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शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य बहुत पीछे

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का दूसरा दिन, बोले वक्ता कांके स्थित विश्वा सभागार में इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (आइएचडी) के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन पांच तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. इसमें देश-विदेश से आये विशेषज्ञों ने झारखंड में स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा, पर्यावरण व आजीविका तथा ग्रामीण और शहरी व्यवस्था में […]

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का दूसरा दिन, बोले वक्ता
कांके स्थित विश्वा सभागार में इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट (आइएचडी) के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन पांच तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. इसमें देश-विदेश से आये विशेषज्ञों ने झारखंड में स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा, पर्यावरण व आजीविका तथा ग्रामीण और शहरी व्यवस्था में समन्वय पर विचार किया. आंकड़ों के अाधार पर कहा गया कि झारखंड कई क्षेत्र में विकास कर रहा है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति अभी भी बहुत खराब है. पलायन और बेरोजगारी आज भी समस्या है. इसके लिए किये जा रहे सरकारी और गैर सरकारी प्रयास के नतीजे अभी नहीं दिख रहे हैं.
माध्यमिक शिक्षा पर जोर नहीं दिया गया : डॉ घोष
रांची : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के पूर्व वरीय अर्थशास्त्री डॉ अजीत घोष ने कहा कि देश में शिक्षा में सुधार के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाये गये, पर माध्यमिक शिक्षा पर अधिक जोर नहीं दिया जा सका. माध्यमिक शिक्षा को यूनिवर्सल बनाये जाने से ही देश में रोजगार की स्थिति सुधरेगी. डॉ घोष ने कहा कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, क्योंकि अधिक रोजगार इसी क्षेत्र में आता है. जिस तरह पिछले एक दशक में कृषि क्षेत्र से रोजगार कम हुआ है, वह चिंताजनक है. इसके लिए सरकार को सोचने की आवश्यकता है.
रांची में इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट संस्था द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में भाग लेने आये डॉ घोष ने प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत की. उन्होंने कहा कि वर्तमान में सभी को स्थायी नौकरी चाहिए, जिसमें एक बेहतर वेतनमान मिलता हो.
भारत में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मात्र 15 फीसदी है. यह चिंताजनक है. बेरोजगारी एक बड़ी समस्या हो गयी है. कामगारों की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. देश में असुरक्षित रोजगार की स्थिति में किसी प्रकार का सुधार नहीं हुआ है. बैड जॉब को बेहतर रोजगार की संभावनाओं में नहीं बदला जा सका है.
अगले 10-15 वर्षों में एक करोड़ रोजगार के अवसर पैदा करने से ही बेराेजगारी दूर होगी. इसके लिए लघु औद्योगिक इकाइयों को खड़ा करना होगा. सर्विस सेक्टर पर निर्भरता कम करनी होगी, क्योंकि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के बढ़ने से सर्विस सेक्टर भी फलेगा-फूलेगा. सरकार को आधारभूत संरचना और शिक्षा के क्षेत्र में अधिक से अधिक निवेश करने की आवश्यकता है. उनके अनुसार कंस्ट्रक्शन सेक्टर में लोगों को रोजगार तो मिल रहा है, पर काम करने की स्थिति वहां काफी दयनीय है.
जल्द जारी होगी इंडिया इंप्लायमेंट रिपोर्ट 2016
डॉ घोष ने कहा कि इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की ओर से तैयार की गयी इंडिया इंप्लायमेंट रिपोर्ट 2016 जल्द जारी की जायेगी. इस रिपोर्ट में डॉ घोष ने मुख्य भूमिका निभायी है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की तरफ से यह रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है, जो प्रत्येक दो वर्षों में देश में रोजगार की स्थिति को उजागर करती है.
100 में मात्र 13 प्राप्त करते हैं उच्च शिक्षा : डॉ भूषण
रांची : नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूपा), नयी दिल्ली से प्रोफेसर डॉ सुधांशु भूषण ने कहा है कि झारखंड में 100 में (18 से 23 साल के) मात्र 13 बच्चे ही उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं. पूरे देश में यह औसत 23 है. भारत सरकार ने 2020 तक इसे 30 करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए भारत सरकार को मात्र सात फीसदी आगे बढ़ना है, जबकि झारखंड को 17 फीसदी.
यह काफी बड़ा गैप है. इसे कम करना आसान नहीं है. यह राज्य के लिए उच्च शिक्षा की सबसे बड़ी चुनौती है. कांके स्थित विश्वा में चल रहे आइएचडी के सेमिनार में हिस्सा लेने आये डॉ सुधांशु भूषण से प्रभात खबर ने बात की. डॉ भूषण ने बताया कि राज्य में 12वीं कक्षा के बाद 100 में से 64 विद्यार्थी कला की पढ़ाई करते हैं. शेष 36 में 18 वाणिज्य और 18 विज्ञान के होते हैं.
पूरे भारत में करीब 30 विद्यार्थी विज्ञान की पढ़ाई करते हैं. एक लाख विद्यार्थियों पर मात्र आठ कॉलेज हैं. पूरे भारत का औसत 27 का है. यही कारण है कि 12 वीं के बाद ज्यादा छात्र कामकाज में लग जाते हैं या दूसरे राज्यों में चले जाते हैं. पूरे देश में उच्च शिक्षा पर जीएसडीपी की 4.4 फीसदी राशि खर्च हो रही है, जबकि झारखंड में यह 3.36 फीसदी है. सरकार को इस पर खर्च बढ़ाना चाहिए. राज्य में सरकारी कॉलेजों की संख्या बढ़ानी चाहिए.
आंतरिक अर्थव्यवस्था के पुनरावलोकन की जरूरत : डॉ नुमान
रांची : अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) के दक्षिण एशिया के वरीय नियोजन विशेषज्ञ डॉ नुमान माजिद ने कहा है कि विकसित देशों को अपनी आंतरिक अर्थ‌व्यवस्था का पुनरावलोकन करने का समय आ गया है. उन्होंने कहा है कि हिंदुस्तान उभरती हुई अर्थ‌व्यवस्था के दौर से गुजर रहा है. भारत की विकास दर आठ फीसदी है. इसका यह मतलब नहीं है कि चुनौतियां कम हो गयीं. नियमित रोजगार के अवसरों को बहाल करने की जरूरत पर उन्होंने बल दिया. डॉ माजिद रांची में प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि रोजगार परक नियोजन से ही सभी का विकास संभव है. इसलिए मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को अधिक प्राथमिकता देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सेवा सेक्टर एक दायरे तक ही सीमित है, पर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में दक्ष और अकुशल मजदूर भी कामगार के रूप में खप सकते हैं. उन्होंने कहा कि चीन से हमें कई सेक्टरों में चुनौतियां मिल रही हैं, पर इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम उस ओर देखें नहीं. चीन में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का विकास काफी पहले हो चुका है, पर भारत में इस ओर काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि यह क्षेत्र रोजगार सृजन का काम करता है. बाहर के बाजार से प्रतिस्पर्द्धा जरूरी है.
उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में बदलाव हो रहा है. ऐसे में श्रम कानूनों को भी प्रभावकारी बनाना होगा. विकास को रोजगार से जोड़ने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सबकी नजरें भारत पर हैं, यहां पर स्किल इंडिया से लेकर मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम तक चलाये जा रहे हैं, पर इनका क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर कितना हो रहा है, इस पर भी गौर करना आवश्यक है.
अत्यधिक खनन से पर्यावरण पर असर
इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के पर्यावरण और आजीविका विषयक सत्र में अत्यधिक खनन से पर्यावरण पर हो रहे असर पर चिंता जतायी गयी. सत्र की अध्यक्षता राज्यपाल के प्रधान सचिव संतोष सतपथी ने की. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर पर्यावरण असंतुलन से काफी उथल-पुथल हो रहा है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है. उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और अन्य के दुष्प्रभावों पर भी चिंता जतायी.
कोयले के अत्यधिक उत्खनन से नुकसान : उदय
रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग के उदय कुमार ने कहा कि झारखंड में 40 फीसदी खनिज संपदा है, पर यहां के लोग खनिज संसाधनों के समुचित दोहन नहीं होने से गरीबी का दंश झेल रहे हैं. कोयले का अत्यधिक खनन पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार को कोयले से एक हजार से 12 सौ करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा है.
कोल कंपनियां खास कर सीसीएल की खदानों से यह राजस्व सरकार को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि कोयले के उत्खनन से क्षेत्र का सतत विकास नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि तेनुघाट के खनन क्षेत्र में बंद पड़ी खदानों के पानी से जलापूर्ति योजनाएं संचालित करने की जरूरत है.
पिछड़ रहे हैं जनजातीय लोग : विश्व वल्लभ
एक्सएलआरआइ के सेंटर ऑफ रूरल मैनेजमेंटके प्रोफेसर विश्व वल्लभ के अनुसार देश की जनजातीय आबादी सामाजिक मानकों में पिछड़ रही है. उनके अनुसार मध्य भारत में 51.57 फीसदी जनजातीय आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रही है. झारखंड में 26 फीसदी, ओड़िशा में 23 फीसदी और छत्तीसगढ़ में तीस फीसदी जनजातीय आबादी है. जनजातियों में साक्षरता कम है. झारखंड में भी स्थिति अच्छी नहीं है.
वनाधिकार कानून का लाभ नहीं : संजय
सामाजिक कार्यकर्ता संजय बासू मल्लिक ने कहा है कि झारखंड में वनवासियों, जनजातियों को वनाधिकार कानून का लाभ नहीं मिल रहा है. कागजों में वन पट्टा और अन्य दिये जाने की बातें सरकार तो कर रही हैं, पर वस्तु स्थिति ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि झारखंड के जंगल, जमीन पर से आदिवासियों का हक छीना जा रहा है. औद्योगिकीकरण और विकास के नाम पर आदिवासियों की जमीन हड़प कर उन्हें बेदखल किया जा रहा है. इससे उनकी गरीबी और बढ़ रही है.
खनन से ग्रामीण हुए प्रभावित : नोय
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के शोधकर्ता इटाय नोय के अनुसार खनन के कारण ग्रामीणों की आजीविका अधिक प्रभावित हुई है. उनके अनुसार जहां-जहां खनन हो रहा है, वहां पर पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचा ही है, बल्कि खनन क्षेत्र के आसपास रहनेवाले ग्रामीणों पर भी खासा असर हुआ है. उनके अनुसार महिलाएं खनन क्षेत्र में अवैध खनन से जुड़ी हैं. उनके इस काम में पुरुष भी मदद करते हैं. अवैध खनन से न सिर्फ उनकी जान जोखिम में रहती है, बल्कि उनकी दिन भर की मेहनत से आमदनी भी कम होती है. उन्हें पर्याप्त मजदूरी भी नहीं मिलती है.
स्वास्थ्य झारखंड की कमजोर कड़ी : सुरंजन
पोपुलेशन हेल्थ रिसर्च नेटवर्क (पीएचआरएन), झारखंड के सुरंजन प्रसाद ने कहा कि स्वास्थ्य झारखंड की कमजोर कड़ी है. लोगों तक उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं पहुंच पाती है. फंड की कमी है. बैंकिंग सिस्टम कमजोर होने का असर भी स्वास्थ्य सुविधा पर पड़ रहा है. स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं की कमी है. तीन मेडिकल कॉलेज हैं, इनमें एक पूरा और दो अधूरे हैं. दोनों अधूरे में सभी तरह के पीजी के कोर्स संचालित नहीं हो रहे हैं.
छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं : सेन
एक्सएलआरआइ के प्रो पीके सेन ने कहा कि झारखंड में लघु उद्यमी संकट में हैं. इन्हें बढ़ावा देने का प्रयास नहीं हो रहा है. इससे ज्यादा रोजगार सृजन हो सकता है. बड़े उद्योग छोटे-छोटे उद्योगों को समय पर पैसे नहीं देते हैं. इससे इन्हें व्यापार करने में परेशानी होती है. बैंक भी ऐसे उद्योगों को आर्थिक मदद देने से कतराता है. इस कारण लड़के यहां अपना छोटा कारोबार शुरू नहीं कर पाते हैं.
जिला स्तर पर होंगे बेहतर ट्रेनिंग सेंटर : सिन्हा
राज्य के ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव एनएन सिन्हा ने कहा कि सरकार जिला स्तर पर बेहतर प्रशिक्षण केंद्र बनाने जा रही है. यहां गांव के युवकों को लाकर बेहतर माहौल देने की कोशिश होगी. उनको यहां के लायक तैयार किया जायेगा. हम लोग ग्रामीण क्षेत्र में अच्छे उद्यमी तैयार नहीं कर पा रहे हैं. हम अभी भी प्राथमिक क्षेत्रों में ही रोजगार देख रहे हैं. इससे ज्यादा रोजगार नहीं मिलेगा. कृषि के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश की जरूरत है. कृषि के विविधीकरण की जरूरत है.
कृषि क्षेत्र में घटा रोजगार
आइएचडी के बलवंत सिंह मेहता ने कहा कि झारखंड में कृषि के क्षेत्र में रोजगार घट रहा है. कंस्ट्रक्शन और होटल उद्योग में करीब आठ फीसदी की दर से रोजगार बढ़ रहे हैं. रिटेल ट्रेड के क्षेत्र में भी रोजगार बढ़ रहा है. निर्माण क्षेत्र में 8.4 फीसदी की दर से रोजगार बढ़ा है. कृषि के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा रोजगार होना चाहिए.
कई सेक्टर में संभावना
आइएचडी की देविका मोदी ने कहा कि झारखंड कोयला, लोहा, बॉक्साइट आदि का सबसे बड़ा उत्पादक है. खनन और निर्माण के क्षेत्र में रोजगार बढ़ा है. यह स्थायी नहीं है. राज्य में पर्यटन उद्योग में काफी संभावना है. स्वयंसेवी संगठनों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार से जोड़ना चाहिए.
आंकड़ों में अच्छा, सच्चाई कुछ अलग : डॉ अनंत
एक्सआइएसएस, रांची के डॉ अनंत कुमार ने कहा कि पिछले 10 साल में झारखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई सुधार नहीं हुआ है. सीएचसी-पीएचसी में डॉक्टरों की कमी है. जहां डॉक्टर हैं, वहां दवा नहीं है. इस अवधि में किसी भी ब्यूरोक्रेट्स या नेता ने कुछ अलग करने की कोशिश नहीं की. पिछले तीन साल से विटामिन ए की दवा नहीं खरीदी गयी है.
कौशल विकास से जोड़ने की जरूरत : सिंह
भारतीय वन सेवा के झारखंड के अधिकारी सह कौशल विकास मिशन के पूर्व सीइओ आरपी सिंह ने कहा कि झारखंड में भी कौशल विकास मिशन की स्थापना हो गयी है. देश में आज मात्र 4.5 फीसदी लोग ही कुशल हैं. कई देशों में 96 फीसदी तक लोग स्किल्ड हैं. झारखंड में 18 विभागों में कौशल विकास का कार्यक्रम चल रहा है. लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश हो रही है.
आज भी पीएचसी में डॉक्टर नहीं : डॉ संजीव
नेशनल हेल्थ सिस्टम रिसोर्स सेंटर के निदेशक डॉ संजीव कुमार ने कहा कि यहां 1971 में जब एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा था, उस समय भी पीएचसी में डॉक्टर नहीं थे. आज भी नहीं है. स्वास्थ्य संस्थानों में आज भी ग्रास रूट लेबल पर काम करनेवालों की कमी है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर तकनीकी केउपयोग के मामले में भी हम काफी पीछे हैं. राजस्थान जैसे राज्यों को हम उदाहरण में रख सकते हैं.
संस्थान से निकलते ही रोजगार देने का प्रयास
रांची. क्रिएटिंग डिसेंट जॉब्स, इनहैंचिंग स्किल्स एंड इंटरप्रीन्योशिप विषय पर आयोजित पैनल डिस्कशन को चेयर करते हुए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा निदेशक अजय सिंह ने कहा : राज्य सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान दे रही है. सरकार की कोशिश शिक्षण संस्थान से निकलनेवाले युवाओं को तुरंत रोजगार उपलब्ध कराने की है. इस वजह से एजुकेशन और इंडस्ट्री में तालमेल बैठाया जा रहा है. कौशल प्रशिक्षण के लिए ऑरेकल और सिसको जैसी कंपनियों के साथ एमओयू किया गया.
सीमेंस और पीबीसी के साथ करार होने पर बात चल रही है. यह दोनों कंपनियां मिल कर राज्य में तीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस और 15 कौशल विकास संस्थान खोलना चाहती हैं. उन्होंने कहा : राज्य सरकार ने अगले पांच सालों में 20 लाख लोगों के कौशल विकास का लक्ष्य रखा है. तकनीकी शिक्षा नवीनतम तकनीक के सहारे प्रदान की जा रही है. औद्योगिक घरानों और बड़े उद्यमियों की कौशल विकास में सहायता ली जा रही है. पीपीपी मोड पर इंजीनियरिंगकॉलेज खोले जा रहे हैं.
उद्यमिता के लिए मौकों की कमी : डॉ अवस्थी
रांची. क्रिएटिंग डिसेंट जॉब्स, इनहैंचिंग स्किल्स एंड इंटरप्रीन्योशिप विषय पर अहमदाबाद के इंटरप्रीन्योशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक डॉ दिनेश अवस्थी ने झारखंड में उद्यमिता के लिए मौकों की कमी बतायी. उन्होंने कहा कि राज्य में 7,93,133 बेरोजगारों ने रोजगार केंद्र में निबंधन कराया है. इनमें से 42, 411 लोग आइआइटी और 40033 लोग डिप्लोमाधारी हैं.
उन्होंने कहा कि आज गुड्स एंड सर्विसेज के क्षेत्र में नये चैलेंज आये हैं. आइटी रिवोल्यूशन से क्रांति आ गयी है. आय में वृद्धि के साथ लोगों की मांग बदल रही है. ऐसे में कौशल विकास निहायत जरूरी है. उद्यमिता विकसित करने के लिए विशेष संस्थान चलाने होंगे. ग्रामीण उद्यमिता पर खास ध्यान देना होगा. छोटे उद्यमों पर फोकस करना होगा. कौशल विकास में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा. उन्होंने कहा कि कौशल विकास को केंद्र व राज्य सरकार ने गंभीरता से लिया है.
रूरल अरबन लिंकेज एंड अरबन डेवलपमेंट पर चर्चा
आइएचडी के अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे दिन के नौवें सत्र में रूरल अरबन लिंकेज पर चर्चा की गयी. इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि शहरीकरण की बातें बहुत होती हैं, पर गांवों के विकास के बिना यह सब बेमानी है. शहरों के साथ-साथ गांवों के विकास पर भी जोर देना होगा. चर्चा में झारखंड के शहरीकरण और गांवों की स्थिति पर खासतौर पर चर्चा की गयी. साथ ही तेजी से हो रहे पलायन पर भी चिंता जतायी गयी.
झारखंड में शहर से 10 किमी के अंदर बहुत ही कम गांव : अभिनव-अभिरूप
फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी के अरबन एंड रीजनल प्लानिंग के डॉ अभिनव अलेक्जेंडर व अाइएचडी इस्टर्न रीजनल सेंटर रांची के अभिरूप मुखर्जी ने रूरल अरबन लिंकेज पर प्रजेंटेशन देते हुए बताया कि शहरों से गांव की दूरी कम होनी चाहिए. गांव शहर के जितने करीब होंगे, उतनी ही सुविधाएं गांव वालों को मिलेंगी. अस्पताल, स्कूल, रोजगार तमाम प्रकार की सुविधाएं उनके करीब होंगी. झारखंड में शहर से 10 किमी के अंदर बहुत ही कम गांव हैं.
यह चिंताजनक है.बड़े शहरों पर ध्यान दिया जाना चाहिए, पर साथ-साथ गांवों का विकास भी हो. शहर से गांवों की दूरी कम होने पर शहर को भी फायदा होता है. यदि कोई उत्पाद पता चले कि पास के गांव में है, तो इसकी मांग बढ़ेगी. मार्केट मिलेगा. जैसे यहां सिल्क है, पर शहरों की दूरी की वजह से इसे उचित बाजार नहीं मिल पाता. इसके लिए बेहतर होगा कि जहां भी बड़े गांव हैं, वहां अरबन आधारभूत संरचना को विकसित किया जाये.
कचरे का सदुपयोग होना चाहिए : अंजूर भाष्कर
आइएचडी इस्टर्न रीजनल सेंटर के रिसर्च फेलो अंजूर भाष्कर ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर अपना प्रजेंटेशन दिया. उन्होंने बताया कि यहां कचरों का निष्पादन सही तरीके से नहीं होता. रांची का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि शहर से अधिकतम 20 किमी के दायरे में ही कचरों का उठाव होता है और पास के ही झिरी गांव में कचरों का अंबार लगा दिया गया है. कचरों का सही तरीके से प्रबंधन करने की जरूरत है.
बड़े-बड़े मोहल्लों में बायो गैस ट्रांसलेटर लगाया जाना चाहिए. इससे कचरों का निष्पादन उसी मोहल्ले में हो जायेगा. कचरों से जो ऊर्जा मिलेगी, उसका सदुपयोग किया जा सकेगा. वहीं ट्रैक्टर से कचरों की ढुलाई पर जो तेल खर्च हो रहा है, उसमें कमी आयेगी.
स्मार्ट सिटी की बात गांवों के बिना बेमानी : दास
एसके दास एसोसिएट्स आर्किटेक्ट्स, नयी दिल्ली के एमडी एसके दास ने कहा कि शहरों की बातें सभी करते हैं, पर गांवों की बातें नहीं होती हैं. सारे स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और आधारभूत संरचनाएं शहरों में खड़ी की जाती हैं, गांवों में नहीं. शहर जब तक उदार मन का नहीं होगा, गांवों का विकास नहीं हो सकता.
शहरों को गांव वालों के लिए दरवाजा खोलना होगा. स्मार्ट सिटी की बात हो रही है, पर गांवों के बिना यह बेमानी है.शहरों का विकास कर आप एक बड़ी आबादी को विकास के बिना छोड़ देते हैं. यह जरूरी है कि शहरों के साथ-साथ गांवों के विकास पर भी जोर दिया जाये, तभी शहरों की योजनाएं सफल होंगी.
झारखंड से हर साल पांच लाख लोग कर रहे हैं पलायन : आरबी भगत
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट अॉफ पोपुलेशन साइंसेज के प्रोफेसर व माइग्रेशनएंड अरबन स्टडीज मुंबई के हेड डॉ अारबी भगत ने गांवों से शहरों की ओर हो रहे पलायन पर पेपर प्रस्तुत करते हुए कहा कि झारखंड से हर साल करीब पांच लाख लोग पलायन कर रहे हैं. लोग एक से छह माह तक अपने-अपने गांवों से पलायन कर शहरों की ओर चले जाते हैं. ये लोग झारखंड राज्य से बाहर के शहरों में कंस्ट्रक्शन वर्कर, घरेलू कामगार, ट्रांसपोर्ट और उद्योगों में बतौर मजदूर काम करते हैं. सबसे अधिक पलायन झारखंड राज्य से हो रहा है.
ऐसा इसलिए हो रहा है कि झारखंड में शहर कम हैं. अाजादी के पूर्व झारखंड के लोग असम के चाय बगान और कोलकाता के जूट मिल में काम करने के लिए जाते थे. आजादी के बाद झारखंड में तेजी से औद्योगिकीकरण और शहरीकरण हुआ, पर इसने यहां के आदिवासियों को दूसरे राज्यों में जाने के लिए बेबस कर दिया. इसका नतीजा है कि झारखंड की कुल 32 मिलियन की आबादी में 8.6 मिलियन आदिवासी और चार मिलियन अनुसूचित जाति की आबादी रह गयी है.

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