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मात्र एक रुपये दे सब दिक्कतों से मुक्त हो रहे किसान
किसानों का संकटमोचक बना धर्मदा, एक सकारात्मक सोच के बल सामाजिक क्रांति जीवेश रांची : बाजार की तलाश, सब्जी पहुंचाने की दिक्कत, रास्ते में गाड़ी का संकट अौर कहीं पैसे लुट जाने या सब्जी के बरबाद हो जाने की समस्या से दूर हैं पिठोरिया व आसपास के गांवों के लगभग 10 हजार किसान. सब्जी दूसरे […]
किसानों का संकटमोचक बना धर्मदा, एक सकारात्मक सोच के बल सामाजिक क्रांति
जीवेश
रांची : बाजार की तलाश, सब्जी पहुंचाने की दिक्कत, रास्ते में गाड़ी का संकट अौर कहीं पैसे लुट जाने या सब्जी के बरबाद हो जाने की समस्या से दूर हैं पिठोरिया व आसपास के गांवों के लगभग 10 हजार किसान. सब्जी दूसरे प्रदेश या शहर ले जाते हुए कोई दुर्घटना हो जाये, तो भी खेत में पसीना बहा रहे किसान को इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं. सब्जी न सिर्फ निर्धारित स्थान तक पहुंच जायेगी, बल्कि घायलों के सही इलाज, थाना-पुलिस की दिक्कतों के दूर होने से लेकर तय पैसे उनके घर तक पहुंच जायें, इसकी जवाबदेही भी जिम्मेदार हाथों ने संभाल रखी है.
इन सबकी वजह आज का कोई स्मार्ट फोन या एप्स नहीं, बल्कि यह आज से करीब 73 वर्ष पहले के कुछ किसानों के सोच का नतीजा है. किसानों की समस्याअों के निदान अौर उनको बेहतर सुविधा मुहैया कराने के लिए 1942 में पिठोरिया अौर आसपास के गांवों के किसानों ने किसान पार्टी का गठन किया, साथ ही किसानों की मदद के लिए धर्मदा नामक फंड भी बनाया. फंड धर्मार्थ के काम के लिए था. इस कारण इसका नाम धर्मदा रखा गया.
तय हुआ कि इन सबके लिए किसानों से प्रति टोकरी कुछ पैसे लिये जायेंगे. तब ये पैसे चवन्नी-अठन्नी हुआ करते थे. इस तरीके से प्रति ट्रक धर्मदा की राशि 30 से 40 रुपये हुआ करती थी. आज यह 100 से 200 रुपये प्रति ट्रक है. इन सबके लिए 1942 में लाला साहू की अगुवाई में हुई बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि यह कमेटी किसानों के लिए, किसानों द्वारा होगी अौर इसमें कभी भी किसी राजनीतिक दल की घुसपैठ नहीं होने दी जायेगी. आज भी इस नियम में कोई बदलाव नहीं है. किसान पार्टी के सभी पदाधिकारी किसान हैं.
कैसे हुआ यह
किसान पार्टी के वर्तमान संरक्षक दिलेश्वर साहू के अनुसार पिठोरियो की मिट्टी शुरू से ही सब्जी की खेती के अनुकूल थी. जितनी उपज होती थी, उतने के लिए बाजार नहीं था. इस कारण खेत में ही सब्जी बरबाद हो जाती थी. पशुअों को खेत में छोड़ देते थे किसान. दुखी किसान इसे अपनी नियति मानते थे.
उस समय अंगरेजों के खिलाफ आंदोलन चल रहा था. इसी बीच रांची में हब्सी कैंप की स्थापना हुई. कैंप के हब्सियों के लिए सब्जी की जरूरत महसूस हुई. उस समय भी पिठोरिया के किसान फ्रेंचबीन व फूलगोभी उपजाते थे. पिठोरिया नजदीक होने के कारण कैंप के लोग वहां से सब्जी लाने लगे. इससे किसानों को अच्छे पैसे मिलने लगे.
उन्हें लगा कि अगर बाहर बाजार तलाशा जाये, तो अच्छी आमदनी होगी. इसी को लेकर गांव के कुछ सजग किसान आगे आये, बैठक की. इसमें बेनी महतो, लाला साहू, द्वारिका साहू, मोहन कुमार केसरी, अकल महतो, इनायत अली, किसुन महतो, अयोध्या प्रसाद केसरी व रामकिशोर साहू (वर्तमान में सब स्वर्गीय) शामिल थे. बैठक में किसान पार्टी का गठन किया गया. धर्मदा नामक फंड बनाया गया. किसान पार्टी का काम इस फंड व किसानों का संरक्षण करना था. इस फंड से किसानों की समस्याअों के समाधान के साथ-साथ उनको इस काबिल बनाना था कि वो देश-दुनिया के किसानों को खेती के मामले में टक्कर दे सकें.
यह भी तय हुआ कि प्रति वर्ष सितंबर के पहले सप्ताह में पदाधिकारियों का चुनाव होगा अौर सार्वजनिक तौर पर किसानों के सामने सालाना लेखा-जोखा प्रस्तुत किया जायेगा. पोस्ट अॉफिस में पार्टी के नाम से खाता भी खोला गया, ताकि पैसे का सही हिसाब रखा जा सके. बाद में बैंक अॉफ इंडिया की शाखा खुलने के बाद उसमें तत्कालीन पदाधिकारी शिवलाल महतो, सागर साहू अौर रामदेव साहू के नाम से खाता खोला गया. आज भी यह खाता उसी नाम से है. उस वक्त किसानों से प्रति टोकरी 25 से 50 पैसे (प्रति ट्रक 30 से 40 रुपये) धर्मदा के खाते में लिये जाते थे. आज भी इस मद में उनसे एक से दो रुपये प्रति टोकरी (100 से 200 रुपये प्रति ट्रक) लिये जाते हैं, जबकि ट्रक के भाड़ा के लिए 40 से 50 रुपये प्रति टोकरी अलग से देते हैं किसान.
धर्मदा से ऐसे होता है काम
किसान पार्टी के वर्तमान सचिव रितेश कुमार दीपक अौर पूर्व सचिव नकुल महतो के अनुसार, अब इलाके में सालों भर खेती होती है. ऐसे में किसानों के फसल को हाट तक लाने, वहां से बाहर के बाजार में भेजने की व्यवस्था धर्मदा फंड से की जाती है. श्री साहू के अनुसार किसान अपने खेत में व्यस्त रहता है, वह मंडी नहीं आ सकता, इसलिए इलाके में 10 स्थल चिह्नित किये गये हैं. वहां पर किसान अपने उत्पाद (सब्जी की टोकरी या बोरे) रख देते हैं. वहां से किसान पार्टी अपनी गाड़ी से उसे मंडी तक मंगवाता है अौर फिर वहां से बाहर के बाजार में ट्रक द्वारा भेजा जाता है.
रास्ते में ट्रक खराब हो जाये, तो दूसरे ट्रक की व्यवस्था, कोई दुर्घटना हो जाये तो इलाज, पुलिस से संबंधित मामला, लूटपाट होने या बाजार से लेकर संबंधित व्यवसायी तक माल पहुंचाने की जवाबदेही पार्टी लेती है. अगर रास्ते में किसी कारण से सब्जी खराब हो जाये, तो उसका बीमा भी है. इन सब पर होनेवाला खर्च किसान पार्टी धर्मदा की राशि से वहन करती है. नकुल महतो बताते हैं कि किसान अपनी टोकरी देकर मुक्त हो जाता है. उसके पैसे उसके खाते में आ जाते हैं.
किसी ने नकद मंगवाये, तो वह भी साथ गया आदमी लाता है. एक तरह से एक से दो रुपये के बल पर सारी जवाबदेही धर्मदा पर है. श्री साहू के अनुसार इससे इतर भी इस फंड से काम किया जाता है. अभी तक इलाके में किसान उच्च विद्यालय, किसान भवन अौर किसान बाल विद्यालय की स्थापना धर्मदा की राशि से की गयी है. इसके अलावा किसानों के लिए प्रति वर्ष प्रशिक्षण, किसान मेला, बाहर के अच्छे किसानों को लाने, अधिकारियों, मंत्री आदि के कार्यक्रम भी लगातार इसी फंड से किये जाते हैं, ताकि किसान अपडेट होते रहें. अगर कोई किसान परेशानी में है, तो उसकी मदद भी की जाती है.
73 साल, 11 सचिव
किसान का यह संगठन पूरी तरह विश्वास पर टिका है. इस कारण कई सचिवों का कार्यकाल लंबा रहा है. अब तक जो सचिव रहे हैं, उनमें शामिल हैं : बेनी महतो, अकल महतो, किशुन महतो, मोहन कुमार केसरी, शिवलाल महतो, रामलोचन महतो, नकुल महतो, दिलेश्वर साहू, भरत महतो, सागर साहू व रितेश कुमार दीपक (वर्तमान).
धर्मदा के नाम पर प्रति वर्ष कितने की आमद
रोज कम से कम आठ से 10 ट्रक सब्जी बाहर भेजी जाती है. इस तरह प्रति ट्रक 200 रुपये के हिसाब से 2000 रुपये. एक माह में 2000 गुना 30 यानी 60000 रुपये. अौर साल में 60000 गुना 12 यानी 720000 रुपये धर्मदा के नाम पर आते हैं. माल अौर ट्रकों की संख्या के आधार पर इसमें कुछ कम ज्यादा होता रहता है.
(साथ में पिठाेरिया से सुजीत केशरी)
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