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आयोग के समक्ष पुलिस मुठभेड़ में बेकसूरों की मौत के मामले उठेंगे

रांची: मानवाधिकार हनन के 90 मामलों की खुली सुनवाई सात व आठ सितंबर को होगी. सुनवाई धुर्वा स्थित ज्यूडिशियल एकेडमी में होगी. इसके लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम रांची आ रही है. टीम में आयोग के चेयरमैन जस्टिस एचएल शाहा, सदस्य एससी सिन्हा, डी मुरुगेशन व सी जोसेफ समेत अन्य शामिल हैं. सुनवाई के […]

रांची: मानवाधिकार हनन के 90 मामलों की खुली सुनवाई सात व आठ सितंबर को होगी. सुनवाई धुर्वा स्थित ज्यूडिशियल एकेडमी में होगी. इसके लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम रांची आ रही है. टीम में आयोग के चेयरमैन जस्टिस एचएल शाहा, सदस्य एससी सिन्हा, डी मुरुगेशन व सी जोसेफ समेत अन्य शामिल हैं.

सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव, गृह सचिव, डीजीपी और संबंधित जिला के डीसी-एसपी मौजूद रहेंगे. 90 में से 27 मामलों की सुनवाई आयोग की फुल बेंच करेगी. इसमें अधिकांश मामले पुलिस मुठभेड़ में ग्रामीणों, कथित नक्सलियों और बेकसूरों की मौत के हैं. एक मामला राज्य के करीब 500 युवकों को फरजी तरीके से नक्सली बनाकर सरेंडर कराने का भी है. आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि खुली सुनवाई के सिलसिले में संबंधित लोगों को जानकारी दें. इसके लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया है.

मुठभेड़ में 12 कथित नक्सलियों की मौत
वर्ष 2015 में पलामू के बकोरिया में पुलिस के साथ हुई कथित मुठभेड़ में एक नक्सली समेत 12 लोगों की मौत हुई थी. मरने वालों में एक नाबालिग भी था. पुलिस ने दावा किया था कि मरनेवाले सभी 12 लोग भाकपा माओवादी के नक्सली थे. हालांकि पुलिस के पास सिर्फ एक के नक्सली होने का प्रमाण है. घटना के कुछ दिन बाद सामने आयी मुठभेड़ स्थल की तसवीरों व जब्ती सूची ने पुलिस के दावे पर गंभीर सवाल खड़ा कर दिया था. पुलिस ने जो हथियार जब्त किये थे, उनमें से एक में ट्रिगर नहीं था, जबकि एक में मैग्जीन नहीं था. पुलिस ने जो स्कॉरपियो जब्त की थी, उसके चालक की सीट पर बंधे तौलिया के ऊपरी हिस्से में खून लगे होने की बात जब्ती सूची में लिखी गयी था, लेकिन तसवीर में तौलिया पर खून लगा हुआ नहीं था.
मामला वर्ष 2012-13 में रांची में 400 से अधिक युवकों को नक्सली बना कर फरजी सरेंडर कराने का
वर्ष 2012-13 में रांची में फरजी सरेंडर का मामला सामने अाया था. यह पता चला था कि रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा समेत अन्य जिलों से 400 से अधिक युवकों को रांची में पुराने जेल परिसर में रखा गया. उन युवकों से कहा गया था कि उन्हें हथियार दिया जायेगा. जब वह हथियार के साथ सरेंडर करेंगे, तो सरकार उन्हें पुलिस में नौकरी देंगे. युवकों को सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन की निगरानी में रखा गया था. उस वक्त के सीआरपीएफ आइजी डीके पांडेय अभी राज्य के डीजीपी हैं.

युवकों के भोजन-पानी का प्रबंध रांची के तत्कालीन एसएसपी द्वारा किया जा रहा था. डीके पांडेय के तबादले के बाद एमवी राव सीआरपीएफ के रांची के आइजी बने. उन्होंने इस मामले की जानकारी तत्कालीन डीजीपी को दी. जिसके बाद इस मामले में लोअर बाजार में प्राथमिकी दर्ज की गयी. जिस एनजीओ के द्वारा यह काम किया जाता था, उसके लोगों को गिरफ्तार किया गया. जिसके बाद से अनुसंधान रुका हुआ है. भुक्तभोगी युवकों का आरोप है कि पूरे मामले की जानकारी तब के सीआरपीएफ के आला अफसरों को भी थी.

पुलिस की गोली से दो मजदूरों की हुई थी मौत
दो-तीन सितंबर 2014 की रात गुमला की पुलिस अभियान में गयी थी. तीन सितंबर को अहले सुबह गुरदरी थाना क्षेत्र में पुलिस ने मजदूरों को ले जा रहे ट्रक पर फायरिंग कर दी. इस घटना में छह मजदूरों को गोली लगी थी. दो ग्रामीणों की मौत हो गयी थी, जबकि चार ग्रामीण घायल हुए थे. घटना के बाद सरकार ने तत्कालीन आइजी व आयुक्त से जांच करायी. जांच रिपोर्ट में गुमला के एएसपी ऑपरेशन पवन कुमार सिंह समेत अन्य पुलिसकर्मियों को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया गया. रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने जिम्मेदार पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया. पुलिस मुख्यालय ने भी विभागीय कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया. वर्ष 2015 में रांची रेंज के तत्कालीन डीआइजी के एक पत्र के बाद मुख्यालय ने विभागीय कार्यवाही को स्थगित कर दिया. डीआइजी ने पत्र में लिखा था कि चूंकि मामले का अनुसंधान चल रहा है. इसलिए अनुसंधान पूरा होने और अदालत में मामले के गुण-दोष के आधार पर निर्णय आने के बाद ही विभागीय कार्यवाही चलाना उचित होगा.
सोमा गुड़िया की मौत का मामला : वर्ष 2011 में चाईबासा के छोटानागड़ा थाना क्षेत्र में ग्रामीण सोमा गुड़िया की मौत गोली लगने से हो गयी थी. इस मामले में ग्रामीणों ने सीआरपीएफ के जवानों पर गोली मारने का आरोप लगाया था.
मंगल होनहागा की मौत का मामला
वर्ष 2011 में पुलिस ने चाईबासा जिला के सारंडा में ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया था. इस दौरान सात सितंबर 2011 को चाईबासा के छोटानागरा थाना क्षेत्र में पुलिस ने एक ट्रेनिंग कैंप ध्वस्त किया था. कैंप के सामान को ढोने के लिए सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों की मदद ली थी. लौटने के दौरान रात होने और बारिश होने के कारण पुलिस एक जगह रुक गयी थी. इसी दौरान रात में मंगल होनहागा की मौत गोली लगने से हो गयी. सीआरपीएफ के अधिकारियों का कहना था कि रात में नक्सलियों ने हमला कर दिया था. मुठभेड़ में नक्सलियों की गोली मंगल होनहागा को लगी, लेकिन ग्रामीणों ने यह आरोप लगाया था कि रात में जब पुलिस के डर से मंगल होनहागा भागने लगा था, तब पुलिस ने उसे गोली मार दी थी.

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