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पुलिस विभाग: मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी नहीं सुधरी व्यवस्था, जनता परेशान हर काम के लिए तय है रिश्वत
रांची: मुख्यमंत्री रघुवर दास पद संभालने के बाद कई बार कह चुके हैं कि पुलिस वाले रिश्वत न लें. अपनी छवि सुधारें. जनता से जुड़ें और उनकी सेवा करें. छवि सुधारने के लिए डीजीपी कनीय पुलिस पदाधिकारियों और कर्मियों को रिश्वत न लेने की शपथ दिलवा रहे हैं. हालात सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर […]
रांची: मुख्यमंत्री रघुवर दास पद संभालने के बाद कई बार कह चुके हैं कि पुलिस वाले रिश्वत न लें. अपनी छवि सुधारें. जनता से जुड़ें और उनकी सेवा करें. छवि सुधारने के लिए डीजीपी कनीय पुलिस पदाधिकारियों और कर्मियों को रिश्वत न लेने की शपथ दिलवा रहे हैं. हालात सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर तबादले भी किये गये, लेकिन इसका असर कहीं नहीं दिख रहा है. वर्षों से चली आ रही रिश्वतखोरी कम नहीं हो रही है.
थानों में हर काम के लिए पहले से तय रिश्वत आज भी ली जा रही है. हाल में निगरानी ने तीन पुलिस पदाधिकारियों को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया. पुलिस पदाधिकारियों का रिश्वत लेते गिरफ्तार होने की घटना भी यही साबित करती है कि हालात नहीं बदले हैं. रिश्वत के लिए तोल-मोल भी करती है पुलिस़ थानों में कई कामों के लिए पुलिस का रेट तय है़ कुछ मामलों में पुलिस रिश्वत के लिए तोल-मोल भी करती है. आमतौर पर पुलिस आदमी की हैसियत देख कर रिश्वत की मांग करती है. बरही थाना के मुंशी वासुदेव महतो ने मेराज अंसारी से पासपोर्ट सत्यापन के लिए 1500 रुपये की मांग की़ बाद में एक हजार रुपया लेकर काम करने पर राजी हुआ.
आइपीएस के परिचित से ले लिये पांच हजार
हाल में राजधानी के एक इंस्पेक्टर थाना प्रभारी (अब एक सर्किल का इंस्पेक्टर) ने एक व्यवसायी से चोरी की प्राथमिकी दर्ज करने करने के लिए पांच हजार रुपये घूस की मांग की़ उस व्यवसायी की पहचान एक सीनियर आइपीएस से थी. चोरी की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी कार्रवाई नहीं होने पर व्यवसायी ने उक्त आइपीएस से मदद मांगी. जब आइपीएस ने थानेदार को फोन कर पूछा कि चोरी के केस में क्या हुआ. तब इंस्पेक्टर घबरा गये. वे व्यवसायी को तलाशने लगे. यह सोच कर कि व्यवसायी ने रुपये लेने की बात तो आइपीएस को नहीं बता दी. व्यवसायी के मिलने पर इंस्पेक्टर ने यह कहते हुए रुपये लौटाने की बात कही कि आपको पहले ही बताना चाहिए था कि आप आइपीएस के पहचान वाले हैं. लीजिए अपने रुपये रख लीजिए. इस पर व्यवसायी ने इंस्पेक्टर से कहा, मैंने रुपये की बात नहीं बतायी है. तब जाकर इंस्पेक्टर ने राहत की स्वांस ली.
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