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एमटा मामले में खान विभाग की टिप्पणी, किसी एक अफसर को दोषी करार देना गलत

रांची: एमटा कोल माइंस मामले में कैबिनेट ने फाइल के बिना ही स्वत: शर्त में संशाेधन कर दिया. इससे भ्रम की स्थिति हुई. कई स्तर पर गलतियां हुईं. इसलिए इस मामले में किसी एक अधिकारी को दोषी करार देना सही नहीं होगा. एनके मिश्रा की जांच रिपोर्ट में फॉरेस्ट क्लियरेंस के बिना ही खनन की […]

रांची: एमटा कोल माइंस मामले में कैबिनेट ने फाइल के बिना ही स्वत: शर्त में संशाेधन कर दिया. इससे भ्रम की स्थिति हुई. कई स्तर पर गलतियां हुईं. इसलिए इस मामले में किसी एक अधिकारी को दोषी करार देना सही नहीं होगा. एनके मिश्रा की जांच रिपोर्ट में फॉरेस्ट क्लियरेंस के बिना ही खनन की अनुमति देने के लिए पाकुड़ के तत्कालीन उपायुक्त सुनील सिंह को दोषी करार देने के मामले की समीक्षा के बाद खान विभाग ने यह टिप्पणी की है. रिपोर्ट कार्मिक विभाग को भेज दी गयी है.
क्या है मामला : रिपोर्ट में कहा गया है कि कैबिनेट ने 26 जून 2012 की बैठक में एमटा कोल माइंस को 1218 हेक्टेयर पर पट्टे की सशर्त स्वीकृति दी थी. इसके तहत एमटा को केंद्र सरकार से स्टेज-2 का फॉरेस्ट क्लियरेंस मिलने के बाद ही खनन की अनुमति दी जानी थी. इस बीच छह जुलाई काे कैबिनेट ने एमटा मामले में लगायी गयी शर्त में संशोधन कर दिया. इसमें फॉरेस्ट क्लियरेंस की शर्त सिर्फ वन भूमि तक ही सीमित मानी गयी. अर्थात गैर वन भूमि पर बिना फॉरेस्ट क्लियरेंस के ही खनन कार्य किया जा सकता था. जबकि खान विभाग ने शर्त में संशोधन के लिए कैबिनेट में काेई फाइल नहीं भेजी थी. कैबिनेट ने बिना फाइल के ही इसमें संशोधन कर दिया था.

इसके बाद एमटा ने उपायुक्त से खनन कार्य की अनुमति मांगी. शर्त में किये गये संशोधन के मद्देनजर तत्कालीन उपायुक्त ने इस मामले में सरकार से राय मांगी. सरकार के स्तर पर राय नहीं मिलने की वजह से उन्होंने सरकारी अधिवक्ता की राय ली.

सरकारी अधिवक्ता ने 1218 में से 371.07 हेक्टेयर वन भूमि छोड़ कर शेष 846.93 हेक्टेयर गैर वन भूमि पर खनन कार्य की अनुमति देने को विधि सम्मत बताया. इसके बाद उसे खनन की अनुमति दी गयी. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कंसेंट टू ऑपरेट मिलने के बाद कंपनी काे खनिजों की ढुलाई के लिए चालान दिया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि कैबिनेट द्वारा शर्त में किये गये संशोधन की वजह से भ्रम की स्थिति पैदा हुई. हर स्तर पर लोगों ने अपने अपने हिसाब से व्याख्या की. एेसी परिस्थिति में किसी एक अधिकारी को दोषी करार देना सही नहीं होगा.

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