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न बसें चल सकीं और न ही योजना

एक कहानी यह भी : कल्याण विभाग की बस वितरण योजना का नहीं मिला लोगों को लाभ सजय रांची : राज्य के सभी 14 मेसो (जनजातीय) क्षेत्रों में कुल 589 बसें तथा एससी बहुल इलाके में 140 बसें यानी कुल 729 बसें वितरित की गयी. यह योजना 10-10 युवाअों के समूह के लिए थी. यानी […]

एक कहानी यह भी : कल्याण विभाग की बस वितरण योजना का नहीं मिला लोगों को लाभ
सजय
रांची : राज्य के सभी 14 मेसो (जनजातीय) क्षेत्रों में कुल 589 बसें तथा एससी बहुल इलाके में 140 बसें यानी कुल 729 बसें वितरित की गयी. यह योजना 10-10 युवाअों के समूह के लिए थी. यानी 10-10 लोगों को एक-एक बसें दी गयी थी. इस तरह कुल 5890 एसटी युवाअों तथा कुल 1400 एससी युवाअों को रोजगार देने का प्रयास किया गया था. पर न तो बसें ठीक से चल सकी अौर न ही यह योजना.
दरअसल शुरुआत में ही कुछ गलती हो गयी थी. सरकार ने युवाअों को बसें तो बांट दी, पर इन्हें परमिट व रजिस्ट्रेशन के लिए पैसे नहीं दिये. इससे कुछ बसें तो सड़क का मुंह भी नहीं देख पायी. वहीं दुर्घटनाग्रस्त होकर थाने में पड़े रहने, समूह के अंदर अापसी विवाद होने तथा अन्य कारणों से बसें वितरण के कुछ माह बाद से ही धीरे-धीरे बंद होने लगीं.
युवाअों का इस धंधे में नया होना तथा तकनीकी चीजों की जानकारी का अभाव भी भारी पड़ा. अाजकी तारीख में सभी मेसो क्षेत्र की इक्का-दुक्का बसें ही चल रही हैं. लाभुक समुहों को बस की कुल कीमत की 10 फीसदी राशि जमा करनी थी, पर किसी समूह ने यह राशि सरकार के खाते में जमा नहीं की.
क्यों असफल रही योजना : योजना के दो लाभुकों (ग्रुप लीडर) अनगड़ा प्रखंड के सालहन निवासी शिबू मुंडा तथा जोन्हा निवासी जयराम महली के अनुसार शुरुआत में परमिट व रजिस्ट्रेशन का खर्च नहीं मिलने से ही समस्या शुरू हो गयी थी.
इसके बाद परमिट लेने में उन्हें परेशानी होती थी. पहले से इस पेशे में जमे-जमाये लोगों के कारण इन्हें सही रूट व समयवाला परमिट नहीं मिल पाता था. परमिट फेल होने पर लगनेवाली बड़ी राशि देने में भी समूह के लोग नाकाम होते गये.
धीरे-धीरे बसें बंद होने लगी. खुद कल्याण विभाग ने भी वित्तीय वर्ष 2003-04 में इस योजना का सर्वे कराया था. इसके निष्कर्ष में जिक्र था कि बसों का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, अापसी विवाद तथा सामूहिक जिम्मेवारी न होना इस योजना की असफलता के कारण थे. ज्यादातर लाभुकों ने सर्वे टीम को बताया था कि 10 लोगों के समूह में काम करना उनके लिए भारी पड़ रहा है.

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