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21 लौह अयस्क खदानों की फाइल महाधिवक्ता को भेजी गयी

रांची : 21 लौह अयस्क खदानों के लीज नवीकरण पर फैसला अब महाधिवक्ता की राय के बाद लिया जायेगा. खान विभाग द्वारा सभी खदानों के नवीकरण से संबंधित फाइल महाधिवक्ता को भेज दी गयी है. केंद्र सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश का हवाला देते हुए महाधिवक्ता से राय मांगी गयी है. सात सितंबर को विकास […]

रांची : 21 लौह अयस्क खदानों के लीज नवीकरण पर फैसला अब महाधिवक्ता की राय के बाद लिया जायेगा. खान विभाग द्वारा सभी खदानों के नवीकरण से संबंधित फाइल महाधिवक्ता को भेज दी गयी है. केंद्र सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश का हवाला देते हुए महाधिवक्ता से राय मांगी गयी है. सात सितंबर को विकास आयुक्त की अध्यक्षता में बनी कमेटी को इस पर निर्णय लेना है.
50 हजार से अधिक मजदूर हो गये हैं बेरोजगार
गौरतलब है कि जुलाई 2014 से ही सभी 21 लौह अयस्क खदानों से खुदाई पर पूरी तरह रोक लगा दी गयी थी. ये 21 खदान नन कैप्टिव हैं. लीज नवीकरण न होने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सरकार ने खुदाई पर रोक लगा दी थी. 21 खदानों में 50 हजार से अधिक लोग किसी न किसी रूप कार्यरत थे.
फिलहाल सारे खदान लगभग एक साल से बंद हैं, जिसके चलते मजदूर बेरोजगार हो गये हैं. इसी दौरान केंद्र सरकार ने जनवरी 2015 में सभी खदानों को 2020 तक लीज नवीकरण करने से संबंधित अध्यादेश जारी कर दिया. इसके बाद राज्य सरकार ने 21 खदानों के बाबत उपायुक्तों से रिपोर्ट मंगायी, जिसमें पूछा गया था खुदाई में प्रदूषण या अन्य किसी मानकों को उल्लंघन हुआ है या नहीं.
सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट में लगभग सभी खदानों में किसी न किसी मानकों को उल्लंघन पाया गया है. हालांकि सरकार में केंद्र के अध्यादेश का हवाला देते हुए 21 खदानों के नवीकरण पर लगभग सहमति बन गयी है. इस पर कोई कानूनी अड़चन न आये, इसलिए अंतिम बार महाधिवक्ता की राय ली जा रही है. खान विभाग के सूत्रों ने बताया कि सात को उच्चस्तरीय कमेटी द्वारा अंतिम निर्णय ले लिये जाने के बाद नवीकरण से संबंधित संचिका कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेज दी जायेगी.
जीएनएम और नर्सिंग की सीटों पर होगा दाखिला
तीन मेडिकल कॉलेजों में जीएनएम के लिए 120 सीटें तय की गयी
10 नर्सिंग संस्थानों में ए ग्रेड नर्सिंग की 300 सीटें तय
रांची : झारखंड सरकार के तीन मेडिकल कॉलेजों और 10 नर्सिंग संस्थानों में जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (जीएनएम) और ए ग्रेड नर्सिंग पाठ्यक्रमों के लिए जल्द ही दाखिले की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. तीन मेडिकल कॉलेजों में जीएनएम के लिए 2015-16 में 120 सीटें तय की गयी हैं.
इसमें रिम्स में 50, एमजीएम जमशेदपुर में 30 और पीएमसीएच धनबाद में 40 सीटें तय हैं. इन सीटों में 70 सीटें अनारक्षित हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए 31, अनुसूचित जाति के लिए 12 सीटें आरक्षित की गयी हैं. राज्य में संचालित दस नर्सिंग संस्थानों में ए ग्रेड नर्सिंग की 300 सीटें तय की गयी हैं. ये कालेज चाईबासा, धनबाद, देवघर, दुमका, गिरिडीह, हजारीबाग, जमशेदपुर, पलामू और सिमडेगा में स्थित हैं. झारखंड संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा पर्षद की तरफ से जीएनएम और एएनएम परिचारिकाओं के लिए लिखित परीक्षा लेकर दाखिले की औपचारिकताएं पूरी की जायेंगी.
हर महीने नियुक्ति पर विचार
स्वास्थ्य विभाग
– चिकित्सकों की कमी से निबटने के लिए गुजरात में इस पैटर्न पर होती है नियुक्ति
संवाददाता रांची
मानव संसाधन की कमी से निबटने तथा विभिन्न रिक्तियों को भरने के लिए स्वास्थ्य विभाग हर महीने एक समान अंतराल पर नियुक्ति पर विचार कर रहा है़ हालांकि अभी इस पर निर्णय होना बाकी है. चिकित्सकों की कमी से निबटने के लिए गुजरात में इसी पैटर्न पर नियुक्ति की जाती है़
रिक्ति भर जाने पर नियुक्ति प्रक्रिया बंद हो जाती है. देखा जाता है कि नियुक्ति के विज्ञापन के बाद चिकित्सक परीक्षा या साक्षात्कार में तो शामिल होते हैं, पर काम करने के लिए अपना निबंधन नहीं कराते. निबंधन करा भी लिया, तो कार्यस्थल पर योगदान नहीं करते.
रिक्त रह जाते हैं कई पद
स्वास्थ्य विभाग ने अभी बैकलॉग के आरक्षित पदों के लिए चिकितस्कों की नियुक्ति संबंधी विज्ञापन निकाला था. कुल जरूरत 71 बतायी गयी थी. जेपीएससी ने सिर्फ साक्षात्कार के आधार पर 43 चिकित्सकों की ही अनुशंसा विभाग को भेजी. पर इनमें से भी सिर्फ 37 चिकित्सकों ने ही योगदान की सहमति दी. पर नियुक्ति पत्र लेने इनमें से पांच लोग कम आये.
अब कुल कितने चिकित्सक अपने पदस्थापन स्थल पर जाते हैं, यह देखना होगा. उसी तरह अनारक्षित कोटे के पांच सौ से अधिक चिकित्सकों के रिक्त पदों के विरुद्ध जेपीएससी से 336 चिकित्सकों की अनुशंसा मिली है. इसमें भी अब तक 223 ने ही योगदान के लिए निबंधन कराया है. विभाग ने जान बूझकर निबंधन की कोई अंतिम तिथि निश्चित नहीं की है. ताकि चिकित्सक चाहें, तो आते रहें.
मरीज खुद अपने लिए चुनता है स्टेंट : डॉ नीरज
राजधानी के बड़े अस्पतालों में स्टेंट लगाने के नाम पर मरीजों से हो रही ठगी पर प्रभात खबर ने रिपोर्ट छापी थी. इस पर मेदांता अब्दुर्रज्जाक अंसारी अस्पताल, इरबा के हार्ट विशेषज्ञ डॉ नीरज प्रसाद ने हमें पत्र भेजा है, जिसके प्रमुख अंश हम यहां छाप रहे हैं.
हृदय रोग से संबंधित मरीजों को स्टेंट लगाने के संबंध में प्रकाशित समाचार से कई भ्रम पैदा हो रहे हैं. इस संबंध में मरीजों की जानकारी के लिए निमित निम्नलिखित तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा.
1. स्टेंट सहित किसी भी प्रकार की सामग्री की खरीद के लिए सभी अस्पतालों की अपनी-अपनी अलग नीति है. हमारे अस्पताल में इलाज हेतु भरती मरीजों एवं विशेषज्ञों के बीच एक (पार्टनर) साझेदार की हैसियत होती है, जिसके अनुसार मरीजों की शारीरिक दशा-स्थिति के अनुसार उन्हें यह विकल्प दिया जाता है कि वे अपने स्टेंट का चयन खुद करें एवं उनके चयन के अनुसार ही मरीजों को स्टेंट लगाया जाता है.
2. गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करनेवाले मरीजों के लिए सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया एवं मापदंड़ के अनुसार ही तयशुदा राशि पर स्टेंट का चयन किया जाता है एवं ऐसे मरीजों का इलाज सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किया जाता है.
3. हम सरकार का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं कि दिनांक 01.09.2015 को राज्य के सभी निजी एवं सरकारी अस्पतालों के हृदय रोग विशेषज्ञों एवं अधीक्षकों की बैठक बुला कर इस संबंध में विशेष सचिव, स्वास्थ्य विभाग द्वारा संपूर्ण वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त की गयी एवं हमारी बातों से अवगत होकर उन्होंने अपनी संतुष्टि व्यक्त की.
4. झारखंड के सभी अस्पताल के निम्न एवं मध्यम वर्गीय मरीजों को अपनी सेवा प्रदान करते हैं. इस संबंध में समाचार पत्रों के माध्यम से आम जनता को यह संदेश देना कि डॉक्टर एवं अस्पताल मरीजों को लूट रहे हैं, बिल्कुल ही गलत व बेबुनियाद है.
यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि मेडिकल साइंस एवं कार्डियोलॉजिस्ट संपूर्ण रूप से एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक जैसा विषय है जिसको एक विशेषज्ञ ही भली-भांति समझ सकता है और इसकी जानकारी प्राप्त करना समाज के लिए काफी लाभदायक सिद्ध होगा. मैं आपके समाचार पत्र को धन्यवाद देता हूं कि अपने समाचार पत्र के माध्यम से मरीजों को जगाने की कोशिश की है.
5. एंजियाप्लास्टी के लिए मरीज को कई प्रकार की जटिल से जटिल जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है एवं मरीज को प्रत्यारोपण के लायक बनाया जाता है, ताकि मरीज बड़ी प्रक्रिया से गुजरने के लिए पूरी तरह से मेडिकली फिट हो सके. इसमें थोड़ी भी कोताही मरीज के जीवन के लिए घातक हो सकता है. यह सुनिश्चित करने के बाद ही एंजियाप्लास्टी होती है.

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