मामले की सुनवाई उर्मिला दत्तासेन व एके उपाध्याय की खंडपीठ में हुई. खंडपीठ ने राज्य सरकार की दलील को नहीं माना. प्रार्थी की अोर से हाइकोर्ट के अधिवक्ता आनंद आलोक ने पक्ष रखा. श्री आलोक ने बताया कि राज्य सरकार ने खंडपीठ में मुख्यत: दो बिंदुअों पर सुनवाई की.
विभागीय कार्यवाही के दाैरान जांच पदाधिकारी ही प्रस्तोता पदाधिकारी बन गये थे, जो स्थापित कानूनी प्रावधानों के विपरीत था. दूसरा बरखास्त करने के पहले राज्य सरकार ने यूपीएससी की सलाह (एडवाइस) से प्रार्थी पीएस नटराजन को अवगत नहीं कराया. इस कारण वे अपना पक्ष नहीं दे सके तथा वंचित रह गये.
राज्य सरकार ने सुषमा बड़ाईक याैन शोषण मामले के आरोप में श्री नटराजन को 14 मार्च 2012 को बरखास्त कर दिया था. बरखास्तगी का आधार विभागीय कार्रवाई के दाैरान जांच रिपोर्ट को बनाया गया था. निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही चलायी गयी थी. मालूम हो कि पीएस नटराजन ने राज्य सरकार के आदेश को कैट में चुनाैती दी थी.