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मोहताज बनाने को नहीं, पैरों पर खड़ा करने के लिए है सीएसआर : बसंत झंवर

मोहताज बनाने को नहीं, पैरों पर खड़ा करने के लिए है सीएसआर : बसंत झंवरउषा मार्टिन ग्रुप के चेयरमेन हैं बसंत झंवर. बड़े उद्यमी होने के साथ वह सब का भला चाहने वाले बुर्जुग भी हैं. वह औद्योगिक कंपनियों की कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसब्लिटी (सीएसआर) को निहायत जरूरी बताते हुए इसे देश निर्माण में निजी क्षेत्र […]

मोहताज बनाने को नहीं, पैरों पर खड़ा करने के लिए है सीएसआर : बसंत झंवरउषा मार्टिन ग्रुप के चेयरमेन हैं बसंत झंवर. बड़े उद्यमी होने के साथ वह सब का भला चाहने वाले बुर्जुग भी हैं. वह औद्योगिक कंपनियों की कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसब्लिटी (सीएसआर) को निहायत जरूरी बताते हुए इसे देश निर्माण में निजी क्षेत्र का फर्ज कहते हैं. विद्या और कौशल को विकास का रास्ता बताने वाले श्री झंवर ने कुछ ऐसे ही उद्देश्यों के साथ 1971 में कृषि ग्राम विकास केंद्र (केजीवीके) की स्थापना की थी. आज केजीवीके राज्य के 451 गांवों में काम कर रहा है. राज्य के 28,000 से ज्यादा किसान केजीवीके द्वारा लायी गयी श्रीविधि का इस्तेमाल कर खुशहाल बन चुके हैं. केजीवीके पतरातू के 28 गांवों में जल क्रांति ले आया है. प्रभात खबर ने श्री झंवर से उद्योगों के सीएसआर और गांवों के विकास पर लंबी बातचीत की है. औद्योगिक कंपनियों के लिए सीएसआर कितना जरूरी है ?बहुत जरूरी है. यह निजी कंपनियों का फर्ज है. विकास में याेगदान है. बस यह याद रखने की जरूरत है कि सीएसआर लोगों को मोहताज बनाने के लिए नहीं, बल्कि उनको अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए होता है. उषा मार्टिन और केजीवीके लोगों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए बहुत कुछ कर रहा है. ग्रीन कॉलेज के माध्यम से ग्रामीणों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. कृषि और पशुपालन में रोजगार उत्पन्न करने के लिए कई कोशिशें की जा रही हैं. हम इसमें सफल भी हो रहे हैं. केजीवीके ने किसानों का, गांवों का जीवन बदल डाला है.क्या है केजीबीके? यह काम कैसे करता है?उषा मार्टिन के सामाजिक कर्तव्य को पूरा करने के लिए कृषि ग्राम विकास केंद्र (केजीवीके) की स्थापना की गयी थी. उषा मार्टिन ने एक्सआइएसएस से झारखंड के गांवों का सर्वे कराया. उनकी जरूरतें जानी. मालूम किया कि लोगों को अपने काम के अलावा एडिशनल और सस्टनेबल इनकम चाहिए. सर्वे के बाद केजीवीके लिए मानदंड स्थापित किये गये. हमने जाना कि झारखंड के गांवों का जीवन जल, जमीन, जंगल, जानवर और जन पर निर्भर करता है. केजीवीके राज्य के गांवों में शिक्षा, महिलाओं की उन्नति, ग्रामीणाें के कौशल विकास के लिए काम करता है. गांवों में बिजली, सेनिटेशन और रिसोर्स मोबलाइजेशन प्राथमिकता में है. क्या केजीवीके नि:शुल्क मदद देता है?देखिये, केजीवीके फायदा नहीं कमाने के लिए नहीं है. यह संस्था उषा मार्टिन का कर्तव्य निभाने में सहायता के लिए बनायी गयी है. प्रशिक्षण देने के लिए लोगों से शुल्क लिये जाते हैं. शुल्क इसलिए कि लोग प्रशिक्षण को बेकार न समझें. केजीवीके द्वारा मुहैया करायी जा रही चीजों को बेकार न समझें. मामूली शुल्क उन लोगों पर ही खर्च किया जाता है और उसके बदले में लोगों को विद्या और कौशल मिलता है. अपनी जीविका बेहतर करने में मदद मिलती है. देश और विदेश की बेहतर संस्थाओं के साथ साझेदारी कर केजीवीके बेहतर काम कर रहा है.झारखंड में सीएसआर की गतिविधियों से फर्क पड़ रहा है ?बिल्कुल पड़ रहा है. गांवों की सूरत बदल रही है. केजीवीके जिन 451 गांवों में काम कर रहा है, वहां के किसान शिक्षित हो रहे हैं. तकनीक का सही प्रयोग सीख रहे हैं. केजीवीके की मदद से ग्रामीण खुशहाल हो रहे हैं. देखिये, झारखंड के लोग मांग कर नहीं खाना चाहते हैं. वह मेहनती हैं. कमी केवल जानकारी की है. प्रशिक्षण की है. केजीवीके यही दोनों काम करता है. प्रशिक्षण के बाद मदद भी देता है. सीएसआर की गतिविधियों में सरकार सहयोग करती है ?अच्छी चीजों में सबका सहयोग मिलता है. केजीवीके ने राज्य के गांवों में अस्पताल भी बनाये हैं. हमने राज्य के चार प्रखंडों में स्वास्थ्य पर काम किया था. काम इतना बढ़िया हुआ कि एक सर्वेक्षण में हमारे प्रोजेक्ट को देश का सबसे बढ़िया प्रोजेक्ट माना गया. हमारे प्रोजेक्ट की फाइंडिंग को भारत सरकार ने अपने रूरल हेल्थ मिशन में शामिल किया. अपने मेन प्रोग्राम में डाला. सरकार के सहयोग को इस उदाहरण से समझा जा सकता है. क्या झारखंड में किसानों की बुरी स्थिति का कारण प्राकृतिक है ?नहीं. अपवाद छोड़ दें तो राज्य में खेती के लिए भरपूर बारिश होती है. लेकिन, दुर्भाग्य से पूरा पानी बह कर निकल जाता है. हमारे यहां पानी का कोई साइंटिफिक मैनेजमेंट नहीं है. बिल्कुल यही पशुपालन के क्षेत्र में भी हो रहा है. किसानों के पास जमीन के मामले में काफी असमानता है. किसान को विकल्प की जानकारी ही नहीं है. उनके पास पशुपालन के लिए हरा चारा भी नहीं होता. दरअसल, किसानों को बहुद्देश्यीय काम करना होगा. केजीवीके गांवों में जाकर यही सिखा रहा है. किसानों को पशुपालन के लिए प्रेरित कर रहा है. उनको विकल्प सुझा रहा है. डेयरी और पोलिट्री के बारे में बता रहा है. प्रशिक्षित कर किसानों को मदद मुहैया करा रहा है. खेती के क्षेत्र में कम पानी का इस्तेमाल कर श्रीविधि के जरिये ज्यादा गुणवत्ता और मुनाफा कमाना सीखा रहा है. किसानों के पास बाजार नहीं है. केवल कौशल से ही वह खुशहाल हो जायेंगे? किसानों को मार्केट लिंकेज की समस्या है. ट्रांसपोटेशन की दिक्कत है. केजीवीके ने इस पर काम किया है. केजीवीके किसानों को प्रशिक्षित करने के साथ बाजार भी मुहैया करा रहा है. उदाहरण के लिए, केजीवीके किसानों को पशुपालन के साथ बेबीकॉर्न की खेती के लिए प्रोत्साहित करता है. दो महीने में तैयार हो जाने वाली बेबीकॉर्न की फसल बेच कर किसान को रुपये मिल जाते हैं. दूध केजीवीके खरीद कर उनको बाजार मुहैया कराता है. इसी तरह केजीवीके आर्गेनिक सब्जियों की खरीद कर उनको बाजार तक पहुंचाता है. किसानों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए ही केजीवीके ने डेयरी प्लांट लगाया है. जगह-जगह काउंटर भी लगाये जा रहे हैं. झारखंड में आर्गेनिक खेती की भी बहुत संभावना है. राज्य की काफी जमीन अब तक रसायनों से अछूती है. ऐसे में केजीवीके आर्गेनिक खेती को प्रोत्साहित कर रहा है. आर्गेनिक खेती करने वाले किसानों को केजीवीके बाजार भी उपलब्ध करा रहा है. इस दिशा में लगातार प्रयास किये जा रहे हैं.

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