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लोहरदगा उपचुनाव: अंतत: कांग्रेस के सुखदेव भगत को मिली जीत नहीं बच पायी एनडीए की साख

रांची: झारखंड में एनडीए की सरकार बनने के बाद लोहरदगा में पहला चुनाव हुआ. ऐसे में सभी दलों की निगाह इस पर लगी हुई थी. एनडीए अपनी साख बचाने में जुटा हुआ था. हालांकि इस चुनाव में विपक्ष एक जुट नहीं हो पाया था. इसके बावजूद सभी प्रमुख दल के निशाने पर एनडीए के प्रत्याशी […]

रांची: झारखंड में एनडीए की सरकार बनने के बाद लोहरदगा में पहला चुनाव हुआ. ऐसे में सभी दलों की निगाह इस पर लगी हुई थी. एनडीए अपनी साख बचाने में जुटा हुआ था. हालांकि इस चुनाव में विपक्ष एक जुट नहीं हो पाया था. इसके बावजूद सभी प्रमुख दल के निशाने पर एनडीए के प्रत्याशी थे.

पिछले दो चुनाव में आजसू के प्रत्याशी कमल किशोर भगत ने यहां से चुनाव जीता था. दोनों में कांटे की टक्कर में हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी सुखदे‌व भगत ने जीत हासिल की. उन्होंने एनडीए की प्रत्याशी कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को लगभग 23,288 मतों से पराजित किया. चुनाव में झाविमो ने बंधु तिर्की को प्रत्याशी बना कर विपक्षी एकता पर विराम लगाने का काम किया था. हालांकि इस चुनाव में झामुमो तटस्थ रहा. इसका अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को फायदा मिला.

लोहरदगा में भाजपा और मुख्यमंत्री का प्रयास भी नहीं हो पाया सफल
लोहरदगा चुनाव में भाजपा ने गंठबंधन धर्म का पालन करते हुए एनडीए प्रत्याशी नीरू शांति भगत की जीत सुनिश्चित करने को लेकर हर संभव प्रयास किया, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पायी. चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री रघुवर दास औैर सरकार के एक साल के कार्यकाल को आधार बना कर प्रचार किया. मुख्यमंत्री रघुवर दास खुद लगातार इस चुनाव की मॉनिटरिंग कर रहे थे. उन्होंने चुनाव के दौरान लोहरदगा में तीन चुनावी सभाएं भी कीं. पार्टी की ओर से प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय, सांसद सुदर्शन भगत, विधायक गंगोत्री कुजूर, विधायक शिव शंकर उरांव समेत अन्य पदाधिकारियों ने पूरा जोर लगाया. समन्वय समिति और चुनाव अभियान समिति बना कर अलग-अलग लोगों को जिम्मेवारी दी गयी. सरकार की उपलब्धियों के पंपलेट बंटवाये गये, लेकिन पार्टी का यह प्रयास भी कारगार साबित नहीं हो पाया.
आजसू की हार का कारण बना नया चेहरा
लोहरदगा उप चुनाव में आजसू पार्टी की ओर से दमदार प्रत्याशी नहीं खड़ा करना महंगा साबित हुआ. राजनीतिज्ञों का कहना है कि आजसू की हार का मुख्य कारण है कि उसकी ओर से नये चेहरे को चुनाव मैदान में उतारना. चुनाव से एक माह पहले कमल किशोर भगत ने नीरू शांति भगत से शादी की. इसके बाद उसे लोहरदगा चुनाव में प्रत्याशी बना दिया गया. इससे पहले नीरू शांति भगत का लोहरदगा से कोई लगाव नहीं था, ना ही उनका कोई जनाधार. वे सिर्फ कमल किशोर भगत की पत्नी के तौर पर चुनाव लड़ रही थीं. ऐसे में क्षेत्र की जनता का उन्हें पूरा साथ नहीं मिल पाया.
झामुमो रहा तटस्थ कांग्रेस को फायदा
लोहरदगा उप चुनाव में झामुमो के तटस्थ रहने से कांग्रेस को फायदा मिला. चुनाव में झामुमो की ओर से प्रत्याशी नहीं दिया गया था. साथ की किसी को समर्थन भी देने के बजाये झामुमो ने तटस्थ रहने का फैसला किया था. हालांकि इससे पहले झामुमो लगातार विपक्ष दलों को एकजुट करने की बात कर रहा था. इसको लेकर झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस के कई अाला नेताओं से बातचीत की थी और अंतत: उसका फायदा कांग्रेस को ही मिला.
झाविमो की दोनों रणनीति फेल
लोहरदगा उप चुनाव में झाविमो की दोनों रणनीति फेल साबित हुई. झाविमो ने बंधु तिर्की को प्रत्याशी बना कर आजसू और कांग्रेस पर निशाना साधा था. झाविमो ने बंधु तिर्की को प्रत्याशी बना कर पहले कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति बनायी थी. चर्चा थी कि बाबूलाल मरांडी एक तीर से दो निशाना साध रहे हैं. कहा जा रहा है कि झाविमो के प्रत्याशी खड़ा करने से कांग्रेस का वोट कटेगा. कांग्रेस बैकफुट में जायेगी और झाविमो से नजदीकी बढ़ाने का प्रयास करेगी. वहीं दूसरी तरफ अगर एनडीए प्रत्याशी की जीत होती है, तो उसकी नजदीकी आजसू के साथ बढ़ेगी, लेकिन दोनों रणनीति फेल हो गयी.
दो साल में बंधु की तीसरी हार
झाविमो प्रत्याशी बंधु तिर्की पिछले दो साल में तीसरा चुनाव हारे हैं. पहले लोकसभा चुनाव में रांची लोकसभा सीट से उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. रांची में उनकी जमानत जब्त हो गयी थी. इसके बाद विधानसभा चुनाव मांडर से अपनी विधायकी नहीं बचा पाये. वहां पहला चुनाव लड़ रही भाजपा प्रत्याशी गंगोत्री कुजूर से हार गये. इसके बाद बंधु ने लोहरदगा उप चुनाव में किस्मत अजमाने के लिए झाविमो का दामन थामा. लेकिन वे फाइट में भी नहीं रहे. उन्हें तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. हर चुनाव में वे पार्टी बदलते रहे. लोकसभा व विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस से चुनाव लड़े. वहीं लोहरदगा उप चुनाव में वह बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो से चुनाव लड़े.

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