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ओके:::अर्थव्यवस्था की रीढ़ के तौर पर खनन का बोझ हो कम

ओके:::अर्थव्यवस्था की रीढ़ के तौर पर खनन का बोझ हो कमनामकुम में सम्मेलन का आयाेजननामकुम़ देश में लाखों, करोड़ों के खनिज का दोहन हो रहा है, जबकि रॉयल्टी के नाम पर सिर्फ चंद हजार करोड़ रुपये ही मिलती है़ सरकार को इस दिशा में सोचना होगा़ जब जमीन व संपदा हमारी है, तो खनन करनेवाली […]

ओके:::अर्थव्यवस्था की रीढ़ के तौर पर खनन का बोझ हो कमनामकुम में सम्मेलन का आयाेजननामकुम़ देश में लाखों, करोड़ों के खनिज का दोहन हो रहा है, जबकि रॉयल्टी के नाम पर सिर्फ चंद हजार करोड़ रुपये ही मिलती है़ सरकार को इस दिशा में सोचना होगा़ जब जमीन व संपदा हमारी है, तो खनन करनेवाली कंपनी को कुछ प्रतिशत हिस्सेदारी दी जाये, जबकि वास्तविक स्थिति ठीक इसके विपरीत है. भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ खनन पर ही आधारित है़ माइंस मिनरल्स एंड पीपल नामक संंगठन द्वारा नामकुम के बगईचा में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में यह बातें उभर कर आयीं. सम्मेलन में माइंस मिनरल्स एंड पीपल के महासचिव अशोक श्रीमाली, मुकेश बिरूवा, आर श्रीधर, बहादुर सोरेन, दीमी, संतोष उपाध्याय, केसी मार्डी, वासवी किडो व निशांत आदि ने अपने-अपने विचार रखे़

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