वहीं सरकारी चिकित्सकों को उनके या किसी अन्य निजी क्लिनिक में मरीजों को भरती करने से मना किया गया है. इसके साथ ही निजी डायग्नोस्टिक सेंटर पर भी काम प्रतिबंधित होगा. इन्हीं आदेशों के विरोध के लिए चिकित्सकों का संघ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) विरोध पर उतारू है. हालांकि, आइएमए ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, जब रांची सहित अन्य जिलों की समीक्षा में यह पता चला था कि अपवाद छोड़ ज्यादातर सरकारी चिकित्सक महीने में तीन से पांच दिन ही अोपीडी करते हैं.
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जनहित का खयाल नहीं, सिर्फ विरोध की अादत
रांची: राज्य के सरकारी चिकित्सकों की फितरत सरकारी आदेश का विरोध करना है. अभी स्वास्थ्य सचिव के ताजा आदेश का विरोध हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी चिकित्सकों के लिए अोपीडी का समय सुबह अलग-अलग शिफ्टों में सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक होगा. वहीं सरकारी चिकित्सकों को उनके या […]
रांची: राज्य के सरकारी चिकित्सकों की फितरत सरकारी आदेश का विरोध करना है. अभी स्वास्थ्य सचिव के ताजा आदेश का विरोध हो रहा है, जिसमें कहा गया है कि सरकारी चिकित्सकों के लिए अोपीडी का समय सुबह अलग-अलग शिफ्टों में सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक होगा.
इससे पहले सचिव के वैसे आदेश जो जनहित में उपयोगी हैं, को लागू करवाने की भी कोई पहल आइएमए की अोर से नहीं की गयी है. इनमें से दो आदेश महत्वपूर्ण थे. डॉक्टरों का लिखा परचा जन सामान्य सहित कई बार दवा विक्रेता भी नहीं पढ़ पाते हैं. इससे गलत दवा मिल जाने की संभावना बनी रहती है. इसी आलोक में हैदराबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेडिकल काउंसिल अॉफ इंडिया (एमसीआइ) ने निर्देश जारी किया था कि सभी डॉक्टर दवाअों के नाम तथा डोज कैपिटल लेटर में ही लिखें. स्वास्थ्य सचिव ने भी नौ अक्तूबर 2015 को निर्देश जारी किया कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर दवाअों के नाम बड़े अक्षरों में ही लिखें, लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा.
जेनरिक दवाएं नहीं लिख रहे डॉक्टर
वहीं चिकित्सकों से यह भी कहा गया है कि वे दवाअों के जेनेरिक नाम ही लिखें. आम लोगों को सस्ती व बेहतर दवाएं देने का सचिव का यह संकल्प कुछ को छोड़ ज्यादातर चिकित्सकों ने बेअसर कर दिया है. पर इन आदेशों का पालन करवाने की पहल आइएमए ने कभी नहीं की. गौरतलब है कि चिकित्सकों को वित्तीय लाभ दिलाने की पहल भी हुई है. राज्य सरकार ने दूरदराज के जिलों में कार्यरत स्थायी चिकित्सकों के लिए विशेष भत्ता देने का घोषणा की है. विभिन्न जिलों को तीन केटेगरी में बांट कर क्रमश: 25, 35 तथा 40 फीसदी तक विशेष भत्ता दिया जाना है.
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