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हर साल 1.20 लाख लोगों की मौत डिप्रेशन से

रांची : डिप्रेशन मनोरोग का सबसे शुरुआती और सामान्य लक्षण है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 2020 तक यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीमारी होगी. 2020 तक डिसअबेलिटी (काम लायक नहीं रहने) दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा. इस बीमारी के तहत 50 फीसदी लोग शुरुआती दौर में ही आत्महत्या का प्रयास […]

रांची : डिप्रेशन मनोरोग का सबसे शुरुआती और सामान्य लक्षण है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 2020 तक यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी बीमारी होगी. 2020 तक डिसअबेलिटी (काम लायक नहीं रहने) दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा.
इस बीमारी के तहत 50 फीसदी लोग शुरुआती दौर में ही आत्महत्या का प्रयास करते हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इसमें से 37.8 फीसदी लोगों की उम्र 30 साल से नीचे की है. इंडियन हेल्थ यूनियन का आंकड़ा बताता है कि डिप्रेशन में रहनेवाले करीब 1.20 लाख लोग हर साल आत्महत्या करते हैं. चार लाख से अधिक लोग इसका प्रयास करते हैं.
सीआइपी के मनोचिकित्सक डॉ निशांत गोयल बताते हैं कि हर दिन करीब-करीब 15 से 20 फीसदी मरीज ऐसे आते हैं, जो एक्यूट डिप्रेशन के शिकार होते हैं. ऐसे मरीजों में अपने आप को नुकसान पहुंचाने के लक्षण ज्यादा होते हैं. मालूम हो कि राज्य के दोनों अस्पतालों तथा निजी अस्पताल में करीब 800 मरीज हर दिन आते हैं. इसमें 120 से 160 मरीज गंभीर रूप से डिप्रेशन के शिकार होते हैं.
मनोचिकित्सालयों में बढ़ रही मरीजों की तादाद
क्या है लक्षण : रिनपास के सीनियर रेसीडेंट डॉ सिद्धार्थ कहते हैं कि डिप्रेशन के शिकार मरीज शुरू-शुरू में घर में एडजस्ट करने की कोशिश करते हैं. परेशानी बढ़ने पर धीरे-धीरे खुद को किनारे करने लगते हैं. एकांत चाहने लगते हैं. लोगों की बातें उसे अच्छी नहीं लगने लगती है.
परेशान रहने लगते हैं. कई लोगों को नशे की लत हो जाती है. अपने लोगों से दूरी बनाने का प्रयास करने लगते हैं. लगातार 14 दिनों तक तनाव रहने से डिप्रेशन बिहेवियर बढ़ जाने की संभावना अधिक रहती है. ऐसे लक्षण वाले मरीजों के परिजनों को लगातार दो सप्ताह तक उनमें कुछ बदलाव के लक्षण नहीं दिखे, तो चिकित्सकों से तुरंत संपर्क करना चाहिए.
इलाज के बाद सामान्य जीवन जी रहा युवक
रिनपास में करीब 20 साल के एक युवक को लेकर उसके परिजन आये थे. परिजनों ने बताया कि तीन माह से वह घर के लोगों से ठीक से बात नहीं कर रहा है. कटा-कटा रहता है. कभी परेशानी बताने की कोशिश करता है, लेकिन बता नहीं पाता है. एक दिन एकांत में उसने लाइजोल पीकर आत्महत्या करने की कोशिश की. इसके बाद परिजनों ने रिनपास के चिकित्सकों से संपर्क किया. परिजनों ने बताया कि करीब तीन माह से वह कुछ कटा-कटा रहता था. घर में सभी के साथ नहीं बैठता था. लगता था कि उम्र का असर है. लेकिन, वह डिप्रेशन में था. यह पता नहीं चल पाया. चिकित्सकों ने इलाज के बाद उसकी काउंसलिंग की. अभी वह सामान्य जीवन जी रहा है.
क्या है कारण
डिप्रेशन का मुख्य कारण समाज में कुछ नहीं कर पाने की समस्या है. डिप्रेशन के शिकार लोगों को लगता है कि उनका समाज या घर में कोई योगदान नहीं हो पा रहा है. जो कर रहे हैं, वह गलत हो रहा है. बार-बार दिमाग में नकारात्मक विचार आते हैं. लगने लगता है कि मेरा जीवन बेकार हो गया है. शुरुआत में यह फेज कुछ समय के लिए होता है. धीरे-धीरे यह बढ़ने लगता है.

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