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रिनपास में डॉ अमूल रंजन की नियुक्ति अवैध

एसीबी की जांच के दौरान हुई पुष्टि रांची : रिनपास में डॉ अमूल रंजन को न सिर्फ गलत तरीके से प्रभारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, बल्कि उनकी नियुक्ति ही रिनपास में अवैध तरीके से हुई थी. इस बात की पुष्टि एसीबी जांच के दौरान हुई है. एसीबी को जांच के दौरान […]

एसीबी की जांच के दौरान हुई पुष्टि
रांची : रिनपास में डॉ अमूल रंजन को न सिर्फ गलत तरीके से प्रभारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, बल्कि उनकी नियुक्ति ही रिनपास में अवैध तरीके से हुई थी. इस बात की पुष्टि एसीबी जांच के दौरान हुई है. एसीबी को जांच के दौरान पता चला है कि डॉ अमूल रंजन की नियुक्त 1997 में रिनपास में सीनियर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के पद पर हुई थी.
मामले को लेकर संयुक्त बिहार-झारखंड के दौरान वर्ष 2000 में विभाग की तत्कालीन उपसचिव के लकड़ा ने उनकी नियुक्ति को लेकर जांच की थी. जिसमें उन्होंने नियुक्ति को गलत ठहराया था. इस तर्क के आधार पर कि नियुक्ति के लिए अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित किया गया था, लेकिन विज्ञापन में कोई नंबर नहीं था. नियुक्ति के बाद विज्ञापन का नंबर दिया गया था. इसलिए डाॅ अमूल रंजन की नियुक्ति ही गलत है. इसके अलावा किसी भी मनोचिकित्सक संस्थान का निदेशक बनने के लिए एमबीबीएस और मनोचिकित्सक की डिग्री आवश्यक है, जो डॉ अमूल रंजन के पास नहीं थी. वह क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं.
एसीबी को जांच के दौरान यह भी पता चला कि पूर्व में जब अमूल रंजन को निदेशक बनाया गया था, तब इसे लेकर एडवोकेट जनरल ने आपत्ति की थी. इसके बाद अमूल रंजन को हटा दिया गया था. दोबारा उन्हें प्रभारी निदेशक बनाया गया. एडवोकेट जनरल की आपत्ति के बाद तत्काल स्वास्थय सचिव ने मामले की जांच निगरानी से कराने की अनुशंसा की थी, लेकिन निगरानी जांच नहीं हुई.
उल्लेखनीय है कि मामले में एसीबी के अधिकारी तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव बीके त्रिपाठी से इस बारे में पूछताछ कर चुके हैं. एसीबी के अधिकारियों को उन्होंने बताया है कि अमूल रंजन की नियुक्ति एक प्रशासनिक निर्णय था. इसके पीछे उनकी कोई गलत मंशा नहीं थी. मामले में एसीबी के अधिकारी बीके त्रिपाठी और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र सिंह की भूमिका की जांच कर रहे हैं.

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