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छन्नि-भन्नि हो रही है आदिवासियों की व्यवस्था : फादर मरियानुस

छिन्न-भिन्न हो रही है आदिवासियों की व्यवस्था : फादर मरियानुसफोटो अमित दास- जेसुइट मिशन का तीन दिवसीय पांचवां राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव शुरू, जुटे कई राज्य के आदिवासीसंवाददाता, रांचीसोसाइटी ऑफ जीसस के प्रोविंसियल फादर जोसफ मरियानुस कुजूर ने कहा कि उपनिवेशवादियों के आने के बाद आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व शैक्षणिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी […]

छिन्न-भिन्न हो रही है आदिवासियों की व्यवस्था : फादर मरियानुसफोटो अमित दास- जेसुइट मिशन का तीन दिवसीय पांचवां राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव शुरू, जुटे कई राज्य के आदिवासीसंवाददाता, रांचीसोसाइटी ऑफ जीसस के प्रोविंसियल फादर जोसफ मरियानुस कुजूर ने कहा कि उपनिवेशवादियों के आने के बाद आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व शैक्षणिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी है़ आजीविका के उनके पारंपरिक संसाधन – जल, जंगल, जमीन और जानवर पर उनका नियंत्रण समाप्त हो रहा है़ आजादी के 68 वर्षों के बाद वे एक खतरनाक चौराहे पर खड़े हैं और अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे है़ं वह शनिवार को जेमाई पांचवें राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव के उदघाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे़ इसका आयोजन जेसुइट मिशन अमंग इंडिजिनस पीपुल (जेमाई) द्वारा संत जॉन स्कूल परिसर में 26 अक्तूबर तक किया गया है़ इसमें देश भर के सभी आदिवासी बहुल राज्यों के प्रतिनिधि शामिल है़ं विस्थापितों में आदिवासी 40 फीसदी फादर मरियानुस ने कहा कि पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में एक करोड़ 23 लाख और छठी अनुसूची क्षेत्र में 56 लाख 37 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए है़ं देश भर में विस्थापित होनेवालों में 40 फीसदी आदिवासी है़ं 1947 से 2014 के बीच देश में छह-सात करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं, पर आंकड़े ढाई -तीन करोड़ के ही है़ं कुल विस्थापितों में से 24 फीसदी का पुनर्वास हुआ है़ सरकार का वनाच्छादित क्षेत्र बढ़ने का दावा गलत है़ सड़क के किनारे लगाये गये पेड़ों को भी वनाच्छादित क्षेत्र के रूप में दिखाया जा रहा है़कृषक से मजदूर बनते आदिवासीउन्होंने कहा कि देश की 60 फीसदी भूमि कृषि योग्य है, जो उद्योग धंधों के लिए अधिग्रहित किये जा रहे है़ं सरकारी नीतियों के कारण आदिवासी कृषक से मजदूर बन रहे है़ं आदिवासी हक-अधिकारों को बचानेवाले कानून लागू करने में सरकारों ने रुचि नहीं दिखायी है, पर उनके हित के खिलाफ बने कानून तेजी से लागू किये जाते है़ं एक्सआइएसएस के निदेशक फादर एलेक्स एक्का ने कहा कि पोप फ्रांसिस द्वारा जारी धर्मपत्र आदिवासी जीवन दर्शन से मेल खाता है़ यदि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग संतुलित ढंग से करेंगे, तभी जिंदा रह पायेंगे़ प्रकृति के साथ अन्योन्याश्रय संबंधझारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के प्रो संजय बसु मल्लिक ने आदिवासी आजीविका के स्वरूप पर प्रकाश डाला़ उन्होंने कहा कि यह प्रकृति के साथ अन्योन्याश्रय संबंध बना कर रखता है़ प्रकृति हमारी मां और सृष्टि हमारी बहन है़ हम अपनी जरूरतों के अनुसार संसाधनों का उपयोग करते हैं, लोभ के कारण नही़ं 45 फीसदी आदिवासियों के पास ढाई एकड़ से कम जमीन है़ देश में सीएनटी व एसपीटी एक्ट, पेसा कानून, वनाधिकार कानून, संयुक्त राष्ट्र संघ घोषणा पत्र और इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन सम्मेलन के निर्णयों की अवहेलना हाे रही है़ जमीन और शरीर हो रहे कमजोरबुढ़मू से आयी सूरजमणि भगत ने कहा कि आधुनिक खेती के बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाइयों से हमारे खेत और शरीर कमजोर हो रहे है़ं हमारा खान- पान बदल रहा है़ अब हम मडुआ नहीं खाते, खून की कमी के शिकार होते हैं और फिर डॉक्टरों के चक्कर लगाते है़ं महाराष्ट्र से आये राजेश पाउरा ने कहा कि उनके क्षेत्र में 64 हजार लोगों ने वनभूमि पट्टा के लिए दावा पत्र भरा, जिसमें से 35 हजार को यह दिलाया गया है़ ग्राम सभा को सशक्त करने की जरूरत है़ छत्तीसगढ़ से आये जेकब कूजूर ने उनके क्षेत्र में आदिवासी आजीविका पर हाथियों के हमले की बात रखी़ उन्होंने कहा कि सरकार आदिवासियों को आत्मरक्षा का अधिकार दे या नुकसान का समुचित मुआवजा दे़ गुजरात से आये इस्वन गावित, केरल से आये फादर पीएस एंथोनी, मुुंबई से आयी अलका प्रेमा लकड़ा, फादर मनु बेसरा, अनिमा स्वर्ण लता पन्ना व अन्य ने भी विचार रखे़ऑडियो सीडी व पुस्तक का लोकार्पणमौके पर प्रो संजय बसु मल्लिक की पुस्तक ‘सिल्वन कॉल : स्टोरीज फ्रॉम द मुंडा कंट्री’ व फादर अगापित तिर्की की ऑडियो सीडी ‘जागो आदिवासी जागो’ का लोकार्पण भी किया गया़ अंगरेजी भाषा की पुस्तक सिल्वन कॉल : स्टोरीज फ्रॉम द मुंडा कंट्री को आदिवाणी ने प्रकाशित किया है़ 225 पृष्ठ की इस पुस्तक की कीमत 250 रुपये रखी गयी है़ वहीं, सत्यभारती की प्रस्तुति जागो आदिवासी जागो की कीमत 50 रुपये रखी गयी है़अमेरिकी आदिवासियों के हालात अच्छे नहींअमेरिका के कनसास से आये मैट कॉब ने बताया कि अमेरिका में आदिवासियों की स्थिति अच्छी नहीं है़ उनकी सुरक्षा के लिए बने कानूनों का सरकार ही उल्लंघन करती है़ जमीन की सतह से छह फीट नीचे के संसाधनों पर आदिवासियों का अधिकार नहीं है़ वहां रेड इंडियन, ओगलाला, लेकोटा, चरकी, ओसेज व अन्य आदिवासी रहते हैं, जिनकी संख्या दस लाख के आसपास है़ आदिवासियों का संघर्ष सरकार से नहीं, बल्कि मल्टीनेशनल कंपनियों से है़ उन्होंने कहा कि दुनिया भर के आदिवासियों के ह्दय में एक ही तरह का स्पंदन है़प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आदिवासियत के रंगप्रदर्शनी में मूर्तियां, हस्तशिल्प, वनस्पति औषधियां और कुड़ुख हिंदी कोष, कुडुख ग्रंथ, कुड़ुख पचबालो, कुड़ख व्याकरण, तोलोंग सिकि में कुडुख प्रवेशिका समेत कई पुस्तकें उपलब्ध है़ं शाम को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ, जिसमें विभिन्न क्षेत्र के आदिवासी नृत्य प्रस्तुत किये गये़

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