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स्मार्ट फोन की लत से बन रहे हैं मनाेराेगी

केस -1 : एक सप्ताह पहले एक पिता अपनी बेटी माेनी (बदला नाम, उम्र 19 साल) को लेकर इलाज के लिए रिनपास आये थे. बेटी को स्मार्ट फोन की ऐसी लत थी कि उसे अपना भी ख्याल नहीं रहता था. शुरू में तो घर के लोगों ने ही खेल-खेल में फोन दिया था. बाद में […]

केस -1 : एक सप्ताह पहले एक पिता अपनी बेटी माेनी (बदला नाम, उम्र 19 साल) को लेकर इलाज के लिए रिनपास आये थे. बेटी को स्मार्ट फोन की ऐसी लत थी कि उसे अपना भी ख्याल नहीं रहता था. शुरू में तो घर के लोगों ने ही खेल-खेल में फोन दिया था. बाद में ऐसी लत लगी कि खाते-पीते भी माेनी फोन हाथ में रखती थी. देर रात तक फोन से चिपके रहती थी. उसकी स्थिति बिगड़ती गयी. घरवालों की बात नहीं मानती थी. मना करने पर उलझने लगती थी. स्वभाव चिड़चिड़ा हाे गया था. माेनी फोन को ही अपना परिवार और साथी समझने लगी थी. जब इलाज के दाैरान पिता ने उससे फाेन ले लिया, ताे डॉक्टर के सामने ही फाेन लेने के लिए माेनी अपने पिता से उलझ पड़ी.
केस-2 : विनीता (बदला नाम, उम्र 21 साल) एक काेल कंपनी के कर्मचारी की बेटी है. रांची में रहती है. उसे भी स्मॉर्ट फोन की लत लग चुकी है. अकेले कमरे में देर रात तक वह फाेन पर कुछ न कुछ खेलती रहती है. पिता काे वह आश्वस्त भी करती है कि वह गलत नहीं कर रही. लेकिन फोन एक मिनट के लिए भी नहीं छोड़ती. विनीता काे रात में सोते समय भी बगल में मोबाइल चाहिए. पिता ने एक दिन फाेन छीन लिया, ताे वह परेशान हाे गयी. अब ताे फाेन छीनने पर व्याकुल हाे कर कहती है – फाेन वापस कीजिए, वरना जान दे देंगे.
यह कहानी सिर्फ माेनी या विनीता (दाेनाें का बदला नाम) की नहीं है. स्मार्ट फाेन की लत से लाेगाें में मनाेराेग के नये-नये लक्षण दिख रहे हैं आैर उन्हें इलाज के लिए मनाेचिकित्सा संस्थानाें जाना पड़ रहा है. रांची के दो मनोचिकित्सा संस्थान (सीआइपी और रिनपास) के आंकड़े बताते हैं कि कैसे मनाेराेगियाें की संख्या बढ़ रही है. रिनपास के पूर्व निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक डॉ अशोक कुमार नाग कहते हैं : केवल रिनपास में ही महीने में 15 से 20 ऐसे मरीज आने लगे हैं, जिनके परिजन शिकायत करते हैं कि मोबाइल इसकी बीमारी हो गयी है. मानसिक स्थिति में हुए बदलाव का एक बड़ा कारण मोबाइल है. डॉ अशाेक कहते हैं : घर के बच्चे अब एकांत में बैठ कर मोबाइल में लगे रहते हैं. उनका सामाजिक जुड़ाव घटता जा रहा है. यह एक प्रकार की बीमारी का लक्षण है. इनमें से कुछ काे एक प्रकार से सिजोफ्रेनिया का लक्षण भी कहा जा सकता है. ऐसा लक्षण ज्यादा दिखने लगे, ताे मरीज को अस्पताल में भरती भी करना पड़ सकता है.
टेक्नाेलॉजी को अपने अधीन रखना चाहिए
रिनपास के पूर्व निदेशक डॉ अमूल रंजन सिंह कहते हैं : बात केवल स्मार्ट फोन की नहीं है. आज की टेक्नोलॉजी की है. हमेशा टेक्नाेलॉजी को अपने अधीन रखना चाहिए. टेक्नोलॉजी के अधीन नहीं होना चाहिए. यह हमें वास्तविक दुनिया से दूर लेकर चली जाती है. अधिक उपयाेग करने या लत लग जाने के कारण स्मार्ट फोन से यही नुकसान हाे रहा है. डॉ सिंह कहते हैं : कई लोगों को यह पता नहीं होता है कि बगल के कमरे में पिता बीमार हैं, लेकिन उसे पता हाेता है कि पांच हजार किलोमीटर दूर बैठे उसका फेसबुक दाेस्त क्या कर रहा है. डॉ सिंह का मानना है कि कोई भी तकनीक जब शुरू हाेती है, ताे इस तरह की समस्या आती है. कुछ सतर्कता बरतने पर बाद में चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाती हैं. ऐसे फाेन की लत नींद उड़ा रही है, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वरूप बिगाड़ रही है.
न खाने की सुध, न नहाने की खेलते रहे गेम, पैंट में पेशाब
एक घटना दिल्ली की है. टाइम्स अॉफ इंडिया में इससे संबंधित रिपाेर्ट छपी है. एक भाई की उम्र 22 है. वह इंजीनियरिंग का छात्र है. छाेटे भाई की उम्र 19 साल है. 12वीं का छात्र है. दाेनाें भाइयाें काे फाेन पर गेम खेलने की लत सीमा पार कर गयी. स्थिति यह हाे गयी कि वे दाेनाें 24 घंटे इसी गेम में डूब गये. न खाने की चिंता, न कपड़े बदलने की. फाेन पर गेम खेलते रहे. स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहा. पैंट में ही पेशाब हाे जाता. दाेनाें घर में बंद रहते. समाज से कट गये. परिचित घर के बाहर से घंटी बजाते-बजाते रहे, दाेनाें भाइयाें पर इसका असर नहीं पड़ा. अंतत: इन दाेनाें भाइयाें काे दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में भरती कराया गया. वहां पता चला कि दाेनाें मनोरोगी हाे चुके हैं.

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