दंगे के बाद हिंदपीढ़ी को थाना बनाया गया. उस समय से भाड़े में थोड़ी- थोड़ी वृद्धि होती रही. वर्तमान मेें हिंदपीढ़ी थाना के भवन के लिए पुलिस विभाग द्वारा मात्र 700 भाड़ा दिया जाता है, वह भी पांच सालों से नहीं मिला है. हिंदपीढ़ी थाने में छह कमरे, एक बड़ा हॉल और दो स्टोर रूम हैं. इतने बड़े भवन का वर्तमान में उस प्राइम लोकेशन में 10 से 12 हजार रुपये भाड़ा लिया जाता है.
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61 साल से भाड़े पर चल रहा है हिंदपीढ़ी थाना
रांची : हिंदपीढ़ी थाना 61 सालों से भाड़े के मकान में चल रहा है. 1954 में दो समुदाय के बीच हुए तनाव के बाद स्व डॉ शिवशंकर सहाय व चंद्रावती देवी ने हिंदपीढ़ी थाने को उक्त मकान किराये पर दिया था. उस वक्त रांची के एसपी चंद्रखेशर प्रसाद हुअा करते थे. 1956 में उसे पुलिस […]
रांची : हिंदपीढ़ी थाना 61 सालों से भाड़े के मकान में चल रहा है. 1954 में दो समुदाय के बीच हुए तनाव के बाद स्व डॉ शिवशंकर सहाय व चंद्रावती देवी ने हिंदपीढ़ी थाने को उक्त मकान किराये पर दिया था. उस वक्त रांची के एसपी चंद्रखेशर प्रसाद हुअा करते थे. 1956 में उसे पुलिस क्लब बनाया गया. बाद में हिंदपीढ़ी टीओपी बनाया गया. बताया जाता है कि 1954 में उक्त मकान को 30 रुपये किराये पर दिया गया था. वर्ष 1967 में रांची में दंगा हुआ था.
दंगे के बाद हिंदपीढ़ी को थाना बनाया गया. उस समय से भाड़े में थोड़ी- थोड़ी वृद्धि होती रही. वर्तमान मेें हिंदपीढ़ी थाना के भवन के लिए पुलिस विभाग द्वारा मात्र 700 भाड़ा दिया जाता है, वह भी पांच सालों से नहीं मिला है. हिंदपीढ़ी थाने में छह कमरे, एक बड़ा हॉल और दो स्टोर रूम हैं. इतने बड़े भवन का वर्तमान में उस प्राइम लोकेशन में 10 से 12 हजार रुपये भाड़ा लिया जाता है.
पांच साल से अधिग्रहण की फाइल लटकी है
डॉ शिवशंकर सहाय व चंद्रावती देवी की मृत्यु के बाद इस नौ कट्ठा में फैले हिंदपीढ़ी थाने की जमीन के मालिक उनके पुत्र डॉ रविशंकर सहाय, विनय शंकर सहाय व प्रेम शंकर सहाय हो गये. वर्ष 2010 हिंदपीढ़ी में जन्माष्टमी के दिन हंगामा हुआ था. उस समय एसएसपी प्रवीण सिंह ने जमीन मालिक, पुलिस विभाग व जिला प्रशासन के साथ बैठक की थी. इस दौरान थाना की जमीन का अधिग्रहण का प्रस्ताव जमीन मालिक को दिया था. जमीन मालिक ने सारे कागजात भी जमा करा दिये थे. भवन मालिक डॉ रवि शंकर सहाय सहित तीनों भाई का कहना है कि अधिग्रहण का पेंच सरकारी पेंच में फंस गया है, जिससे वे त्रस्त हैं. उसके चक्कर में पांच वर्षाें से किराया भी नहीं दिया जा रहा है. उनका कहना है कि झारंखड पुलिस विभाग व जिला प्रशासन अपनी मंशा साफ करे. या तो जमीन का अधिग्रहण करें या हमारी संपति को हमें वापस करे दे.
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