉलिथीन लगातार खतरनाक गैसों (बेंजीन, क्लोराइड, विनायल और इथनॉल ऑक्साइड) का उत्सर्जन कर हवा को विषाक्त बनाता रहता है.
यही कारण है कि पॉलिथीन फैक्टरी में काम करनेवालों को आम आदमी की तुलना में कैंसर होने का खतरा 80 फीसदी ज्यादा होता है. पॉलिथीन से उत्सर्जित होनेवाली गैस इसका इस्तेमाल करनेवाले के लिए भी घातक है. लगातार प्लास्टिक की बोतल में पानी या चाय पीनेवालों को कैंसर तक हो सकता है. इस्तेमाल के बाद पॉलिथीन को फेंकना भी कम खतरनाक नहीं है. जमीन में दबाने पर भूमि को बंजर बनाने के साथ यह स्वच्छ जल के स्रोत (कुआं, चापानल आदि) को प्रदूषित करता है. पॉलिथीन से दूषित पानी पीने से खांसी, सांस लेने में दिक्कत, आंखों में जलन, चक्कर आना, मांसपेशियों का शिथिल होना, हृदय रोग से पीड़ित हो सकते हैं. फेंका गया पॉलिथीन पूरे पर्यावरण पर असर डालता है.
जल संकट का कारण है पॉलिथीन : झारखंड में 50 से 55 फीसदी क्षेत्र पठारी है. बारिश का पानी ज्यादातर जगहों पर बहते हुए ही निकलता है. पिछले कुछ वर्षों से राज्य में पॉलिथीन का प्रयोग बेतहाशा बढ़ा है. रोज लगभग 60 टन पॉलिथीन का इस्तेमाल राज्य भर में हो रहा है.
जहां-तहां फेेंके गये पॉलिथीन की वजह से राज्य के तकरीबन सभी शहरों में ग्राउंड वाटर लेबल काफी नीचे चला गया है. पॉलिथीन हाइड्रोलॉजिकल साइकिल में अवरोधक बन जाता है. पॉलिथीन की परत के कारण धरती को न तो पर्याप्त मात्रा में जल मिल पाता है, और न ही वह पानी का उत्सर्जन कर पाती है. विशेषज्ञ पिछले कुछ वर्षों से राज्य में होनेवाली असमान्य बारिश का कारण पॉलिथीन को ही बताते हैं.
जानकारों के अनुसार पॉलिथीन का प्रयोग बंद कर दिया जाये, तो शहरों में ग्राउंड वाटर लेबल स्वत: ही ऊपर आ जायेगा. साथ ही, हर वर्ष सुखाड़ की स्थिति में भी सुधार जरूर होगा.
पौधों-पशुओं का यमराज पॉलिथीन : पॉलिथीन को सड़ने में 1,000 वर्ष तक लग जाते हैं. जमीन पर पड़ा पॉलिथीन पेड़-पौधों को पोषक तत्व लेने से रोकता है. इससे पौधों को आवश्यक आहार नहीं मिल पाता और कुछ ही दिनों बाद सूखने लगता है. एक अध्ययन के मुताबिक 20 किलोग्राम पॉलिथीन केवल छह महीने से भी कम समय में 50 वर्ष पुराने बरगद का नाश करने की क्षमता रखता है. हाल के दिनों में पॉलिथीन पशुओं की अस्वाभाविक मौत का भी बड़ा कारण बन गया है. यहां-वहां फेंका गया पॉलिथीन पशु भोजन समझ कर निगम लेते हैं. उनकी अंतड़ियों में फंस कर यह उनकी मौत का कारण बन रहा है.
क्या-क्या हो रहा नुकसान
इससे लगातार निकलनेवाली जहरीली गैस हवा के साथ मिल कर उसे जहरीली बना देती है
पानी में फेंके जाने पर यह जलचक्र को प्रभावित करता है. पानी के जीवों के असमय मौत का कारण बनता है
जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देता है
मिट्टी भुरभुरा कर भूस्खलन कराने में सहायक होता है
सतही जल प्रदूषित करता है. कुआं और चापानल का पानी जहरीलाकर देता है
शहरों में नालियों के जाम होने का सबसे बड़ा कारण है
यहां-वहां फेंका गया पॉलिथीन गंदगी फैलाता है, जानलेवा
बीमारियां दे रहा
पशु अगर इसे निगल लें, तो उनकी मौत हो सकती है
झारखंड में स्थिति
झारखंड में प्रति व्यक्ति दो किलो पॉलिथीन प्रतिवर्ष उपयोग में लाया जाता है
राज्य में रोज 60 टन पॉलिथीन की खपत होती है
झारखंड में रोज निकाले जानेवाले कूड़े का 20 फीसदी प्लास्टिक होता है
राज्य में प्लास्टिक रिसाइकिल का कोई उपाय नहीं
फेंके गये कुल पॉलिथीन का 0.2 फीसदी ही हो पाता है रिसाइकिल
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