रांची: झारखंड हाइकोर्ट ने बुधवार को आरोपी सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के फरार होने के मामले में तीखी टिप्पणी की है. चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह व जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने लोहरदगा में लिफ्ट इरिगेशन स्कीम में वित्तीय गड़बड़ी से संबंधित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस के रवैये पर नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने कहा कि फरार अारोपियों के मामले में पुलिस उदारवादी रवैया अपनाती है. बिना पुलिस की मिलीभगत से सरकारी कर्मी फरार हो जाये, यह संभव नहीं है. पुलिस फरार होने का अवसर देती है.
खंडपीठ ने कहा कि एक सजायाफ्ता की अपील मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आयी थी कि उस मामले में कई आरोपी 13 वर्षों से फरार हैं. कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए डीजीपी को सख्त आदेश दिया था. इसके बाद 13 वर्षों से फरार 10 आरोपियों ने एक माह में सरेंडर कर दिया. पुलिस उन्हें पकड़ नहीं पायी. खंडपीठ कहा कि पुलिस ही आरोपी को रास्ता बताती है. कोर्ट के कड़े रुख को देख कर कहा गया होगा कि आप सरेंडर करें, नहीं तो हम गिरफ्तार कर लेंगे. मौखिक रूप से राज्य सरकार से पूछा कि आरोपी सरकारी मुलाजिम कैसे फरार हो जाते हैं, जबकि उनका सब कुछ पदस्थापित जिला में ही रहता है. उनका परिवार रहता है. बच्चे पढ़ते है. उनका बैंक में खाता है. इसके बावजूद वे फरार हो जाते है. सरकारी कर्मी के खिलाफ मामला दर्ज होते ही वे फरार हो जाते हैं. पांच-पांच साल तक फरार रहते है.
अाखिर झारखंड छोड़ कर कहां चले जाते हैं. पुलिस हाथ मलते रहती है. यह कैसे संभव है. राज्य में कानून कहां है. झारखंड के लिए यह अजीबो-गरीब स्थिति है. सीआरपीसी की धारा 81-82 का भी कोई भय नहीं रह गया है. पुलिस कुर्की-जब्ती में सिर्फ औपचारिकता निभाती है.
क्या था मामला
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश ने शपथ पत्र दायर कर बताया कि लोहरदगा में लिफ्ट इरिगेशन की 47 स्कीम स्वीकृत की गयी. 33 स्कीम सहायक कृषि पदाधिकारी सुधांशु कुमार सिन्हा को तथा 14 स्कीम कनीय अभियंता राजेश्वर सिंह को दी गयी. राजेश्वर सिंह द्वारा लागू स्कीम में वित्तीय गड़बड़ी के आरोप में प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच की गयी. चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है. खंडपीठ ने राज्य सरकार के जवाब को देखते हुए जनहित याचिका निष्पादित कर दी़ इस मामले में सुरेंद्र नाथ शाह ने जनहित याचिका दायर की थी.